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गुरुवार, 31 मई 2012

आज कुछ तूफ़ानी करते हैं ..........











जब पिटरोल प्राईस बढाने का डिसीजन लिए थे बैड ,
उससे पहिले मंतरी जी लोग यही साईत देख रहे थे ऐड,
(आज कुछ तूफ़ानी करते हैं ....आज कुछ तूफ़ानी करते हैं )




सुबह अखबार में एक ठो जाने कैसी तो खबर छपी थी सैड ,
तेज़ रफ़्तार बाईक ने मारी टक्कर ,दो घायल एक डैड ,
(ऊ भी साईत घर से देख के निकले थे इहे ऐड , आज कुछ तूफ़ानी करते हैं ...आज कुछ तूफ़ानी करते हैं)




रिज्लट का सुन के , पूछे पापा , हाऊ मच नंबर यू गॉट माई लैड ,
बचवा खुश , हुलस के बोलिस , टोटल नाइटीएट परसेंट डैड ,
(परीक्षा देवे जाए से पहिले ऊहो साईत देख के निकला था ई ऐड , ...आज कुछ तूफ़ानी करते हैं , आज कुछ तूफ़ानी करते हैं ....)




जीता केकेआर त पगलेटवा शाहरूख , झूम के हो गया एकदम मैड ,
पूछा राज़ जीत का , त गंभीरवा धीरे से कान में बोला , ई था हमरा लकी पैड ,
(बकिया टीम को हम मैच से पहले दिखा दिए थे ई ऐड .......आज कुछ तूफ़ानी करते हैं ...आज कुछ तूफ़ानी करते हैं)




रिज्लट का सुन के , पूछे पापा , हाऊ मच नंबर यू गॉट माई लैड ,
बचवा खुश , हुलस के बोलिस , टोटल नाइटीएट परसेंट डैड ,
(परीक्षा देवे जाए से पहिले ऊहो साईत देख के निकला था ई ऐड , ...आज कुछ तूफ़ानी करते हैं , आज कुछ तूफ़ानी करते हैं ..)

गुरुवार, 24 मई 2012

आओ ब्लॉगिंग की हम वाट लगाएं ...........












आओ ब्लॉगिंग की हम वाट लगाएं ,
सुलग रही चिंगारी पर घी डाल कर आग लगाएं ,

जब संपादक मैग्जीनों अखबारों के खूब गरियाते ,
तो फ़िर ब्लॉगर ही खुद ब्लॉगिंग को काहे नहीं गरियाएं ,

दाम लगे न फ़िटकरी , रंग भी चोखा आए ,
अपमान करे ये किसकी हिम्मत , सम्मान भी काहे करवाएं ,

बवाल हो ,बेमिसाल हो, फ़ौरन ही सब दौडे  आएं ,
अपना ब्लॉग है फ़िर काहे नहीं मौज की अपनी खाट बिछाएं ,

रसातल में ले चलें लो इसको, चलो इतनी फ़िर भद्द पिटाएं ,
छोड शब्द विचार तर्क , आओ मित्रों, अब लट्ठ उठाएं ,

कोई नया सोचे न कभी भी , उसके मन को इतना कल्पाएं ,
धधक धधक के जले रे ब्लॉगिंग , ब्लॉगर से पेट्रोल बन जाएं ,

माहौल मिज़ाज़ है गर्म यहां अभी , चल रही है देखो गर्म हवाएं ,
लाल बुझक्कड के सब नाना , फ़िर काहे किसी को समझाएं ,

छोडिए अब ये गदहा पचीसी , क्यों न ऐसा नियम बनाएं ,
लेखन पर ही हो बात हमेशा , ब्लॉगर का क्यों नाम ही लाएं ??

या फ़िर ब्लॉगिंग तो , नासपीटी , कब की होली ,
चलिए अपन भी अब , भाड में जाएं , भाड में जाएं ॥ 

शनिवार, 19 मई 2012

समाचार नहीं - सम अचार हैं ये ..अहा खट्टा मीठा






संसद में पेश होगा मनरेगा का लेखा-झोखा ,
अबे छोडो , डायरेक्ट बताओ , जनता को दिया है कितना धोखा
(बस रकमवा बता के छोड दीजिए जी , बकिया चलित्तर तो आपका जानबे करती है जनता)


राज्यसभा में 21 को पेश हो सकता है विधेयक लोकपाल ,
अरे छोडिए ई बेकार है मुद्दा , आप तो करिए कार्टूनवा आ आईपीएल पे बवाल ,
(ई कईसन हुआ रे हाल , हाकिम खुदे हैं चंडाल)


मंजूर हुई जमानत , तिहाड जेल से रिहा हो गए राज़ा ,
खूब कटा है केक , फ़ूटे पटाखे घर पे , और बजा बैंड बाजा
(हां हां आखिरकार शूरवीर ..कारगिल फ़तह करके न आए हैं , सरबे शर्म होती त डूब मरते)


माया के भ्रष्टाचार जांच को , अखिलेश जल्दी ही गठित करेंगे इक आयोग ,
अबे भक्क , ई साला जांच और आयोग का , पूरे देश को लगा हुआ है रोग ,
(एक बात बताओ बे , अबे लूट का पैसा तो असूले नय पाते हो किसी से ...कद्दू का जांच आ सुथनी का आयोग)


पिछला कै दिन तक जोर जोर से सब ढोल था पीटा ,संसद का उमर हो गया साठ ,
आ एतना दिन से रोज़ है बैठता , गिन के साला ,काम नहीं किया कुल आठ
(आ ई लोग को दरमाहा फ़ुल्ल चाहिए ...फ़ुल्लम फ़ुल्ल)


सौर उर्जा से संचालित होंगे , शहर के सारे बिजली घर ,
इसी भरपूर रोशनी में , मैच होगा , चीयर गर्ल्स मटकाएंगी कमर ,
(अबे ससुरों , जिन गावों में बसा अंधेरा , रुख करो न कभी उधर ...हट्ट बे बकवासे समाचार है ई सब)


अवैध वसूली को लेकर , इलाहाबाद में, जमकर हुआ बवाल ,
आयं , अभी तो इत्ता कांफ़िडेंटली बाबू अखिलेश आदेश दिए कमाल
(ई साला पोलटिकल आदेश के उलटा ही हो जाता है , आउर दीजीए पंद्रह दिन का टैम हो अखिलेस बाबू)


एमबीबीएस डॉक्टरों को देनी होगी गांवों में एक वर्ष की सेवा ,
एक साल में मरीज़ खतम सब , फ़िर शहरन में खूब उडावें मेवा ,
(केतना फ़रक किए शहर गांव में , सरकार , हे देवा रे देवा)


बोले राम गोपाल वर्मा , जो मुझे पसंद है वही पिक्चर बनाता हूं ,
पब्लिक का घंटा समझेगी , कई बार तो खुद भी समझ नहीं मैं पाता हूं
(डरना जरूरी है कि डरना मना है ..आज तकले साला संस्पेसवे बना है)


आईपीएल के खिलाग कीर्ति आजाद करेंगे आमरण अनशन ,
का बात करते हैं सर जी , आप भी लगावें सट्टा और जीतें भरपूर धन
(चलता रहेगा ई खेलवा टनाटन , कोई लगावे मन , आ कोई दिखावे तन)


15 दिन में सुधारो कानून व्यवस्था ,अईसन अफ़सरों को मिला है आदेश ,
एक पखवाडे में ठीक हो जाए सब , चाहते हैं नयका सीएम अखिलेश
(जे बात ...ऊपी में है दम , लेकिन टाईम दिए हैं कम ..का सर सोलवहां दिन से मरजेंसी लागू करने बाले हैं क्या हो)


उडी बाबा , बोली हैं ममता दीदी , शाहरूख पर लगे बैन पर फ़िर से हो विचार
फ़िर से माने , हां हां एकदम्मे जी , इनको परमानेंट ही बाहर करो न यार ,
(ई पी पा के फ़िर से करें डिरामा , फ़िलाप पिक्चर दे कर हिट करे हंगामा)


ब्लॉगजगत में गर्मागर्मी ,आजकल ,मची है पुरस्कारों की मारामारी जी ,
हर कोई कहता यही है सबसे ,अईसे नहीं चलेगा , पहिले सुनो राय हमारी जी
(तभी तो मैं कहता हू ," ब्लॉगिंग में उठा बवाल , ब्लॉगिंग को मिला उछाल ".....)


राहुल बाबा बोलिस हैं :कांग्रेस को हरा रहे हैं खुद पार्टी के नेता ,
तो का करें बेचारे , अब हर कोइयो थोडे न बन जाएगा गांधी फ़ैमिली का बेटा
(ए बेट्टा राहुल ....तनिक सरनेमवा हटाओ , आ तब ई जरा बोल के दिखाओ ..रगड देगा तुमहीको तुम्हरा पज़ा पालटी रे )..


फ़िज़ूलखर्ची पर सरकार हुई सख्त , उठाने जा रही है सख्त कदम ,
अच्छा , कौन सी सरकार बे , जिसके मंतरी कर रहे घोटाले धमाधम
(साले चुटकुल्ला सुना रहे हो भोरे भोरे)


105 अरब डॉलर की हुई कंपनी , आईपीओ से फ़ेसबुक हो गया मालामाल ,
आयं , चलो रे पेंसन चालू करो अब , नय तो हमारा भी हिस्सा दो निकाल
(रे जुकरबर्गवा ..ई साला पूरा दिन खटते रहें हम लोग , आ शेयर माल पीटो तुम ...बहुत नाइंसाफ़ी है गब्बर)


झारखंड में 14 विधायकों व मंत्रियों के ठिकानों पर पडा है सीबीआई का छापा ,
ल्यो अबे थक गए सुन सुन कर , ई बताओ आज तक तुमने कितनों को नापा
(न पैसा पाते हो वसूल , न कानून का शूल , सब जाते धीरे धीरे भूल ...बंद करो बे ई डिरामा छापा छापा का)


महिला से दुर्व्यवहार के आरोप में रॉयल टीम का एक खिलाडी हुआ गिरफ़्तार ,
काहे का रॉयल बे टुच्चों , साले जेंटलमेन खेल का बेडा गर्क कर दिए यार
(तनिक और करो बंटाधार ...ताकि ससुरा परमांनेन्टली बंद हुई जावे)


मंगलवार, 15 मई 2012

मेरा तो यही अंदाज़े बयां है .......















कार्टून पर प्रतिबंध लगाओ , फ़ेसबुक और गूगल को कर दो चाहे बैन ,
मैं उठा के कोयले का टुकडा, लिखूंगा सडकों पे ,छीनूंगा तुम्हारा चैन
(लगाओ न लगाम मेरी सोच पे , बोलो है , हिम्मत)


लखनऊ में निर्मल बाबा के खिलाफ़ मुकदमा हो गया दर्ज़ ,
लेकिन बाबा टीभी पर अब भी कर रहे किरपा , सुन रहे हैं सबका मर्ज़
(दसबंदी का करो इंतज़ाम ले ले करके कर्ज़ ...ई देस में बाबा एंड ढाबा ,दुन्नो फ़ुल इस्पीड में चलते हैं)


ये मत भूलना सियासत , हम ही लोकतंत्र हैं ,हम इस देश की अवाम हैं ,
हमसे ही वज़ूद है तुम्हारा , हम ही आगाज़ हैं और हम ही तुम्हारा अंज़ाम हैं
(जो हम मिट्टी तो तुम मिट्टी , जो हम पानी तो तुम पानी ....).


अनु आगा ने शपथ ले ली , सचिन और रेखा का अब हो रहा इंतज़ार ,
टी एन शेषण , किरन बेदी , जैसों को बुलाने की कभी हिम्मत दिखाओ यार
(बोलो है हिम्मत , अबे ओ मजबूत जोड के लोकतंत्र वालों)


सेना में अनुशासनहीनता पर हुआ रक्षा मंत्रालय सख्त ,
संसद की अनुशानहीनता के लिए मगर आपको कितन चाहिए वक्त
(जीर्ण शीर्ण सी काया तेरी ..और श्वेत तुम्हारा रक्त)


बोले हैं चाचा गडकरी ,अगिले चुनाव में राजग फ़िर सत्ता में आएगा ,
भिम बार से मांज मांज के फ़िर से , इंडिया शाईन कराएगा ..
(निरमान से लेकर साइनिंग तक ,भाई लोग इंडिया को चमका के ही मानेंगे)


साठ साल की हो गई संसद , लोकतंत्र का जरूर मनाओ जश्न ,
कितने साल और चाहिए होने को परिपक्व , उठ रहा मन में प्रश्न


राजधानी एक्सप्रेस में घटिया खाना , खाके सांसद समेत कई हुए बीमार ,
अच्छा बेट्टा तभी खबर है आई , टरेन में तो अईसने खाना रोज़े मिलता है यार ॥
(दीदी ..आपनी देखते होबि कि ना ..ई कि गंडोगोल होईचे रे बाबा)


साठ साल की हुई रे संसद , पीएम विशेष सत्र में बोले हैं ,
चलो शुक्र है आखिरकार , रिटायरमेंट की उम्र में मुंह तो अपना खोले हैं


राष्ट्रहित सर्वोपरि है , बोलीं अध्यक्षा , सीरीमती मीरा कुमार ,
पब्लिक तो समझबे करती है , तनिक नेताजी को भी तो समझाओ कोई यार



बोले हैं पिरधान जी , लोकतंत्र हुआ और भी मजबूत ,
ल्यो और सुनो ,अबे ई लोकतंतर है कि है लोकतंतर का भूत
(लोकतंतर तो कब्बे का भईया जी शुशाईईईईईड कर लिया हो पिरधान जी)


बोले चचा अडवाणी कल , पार्टियां करें एक दूसरे की विचारधारा का सम्मान ,
घनघोर घोटाला करके साइन करें इंडिया , आ घपला से करें भारत निरमान
(गनवा आता है न जी कि गा के सुनाएं , हो रहा भारत निरमान)



गिलानी ने कहा , हाफ़िज़ के खिलाफ़ सबूत नहीं हमरे पास ,
भेज दो इंडिया ,बिरयानी खिलाएंगे ,उहां तो साला खाता होगा घास
(अबे कसाब बना नवाब , आप देखे नहीं जनाब ???)



राष्ट्रपति ओबामा पर क्लिंटन हैं नाराज़ , दिया पद छोडने का सुझाव ,
अबे अईसा का करे दिहिस ओबमवा हिलेरी को , अचानक काहे इत्ता ताव
(कौनो भित्तर का है घाव , कुछो समझे नहीं रे भाव ..)


बोले बाबू जेटली ,सुधार की जरूरत है , भारतीय राजनीति की तस्वीर में ,
कद्दू सुधरेगी तस्वीर पोलटिक्स की , जब अईसन नेता हैं, देश के तकदीर में
(अबे फ़ेंको उठा के सबको गंगा जी के तीर में)


एयरसेल में अधिक विदेशी निवेश है , आया जांच के घेरे में ,
ल्यो एक बढी और मुसीबत , फ़िर से फ़ंस गए लुंगी बाबू फ़ेरे में
(लुंगी बाबू ...बोले तो ..???)


भाजपा से भली है कांग्रेस , अभी अभी फ़रमाए हैं , येदुरप्पा ,
हा हा हा मेडम्म का गुणगान किए हैं , मान के अपना पप्पा
(पोलटिस जो न कराए , बप्पा रे बप्पा)



साख को लेकर चिंतित संसद , गरिमा बनाए रखने का पास हुआ प्रस्ताव ,
अबे शाख की चिंता जाने दो , जड काट के ,दे चुके ,पहिले ही गहरा घाव ,
(काम धाम कुछ करते नहीं , बस खाओ फ़ैला के पांव)



झूठी निष्ठा , झूठी चिंता , झूठी है संवेदना , तुम्हारा जब सफ़ेद हुआ है खून ,
भूख ,अपराध , भ्रष्टाचार कुछ भी नहीं दिखता , तुम्हारा मुद्दा है बस इक कार्टून



साठ साल का हुआ लोकतंत्र कल से तुम पीटे जा रहे हो ढोल ,
काले धन , जन लोकपाल , भ्रष्टाचार पर मुंह से एक भी फ़ूटे नहीं रे बोल
(अबे कोई एक तो बोलता - भक्क साला , दु पईसा का औकात नहीं है)


बोले हैं बाबू लुंगी , मार डालो , पर ईमान पर , मत उठाओ सवाल ,
अच्छा बेटा लुंगी , हम क्वेश्चन भी न करें , तुम उडाते जाओ माल ,
(काहे हो गए पीले लाल , नोट पीट रहा है तुम्हरा लाल)



टेलिविजन चैनल एक घंटे में 12 मिनट से ज्यादा विज्ञापन नहीं दिखाएंगे ,
आयं ! ई का , लेकिन एक घंटे में दिखाने लायक , कार्यक्रम कहां से लाएंगे ,
(देखिए हो मर्दे , विज्ञापन दिखाइए कि कार्यक्रम , दुन्नो कूडा ही है आजकल)



पोंटी चड्ढा की मुश्किलें बढीं , पकडी गई 175 करोड की अघोषित आय ,
हाथी के संग थी दोस्ती , तो इतना तो खाना बनता ही था , हाय हाय ,
(ई बहिन जी के रिलेटिव भाई जी हैं ..)


अबे तुमसे कार्टून तक तो संभाले नहीं जाते , क्या खाक तुम हो बडे हुए ,
साठ साल साठ साल गा रहे हो कल , हो बैसाखी पर अब तक खडे हुए ..
(लूलों लगडों की सरकार , दुहाई तोरी बुद्धि रे)


जिन बच्चों का हवाला देकर ,माननीय भकभका के ,किताबों से कार्टून रहे हैं हटा,
तुम क्या समझे इसका मतलब , और वो क्या समझे , उनसे ही पूछ के देखो ज़रा
(मुझे यकीन है कि वो तुमसे ज्यादा समझदार हैं , न मानो , तो पूछ लो)


पूछी सीरीमती जी , कैसा हल्ला मचा है आजकल , खबरों में क्यूं है इतना है लोड ,
हमने समझाया, साठ साल का हुआ लोकतंत्र , संसद का चल रहा है महाएपिसोड ,
(ऊ फ़ौरन अंडरइश्टैंड कर गईं , महाएपिसोड एकदम्मे लपक के बूझ गईं)

शनिवार, 12 मई 2012

जश्ट ...झा जी इश्टाईल

















जरूरी ये नहीं कि आपने उठाई है आवाज़ , लेकिन उसे उठाया है क्या आज ,
शुरू तो होगी लडाई जरूर , आप नहीं करेंगे तो अगली नस्ल करेगी आगाज़




अल जवाहिरी के अपने यहां होने से पाकिस्तान ने किया इनकार ,
हा हा हा अईसे नय मानेगा , अबे एक अमेरिकी हेलिकाप्टर भेजो यार


राजमा-चावल पिरधान जी , पिरधानी मिली हैं पिज़्ज़ा ,
भभोड के खाए देस को , दुन्नो ले रहे मज्जा , जरूर मिलेगी सज़्ज़ा




सुने हैं कि , इस देश में बढता जा रहा है उर्ज़ा का संकट ,
बढबे करेगा जब इत्ता हेलोजन जलेगा , आ बेचोगे आईपीएल का टिकट


(अबे इश्टेडियमवा सबमें का सौर उर्ज़ा फ़िट किए महाराज)


राष्ट्रपति पद की दावेदारी पर कांग्रेस हो गई है मौन ,
जब सबके नाम पर है इत्ती दुविधा तो महामहिम फ़िर बनेगा कौन


(बाबा को ही अपाइंट किया जाए ..बा देस पर फ़ुल्ल किरपा बना देंगे)




इंडिया में भर रहे चोर लुटेरे दिन रात , फ़िर भी भरती नहीं उनकी तिज़ोरी रे ,
भारत में रोज़ मर रहे हैं भूखे , सरकार सडा रही है अन्न , रखने को नहीं बोरी रे




सब्जियों की कीमत पर नहीं गल रही है सरकार की दाल
अबे ये सरकार की इनायत है , सब्जी सब्जी नहीं लगती , दाल लगे न दाल


ल्यों और सुनो : कैंसर के ईलाज में मददगार होगी हल्दी ,
तुम खबरवे छापो , हल्दिया का पेटेंट करा लेगा अमरीका तुमसे जल्दी


(सुस्तियास्टिक गोरमेंट ....सुस्त एंड स्लीपी सरकार)




मिसेज़ हिलेरी : सईद मामले में अमेरिका पाक पर दबाव बनाएगा ,
अभे भक्क साला , भगाओ इसको , बदले में अमेरिकवा डील कोई खराब बनाएगा


(अबे फ़िर बेचने आई होगी मेडम्म ,कोई नया मशीन)




बोल दिए हैं फ़िर से बबा रामदेव , हाय दिल्ली पहुंच गए हैं डाकू ,
हाय हाय बाबा कपालभारती : जब तब चलावें सरकार करेजा चाकू


(सरकरवा कलेजा चाक चाक हुई जाए रहे)




हिलेरी आर्डर दिहिस है , भारत , ईरान से दूरी बनाए रखे ,
ई है असलियत , अबे इत्ते दिन , महाशक्ति बनने का तुम बस सपना दिखाए रखे


(माने अब ई अमेरिका से पूंछें कि स्कूटर में केतना तेल भराना है बे )




सिकूरटी मुनिस्टर माने रक्षा मंत्री : सेना हर चुनौती का मुकाबला करने को तैयार,
जे बात , तैयारी में , घटिया टिरक तो हईए है , बस खरीद लो घटिया से हथियार


राष्ट्रपति चुनाव पर पलट रहे हैं खूब सारे दांव ,
कट्टल हैं जी , कभी पांव पे कुल्हाडी , कभी कुल्हाडी पे पांव


(हाय लुट गया सारा गांव)


आज चांद होगा पृथ्वी के सबसे पास ,
दाल रोटी पे आफ़त है , खाने को मिलेगी घास


(चांदवा एतना महंगाई अफ़ोर्ड नय कर सकेगा पक्का)




विश्व खेल जगत में भारत के खिलाडियों का हो गया बोलबाला ,
किंतु पईसा बस किरकेट में , बांकी सब झिंगालाला झिंगालाला


(ऊ लाला ऊलाला ..)


गठबंधन सरकार चलाना एक कला है : बोले हैं शरद पवार ,
आ घोटाले कर कर के चलाना विज्ञान , जियोह्ह मेरे सरकार


(केतना बेलेंस गोरमिंट मिला है आपको देखिए)




सिंघवी की जगह नाईक बने संसदीय समिति के अध्यक्ष ,
चलो ठीक है , ओईसे पुरनका वाले भी थे कई काम में दक्ष


(उनका तो चलचित्र तक फ़िल्माया गया था जी)




अबे ई जो माननीय, मिनट मिनट पे , अपने मान अपमान का रोना गा रहे हैं ,
इन्हें समझाओ यार , सेवक हैं ,बस , पांच साल का प्रोबेशनरी ड्यूटी बजा रहे हैं


(अबे परमानेंट भी नहीं हो यार , तब एतना हल्ला मचाते हो)




पिरधान जी की बैठक में असहमति , एनसीटीसी को किया सबने खारिज़ ,
दुर अपने तो बौक हैं , मुरुतिया जैसे , सरकार को खुदे मार गया है फ़ालिज़


(बौक माने गूंगा , बोले तो MUTE , बूझे न)




दादा मुखर्जी बोले हैं , गठबंधन सरकारें बाधक है सुधारों ,
तो का हुआ , अबे बटोर लो , घोटाले तो हो रहे न हज़ारों में


(अरे हज़ारों मतलब , हज़ार लाख करोड जी)




उत्तर पिरदेस में परमोसन में आरक्षण का सिस्टम हुआ खतम ,
अबे देखना , पाल्लामेंट में गर्मी होगा , उबल जाएंगे बलम


(संसोधन होगा फ़ौरन ही , आ फ़िर वही सिस्टम ..हो बोलो तारारा)




यूपीएससी के परिणाम में में लडकियों ने फ़िर से बजाया डंका ,
इसके बावजूद भी हम रोज़ जलाते रावण , मगर देस हो गया लंका


(कमाल तो तब हो जब , ये सब दुर्गा रूप निकलें , शत्रु संहार को तत्पर)






ई देस का अजबे ट्रेजडी , एक तरफ़ तो दावा कि पहुंचेंगे अपना राकेट लेके MOON
आ दूसरी तरफ़ है मचा बवेला , साठ साल में भी समझ ना आए इन्हें कार्टून




बोफ़ोर्स के बाद पहली बार मिलने जा रही है सेना को नई तोप ,
चलो भई , सेना को हो न हो फ़ायदा , घोटाले का मिला नया स्कोप

गुरुवार, 3 मई 2012

झा जी रिपोर्टिंग बैक सर जी





पिछले दिनों अनियमित रहने के बाद अब फ़िर से गाडी को पटरी पर लाने की फ़ुल्लम फ़ुल्ल तैयारी चल रही है । इन दिनों जो कुछ पढते देखते रहे , और उस पढ देख कर जो भी ये मन बेसाख्ता सा कुछ कह गया .,..लीजीए आपके सामने है
.





संसद के बजट सत्र का दूसरा चरण होगा हंगामेदार ,
अबे बाहर भी कोई कम हंगामा , नहीं करते हो यार
.

अक्षय तृतीया पर आज 15 टन सोना बिकने की है उम्मीद ,
दस परसेंट को लेने दो बे , नब्बे प्रतिशत, तो सब्जी रहे खरीद ..
.

ल्यो डूब गया एक और टाइटेनिक और उसका भेलन्टाईन ,
हाय अबकि तो सुने हैं , आसिक को करना पडा रिजाईन
.

ल्यो भईया हुई जाओ तैय्यार , साइड इफ़्फ़ेक्ट ऑफ़ ...टू जी घोटाला ,
कॉल रेट , बढेगा इत्ता कि बस , गाते रहोगे पुतरा ...ऊ लाला , ऊ लाला
.

चार साल के बच्चे ने खिलौना न लाने पर पिता को गोली दी मार ,
ओह यानि कि महाप्रलय न भी आए तो , दुनिया अब खतम ही समझें यार
.

लोकपाल पर कम हुए मदभेद : ई अब कह रही है सरकार ,
आयं , अबे अईसा का देख लिया , फ़ट्ट बदल लिए बिचार
.

केंद्र सरकार में फ़ेरबदल के संकेत , पद छोडने को चार मंत्री भी तैयार ,
आयं, अबे ई का , अबे अब तो फ़ुल्ल शर्म कर लो , अब तो गिर जाए सरकार
.

वित्त राज्यमंत्री बोले , नियंत्रण मुक्त होंगी कीमतें , यानि डीज़ल में लगेगी आग ,
उठाओ रे लाठी प्रजाजनों , थकूच डालो , बहुत फ़न बढा रहा है महंगाई का नाग
.

इंडिया में पोलटिस्स की रे कैसी बजी है बैंड ,
खुदे सरकार अपने एम पी सब को कर रही सस्पैंड
.

ल्यो जी ताजा ताजा सुन रहे हैं अभी ई घनघोर समाचार ,
सालों पहले एक ठो महाअभिनेता , नेता होते ही , हुए एक नेता के शिकार
.

अबे बंद करो ई चैनल सौ ठो , फ़ोड के फ़ेंकों इस रिमोट को यार ,
दिन रात करें हैं ओवर टाईम , मगर दिखा नहीं सकते "चित्रहार "
.

जो गद्दियों पर बिठाना जानते हैं ठाकुर , उन्हें सियासत फ़ूंक देना भी आता है ,
हम हैं जो समझाया ,मिटा देते है सब , मिटाने से पहले भला कौन समझाता है
.

पोलटिस खराब ,पोलटिसियन भी खराब , का अब मत मचाइए हल्ला ,
लो चली सियासत चाल रे ऐसी , संसद में बैठे आइला , ले कर अपना बल्ला
.

सरकार के हैं सारे घोटाले और घोटाले की सरकार है ,
भूख से होती हर मौत की , सरकार ही जिम्मेदार है
.

सुस्त है रफ़्तार यूं , जाने इस देश में तभी क्या क्या न हो रहा है ,
रोज़ होते घपले घोटालों के धमाकें में , कैसे मज़े से सो रहा है ..
.

अन्ना हज़ारे ने रखी भ्रष्टाचार के खिलाफ़ यूएन संधि लागू करने की मांग ,
हो गया लागू , जब एक ठो बिल अपना पास करने में सरकार की कांप रही रे टांग
.

बोफ़ोर्स घोटाले में अमिताभ को फ़ंसाने का दबाव था ,
अबे ई तो सबको पता था कि , तुम्हरा इंटेसन पहिले भी खराब था
.

सियासी पिच पर अब मास्टर बिलास्टर अपना बल्ला भाजेंगे ,
आ इसी को अपना महान काम बता के हाकिम नाचेंगे
.

अईसन अचूक टाईम पे बोफ़ोर्स से दगा , अमिताभ जी का बयान ,
आइला को एमपी बनाया , समझ नय रहा है कोई ,खुश हो कि हैरान
.

ऊ पी के बाद महाराष्ट्र में भी करेंगे दौरा , अईसा किए है राहुल बबा डिसाईड ,
हा हा हा हा तैयार रहो बे महाराष्ट्र कांग्रेस , बोलो भईया जी शुशाईईईईईईईड



हा हा हा माननीय सबका इन दिनों हाय घनघोर चल रहा अपमान,
बार बार लुटने का दे रहे दोहाई , अबे का अब घंटा बचा सम्मान


रामदेव बाबा पर बिफ़र गई , सारी सियासी जमात ,
अबे गनीमत है जो बोल रहे हैं , जनता तो लगाएगी लात ..


बताइए हो ई खबर है , ममता दीदी ने गाना गाया ,ममता दीदी ने खाना खाया
नौटंकी , दाती बाबा ,कपिलवा चुटकुला, न्यूज़ है, हाय कैसा ये जमाना आया



बजट के बाद कई मंत्रियों पे गिरेगी गाज , बदली नज़र आएगी दिल्ली सरकार
अबे ई का खबर है बे , दुन्नो लुटेरा है , काहे का बजट और काहे की सरकार..



यूपी में एक और घोटला, एफआईआर हुई दर्ज.
हाय हाय डाक्टर बदल गया , मगर बदला नहीं रे मर्ज़


अबे सुनो , ई महामहिम के नाम पे , इतना जादे करो नहीं बिचार ,
फ़ुल्ल देस पे हो जाएगी किरपा , ई बाबा को ही बना दो यार ..




तो दोस्तों , आपसे पहले ही कह चुके हैं कि ब्लॉगिंग को अभी घनघोर ब्लॉगिंग की जरूरत है , सो हे मित्रों , लिक्खाडों , और पढाकुओं , सब तैयार हो जाएं , अपनी उंगली की मालिश करा लें , उसे पेचकस से कस लें और फ़ौरन ही रिपोर्ट करें 

गुरुवार, 8 मार्च 2012

चिन्हिए तो ...हम भी हैं क्या






ई प्रागैतिहासिक काल में जब हम होली मनाया करते थे ..तबका एक ठो छवि चित्र संग्रहालय में से छांट के जब तब हम अईसे अवसर पर इहां साट देते हैं ..चिन्हिए तो ..हम भी हैं क्या

सोमवार, 30 जनवरी 2012

महाशतक से पहिले महाप्रलय आ गया किरकेट टीम पर




भारतीय क्रिकेट टीम आखिरकार कंगारूओं के देश में कूद कूद के चलना तो दूर चारो खाने चित्त हो गई वो भी इत्ती चित्त कि देश की सेंटी जनता सेंटीमेंटल होकर अपनी उस टीम का जलूस निकालने में लग गई जिस टीम के विश्व कप जीतने पर जनता ने खुद जलूस निकाला था ।

भारतीय टीम कंगारूओं के साथ रेस में फ़िसड्डी आई , कोई बात नहीं अब दौडेंगे तो जीतेंगे भी और फ़िसड्डी भी आएंगे , लेकिन जुलम पे महाजुलम ये हुआ कि शतक तो शतक ससुरा एक महाशतक नहीं बन पाया । तेंदुलकर जेतना टेंसन में अपना इंडिया टीवी से बिंदिया टीवी तक हलकान हैं । तमाम विश्लेषक , कमेंटेटर सब आलोचना से लेकर नोचना तक चालू रखे हुए हैं । हो भी काहे नय ,पायदान से लेकर पोजीसन तक सब्बे डाऊन हो गिया । ऊपर से कोहलिया जम के उंगलबाजी भी कर दिए ओन्ने  ।कौनो खिलडिया सबका रिटायरमेंटी का बात कर रहा है तो कह रहा है कि हटाओ बुढबा सबको । माने कुल मिला के जईसे किरकेट हाकी हुई गई ,हाकी का प्रेस्टीज़ नय , हाकी का मारकेट भैल्यू के हिसाब से बोले हैं । 



अरे जगिए जनार्दन , आईपीएल आ रहा है बस समझिए कि झिंगालाला नर्तकियों के करेजा मार परफ़ारमेंस के बीच कलरफ़ुल ट्वेंटी-ट्वेंटी का लुत्फ़ उठाते हुए आप अपने इन्वैस्टमेंट का डायरेक्ट मल्टीप्लीकेशन होता देख सकते हैं अरे माने सट्टा इन्वैस्टमेंट फ़ेस्टीवल सेलिब्रेट करते हैं न ।

एक से एक लंगडा लूलहा ,कनहा कोतडा टाईप का भी तमाम खेलाडी जम के बल्ला भाजेंगे आ चौआ छग्गा पर बडी जोर से लोग नाचेंगे त समझ जाइएगा कि कंगारूआ सब के साथ ए लंगडी टांग का त किरकेट को कुछ समय के लिए बिंटर भकेसन पर भेज देना चाहिए , आ कुछ समय बाद । हा ..हा ....हा....हा...हा.. दुर मरदे कुछ समय बाद तो महाप्रलय आइए जाएगा , ससुरा महासतक बने कि न बने ।



रविवार, 29 जनवरी 2012

सतियानासी मोबाइलवा










उस दिन एक ठो सहकर्मी दोस कहे कि चलिए एक ठो नयका मॉडल का मोबाइल दिलवाइए , हम कहे कि तो ई में हमको काहे ले जा रहे हैं महाराज , हम तो टेक्नीकली एतना स्ट्रॉंग हैं कि कै मर्तबे तो अपना मोबाइल का मॉडल का नाम ही भूल जाते हैं । खैर उनके साथ हम भी लद के दुकान तक चल दिए । उहां मित्र जी मोबाइल दिखाने वाली बालिका से मित्र ने फ़ोन खरीदने से पहिले टोटल जानकारी मांग लिया ,कैमरा , एफ़एम ,इंटरनेट , जीपीएस , जीपीआरएस , और जाने कौन कौन आईएएस आईपीएस तक सब कुछ , बालिका भी हुलस के सब को एकदम डिटेल में समझा बुझा दी । मित्र से हम धीरे से बोले , अमां ई तो पूछो बे कि फ़ोन से फ़ोन तो किया सुना जा सकेगा न बढियां से , दोस हमको ई निगाह से देखे मानो कह रहे हों ...इह्ह्ह्ह! रहिएगा झा जी के झा जी न । अरे ई कौनो पूछने वाला बात है जी । आगे हम चिंतन मोड में चले गए 


हम सोच रहे थे कि अब ई ससुरा मोबाइल खाली दूरभाष नय रहा । बल्कि ई कहें कि दूरभाष के अलावे ही सब कुछ हो गया तो साईत ठीक रहेगा । माथा को थोडा डोलाके जब विसराम पोजीसन में लाकर हिसाब किताब लगाए तो देखे कि अरिस्स सरबा ई मोबाईलवा तो बहुत कुछ को लील गया जी । एक समय हुआ करता था , चिट्ठी पत्री वाला जमाना ऊ में भी हमारे जैसा चिट्ठकडा । एक लंबर के चिट्ठी लिखडुआ बन गए थे । हालत ई कि नौ ठो पत्र मित्र के अलावे रेडियो, समाचारपत्र , पत्रिका आदि में घनघोर रूप से चिट्ठई चलता था । गाम में मां को लिखी चिट्ठी अब भी उनका बक्सा में धरल है ।जानते हैं कि मां एक एक चिट्ठी को पचास पचास बार बढ जाती थी । पहिले फ़ोन फ़िर ई मोबाईल पूरे रामखटोला को बंद कर दिया । फ़ोनवे पर परनामपाती हाल समाचार डायरेक्ट फ़ेस टू फ़ेस ,बस हो गिया बंटाधार लेकिन कभी मोबाइल पर मां से ऊ बात सब नय कह सके जो चिट्ठी में तफ़सील से कहते थे । 

अरे चिट्ठी आ पेजर को मारिए गोली ई मोबाइलवा तो ट्रिन ट्रिन वाला फ़ोनवो को डुबा दिहिस । घनन घनन वाला गोलका डायल वाला मोटका फ़ोन त अब खाली इश्टार गोल्ड का पुरना सिनेमा में ही दिखाई देता है । आ फ़ोनवा के साथ एक टैम में खूबे चला फ़ोन घर अरे पीसीओ महाराज , एक एक रुपैय्या डाल के बतियाने वाला भी आ फ़ोटो स्टेट के साथ एक दू फ़ोन रखके बतियाए वाला निजि पीसीओ । अरे मानिएगा , कै मर्तबा तो लाईन लगाना पडता था । त ई मोबाइल पीसीओ , जेसीओ आऊर जेतना भी ओ था सबको गीर गया , आप लोग के इंग्लिश में बोले तो दे वर डंप्ड । लेकिन आह ,क्या मजा आता था एक रुपये का सिक्का डाल के तीन मिनट का कॉल करने में आ फ़िर आखिर का आधा मिनट में टूं .टूं ..टूं  , माने कि जो ई गपियाना चालू रखना है तो दक्षिणा बढाओ तात । और जब कौनो आसिक अपनी मसूका , रूठी हुई मासूका , सोचिए कि सुपरलेटिव डिग्री का इंतहा है ई पोजीसन मासूका का , उसको फ़ोन अप्र दुनिया के तमाम परपोगेंडा करके मनाने के लिए एक दर्ज़न सिका मुट्ठी में धर के आपसे अगिला नंबर पे टकर जाए तो तीन सिक्का के बाद आप दुनिया के तमाम लैला मजनूं को भरपेट गरियाए बिना नहीं रह सकते थे । आज ई मोबाईलवापे तो परेम संदेस को भी फ़ारवर्ड टू ऑल करके पूरे परेम का फ़ेम बजा डाला है रे बबा । 

गाम में होते थे तो कनपट्टी से रेडियो सटले रहता था हर हमेसा ही । पूरा दिन आ रात एवररेडी मनोरंजन समाचार सबे कुछ । दिल्ली आए तो पता चला कि एन्ने शर्ट वेव कौनो बनमानुस आउर एम एम घरेलू बुझाता है ।खैर बहुत समय तक कीन कीन कर रेडियो सुनते रहे । अब ई मोबाईल पांडे का भीतर एक दर्ज़न से जादे एफ़एम चैनल धर लेता है , आ कमाल ई है कि चौबीसों घंटा बौखता रहता है । कान में कनट्ठुस्सी लगाए गर्दन टेढा किए मोटरगाडी को चलाते बतियाते दिख जाएं तो समझ जाइए कि मोबाइलीटाईटिस से पीडित हैं कौनो । कैमरा का हाल तो पूछिए मत ,ओईसे तो डिजिटल कैमरा आ मूवी कैम जैईसन इनका अपना वसंज सब ही पुरना कैमरा का बेडा गर्क किया है अब त सुने हैं कोडक वाला सब दिवालिया घोषित हो गिया बेचारे सब , लेकिन मोबाइल के हाथ में आने से कुकर्म से सुकर्म टाईम का तमाम चित्रकारी आ भित्तिकला से ससिकला तक का पिरदरसन कर रहा है भाई लोग । मोबाइलवा का कैमरा देख के ही पहली बार जाने बूझे कि मेगा पिक्सल भी कोई चीज़ होता है आऊर ऊ गाडी के एक्सल से अलग होता है । 

चलिए एतना सब तो झेला जाता है फ़िर भी लेकिन ई मोबाइलवा जौन ची सबसे जादे खतम हो गया ऊ है अपना आज़ादी , अपना एकांत , अपना सुकून ..जब देखो तब टूं टूं टूंटूटूटू ..कन्ने हैं का कर रहे हैं , का करने जा रहे हैं , का कर के आ रे हैं , बिल्लैय्या रे बिल्लैय्या ..अबे ई मोबाईल हौ कि जसूस रे । कै बार तो मन किया  कि उठा के फ़ेंक दें टेंटुआ दबा के इसका लेकिन अब तो कंपलसरी सबजेक्ट हो गया ही सतियानासी मोबाइलवा । जादे लिखेंगे न तो सोनी का किराईम पेट्रोल वाला सब आ जाएगा लडने ,काहे से कि उ सबका टोटले केस मोबाईले से सुलझा लेता है । 

रविवार, 15 जनवरी 2012

पिछले दिनों प्रकाशित कुछ आलेख


पिछले दिनों ,डाक से प्राप्त हुए कुछ प्रकाशित आलेख ।आलेखों को पढने के लिए छवि के ऊपर चटका भर लगा दें । आलेख अलग खिडकी में बडे होकर खुल जाएंगे जिन्हें सुविधानुसार पढा जा सकता है ।


वीर प्रताप ,जालंधर

रांची एक्सप्रेस , रांची

सीमा संदेश ,श्रीगंगानगर , राजस्थान

व्यापार गणेश ,भोपाल, मध्यप्रदेश
 

अभी तक क्राइम टाइम्स , साप्ताहिक ,दिल्ली


बुधवार, 4 जनवरी 2012

अबे कितना सोओगे , का पत्थर हो जाओगे





ल्यो , अबे उत्तम पिरदेस में अफ़वाह उठी, कि, सोए तो पत्थर हो जाओगे ,
जियोह्ह क्या उडाए हो , अबे हो ही जाओ , मानुस रहे तो , हथिनी तले पिचाओगे

अबे जागो बे , ई अफ़वाह का माने है कि , अबे और कित्ता सोते रहोगे , पत्थर बन जाओगे क्या , जागो ..और अभी जागो , और इस बार कुछ अईसा जागो कि सियासत हनहनाते रह जाए । ई पिछला बरस साठ साल में पहली मर्तबा आपका कुंभकरनी नींद से डोला हिला तंद्रा तोडने का जो पिरयास चला , उसीका परिणाम है कि आज सब राजनीतिक दल कम से कम एक बात में तो किलियर हो ही गया । एको गो पलटिया आ एक्को गो नेताजी मंत्रीजी लोग बिल्कुल नय चाहता है कि कोई भी भ्रष्टाचार हटाने के लिए कुछ भी सोचने करने का सोचे , ई हक टोटल में टोटल ,गोल घर को ही प्राप्त है । साड्डा हक एत्थे रख ...चिचियाने के लिए ..आ खास करके ..ई कि उ चिचियाना लोग सुने भी तो आपको रिसि कपूर ,का बेटा होना नेसेसरी हो जाता है । त आपको का लगा , गिटार ले के आपहु कन्नो साड्डा हक करेंगे आ ..जनार्दन से जार्डन बन जाएंगे ..अरे , जार्डन ,फ़िलीपींस छोडिए , बनरपट्टी दास बनके रह जाएंगे , सिलेमा के उलट होता है जी रियलटी में ।






एक तो साला इहां , हवाई जहाज उडे न उडे , आ ई कोहरा में का खाक उडेगा , देखा जाए हालते तस्स्वुर कि ,

आठ विमान रद्द , कई लेट , टरनों के भी थमे पहिए ,
अबे हटो , हुर्रर्र , हर साल का इहे रोना है ,कुछ तो, नया कहिए ...

साले हर साल ..वाय दिन कोहरा वेरी , कोहरा बेरी गाते रहते हो भर ठंडा


तो जहाज उडे न उडे , अफ़वाह तो गज्जबे उडता है , अभी कुछ दिन पहिले का काला बंदरवा याद है कि भूल गए हो । अबे दिन दहाडे गोरा बंदर ,भूरा बंदर ,काना बंदर ,सब कुछ लुट्टम लुट्ट मचाए है , आ लोग बताह काला बंदर  के लिए , सोच रहे हैं कि अगर इंडिया टीवी वाला सब तब होता त बेचारा काला बंदर पे कै ठो एक्सकिलुसिव रपट दिखा डालता । लेकिन खैर , काला बंदरवा का बैड लक , आ मानिए तो इंडिया टीवी का भी एतना ब्राइट एपिसोड भी हुश गया  आप की अदालत  में साक्षात्कार होता काला बंदर का । चलिए छोडिए बंदरवा को , काहे और कितना उंगली किया जाए ।


तो कुल मिला के हुआ ये कि , कल परसों की रात बात ये फ़ैली कि , जो सोएगा वो पत्थर का हो जाएगा । अबे सोएगा से मतलब ,आलरेडी सोया ही तो है , न त एक बात बताओ सवा सौ अरब को सवा पांच सौ लोग मुगली घुट्टी पिलाते जा रहा है , दो बूंद जिंदगी के ,बांकी टोटल बूंद देसी के । लेकिन इसका एक लाभकारी ज्ञान ये हुआ कि यदि आप अभी निसाचर कटेगरी का नेटियास्टिक बंदा से पूरा रात उल्लू के जईसे बईठ कर घंटापचीसी बांचते रहते हैं तो ई फ़ैदा है कि ,आप ललटेन बन जाएं ,कुर्सी पर एक्के पोज में बैठल बैठल केकडा दास बन जाएं ,पत्थर तो नहिएं बनेंगे । तो हे , पार्थ , पहिचानो सबका स्वार्थ , आ टोटल समझो भावार्थ कि

अबे जागो हे जनता , आ जनार्दन बनके दिखाओ अब ,
अबे या तो सो ही जाओ ,या पत्थर ही हो जाओ अब ॥


गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

आओ बात करें ............१

कार्टून गूगल से साभार


इस पोस्ट के साथ ही मैं चुनाव पूर्व एक आम आदमी के रूप में , अपने विचार यहां बांटता जाऊंगा , मेरी कोशिश होगी कि बात उन पांच राज्यों के बहुत ही बडी जिम्मेदारी उठाने वाले साथियों के साथ अन्य दोस्तों के लिए भी एक सलाह और विमर्श के रूप में सामने आए । विश्व की राजनीति बहुत तेज़ गति से बदल रही है और देश बदलता है नागरिकों की सोच बदलने से । देश पिछले साठ बरसों से एक ही करवट पर है और बहुत गहरी नींद में था , अब ज़रा सा खटका हुआ है और करवट बदलने का वक्त है । चुनाव से पहले तक अब इस ब्लॉग पर बातें होंगी , बहस होगी , सिर्फ़ इस बात पर कि लोकतंत्र में हम कहां हैं , हम कौन हैं । इसलिए अबसे रोज़ यहां आओ बात करें ............................................

आओ बात करें ......१

देश को इस साल क्या मिला , और क्या नहीं मिला ये तो भविष्य के दिनों में ही ठीक ठीक फ़ैसला हो सकेगा , किंतु इतना तो यकीनन तय है कि ये फ़र्क अब आ चुका है कि , देश के सबसे बडे रुतबे , ओहदे और पद वाला व्यक्ति भी जबरिया एक ठेलागाडी वाले को ये समझा नहीं सकता कि कि उसके लिए सोचने करने का अधिकार उसके ही पास है , और ठेलागाडी वाले के पास सिर्फ़ एक रास्ता है , वो है मान जाने का । अब लोगों को बहुत अच्छी तरह से पता है कि पांच वर्षों में एक बार पूरी लकदक और सपनों के सौदागरी रूप को लेकर उनके बीच आने वाले का कर्म और धर्म चुनाव जीतते ही कैसे बदल जा रहा है । और उस पर तुर्रा ये कि , वे उलट कर जनता को ही आंखें दिखा रहे हैं , चोप्प अब जब तुमने ये अधिकार हमें दे दिया है तो फ़िर चोप्प करके उस अधिकार का उपयोग होता देखो । हम जैसा जो भी बनाएंगे वो जाहिर है कि जनता की सोच , उनकी काबलियत , उनकी ईमानदारी से बेहतर ही होगा ।


वर्ष २०११ के लिए यदि ये बात विस्फ़ोटक रही है कि बरसों से जंग खा रहा जनांदोलनी स्वरूप एकाएक जाग गया , और अब जबकि वर्ष २०१२ के लिए पहले ही ये माना और कहा जा रहा है कि ये महाप्रलय का वर्ष होगा तो फ़िर भला इससे बेहतर वक्त और क्या हो सकता है भारतीय जनतंत्र की व्यवस्था को ठोक पीट कर सही करने का । पूरा विश्व ये तय कर रहा है कि , उन्हें कल कैसा चाहिए तो फ़िर भारत ही पीछे क्यों रहे खुद को अभिव्यक्त करने में । पिछले कुछ दिनों में देश के जनप्रतिनिधियों ने जो भी कहा , सुना , बताया , समझा , आरोप लगाए वो किसी भी तर्क और कारण से भारतीय जनमानस की अभिव्यक्ति नहीं कही जा सकती । आज जो जनता महंगाई के साथ अपने जीवन के सारे क्षणों को जोर से जोर लगा कर खुद को बचा पाने के लिए संघर्षरत है , वो जब देखती है कि देश का , देश के लोगों का , देश की मिट्टी , खनिज , संसाधनों का दोहन करके निकाले गए पैसे को सिर्फ़  कुछ लोगों ने अपने हित ही नहीं बल्कि विलासितापूर्ण जीवन के लिए लगा रखा है और ऐसा लगातार हो रहा है तो फ़िर कहीं किसी सीमा पर जनता भी प्रतिक्रिया देने को उद्धत हो गई है ।


ये तो पहले ही तय था कि सत्ता के खिलाफ़ लडाई , वो भी किसी ऐसे वैसे मुद्दे पर नहीं बल्कि बनने जा रहे एक ऐसे कानून पर , जिसके बनने में ज़रा भी असावधानी या ढील दी जाए तो मामला आत्मघाती हो सकता है , तो ऐसे मुद्दे पर सीधे सीधे आम जनता के बीच से कुछ लोग इकट्ठे होकर , न सिर्फ़ सरकार की गलतियों को बाहर ले आते हैं बल्कि उससे बेहतर विकल्प प्रस्तुत करके , सरकार को उसके खिलाफ़ अपना नज़रिया व्यक्त करने पर मज़बूर कर देते हैं तो फ़िर ऐसा करने वालों के लिए ये बडा आसान सा नहीं होगा । पिछले दिनों लगातार एक के बाद सिविल सोसायटी के सभी सदस्यों को ,गैर जनलोकपाल विवाद की सुर्खियों में बनाए रखने की पूरी कोशिश की गई और बहुत हद तक कामयाब भी रहा गया । अतंत: अन्ना हज़ारे का ताज़ातरीन आंदोलन अनापेक्षित रूप से टल गया । सिविल सोसायटी के सदस्य  और इस मुहिम से जुडे लोग अब नए सिरे से ये सोचेंगे कि आगे की लडाई कैसे लडी जाएगी । हालांकि , ईशारा तो दे ही दिया गया है कि , आगामी विधानसभा चुनाव में इस बात को प्रमुख मुद्दे के रूप में देखने की अपील की जाएगी कि जनलोकपाल के मुद्दे पर किसका कैसा रूख रहा । ज़ाहिर है कि कांग्रेस सत्तारूढ और सबसे प्रमुख दल होने के कारण सभी जगह निशाने पर होगी ही ।

अब ये उन पांच राज्यों के नागरिकों पर , बहुत बडी जिम्मेदारी होगी कि वे अपने रुख से , अपने माहौल से , और अपनी राजनीतिक प्रखरता से पूरे देश के सामने कम से कम अपना नज़रिया तो रख सकें । ये चुनाव इसलिए भी बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि अब शायद पहली बार देश के इतिहास में लोग " इनमें से कोई नहीं " जैसे विकल्पों की न सिर्फ़ मांग रखें बल्कि उसका ही चुनाव भी करें । पिछले दिनों बार बार राजनीतिज्ञ दों बातों का दंभ भरते रहे हैं कि वे जनता के चुने हुए प्रतिनिधि हैं इसलिए वे ही प्रतिनिधित्व करने का अधिकार रखते हैं और दूसरी ये कि किसी भी ऐसे जनांदोलन और जनसमर्थन वाले व्यक्ति को सीधे चुनाव में आकर अपनी उपस्थिति दर्ज़ करानी चाहिए । नियति का चक्र देखिए कि आज वो स्थिति खुद चल कर आ गई है । पांच राज्यों के चुनावों में मुद्दे कौन से होंगे , और पार्टियां कौन सी होंगी ये अहम नहीं है अहम होगा एक आम आदमी का एक वोटर के रूप में प्रतिक्रिया देना ।

ये समय है जब आम जनता जो अब तक सडकों पर उतर कर अपनी बात कह रही थी , समाचार माध्यमों में , संचार माध्यमों में और हर उस जगह जहां अभिव्यक्ति दी जा सकती है अभिव्यक्ति दे रही थी और है वो अब आमने सामने अपने जनप्रतिनिधियों से सारा हिसाब किताब पूछे । और ये इसलिए भी महत्वपूर्ण होने जा रहा है क्योंकि अब जनता ये समझ रही है कि जब उनका चुना हुआ ही प्रतिनिधि बन सकता है तो फ़िर वो वैसा हो जैसे वे खुद हैं । आम जनता के लिए ये एक होने का समय है , एक होकर संगठित होकर आगे बढने का समय है । अब बरसों से चली आ रही तटस्थता और अक्रियाशीलता को तोडना होगा , और आम लोगों को दुनिया को ये साबित करके दिखाना ही होगा कि असल में देश के लोकतंत्र का स्वरूप कैसा होना चाहिए ।



सोमवार, 28 नवंबर 2011

जनता का गुस्सा








वर्तमान परिदृश्य में जिस तरह से जनता राजनेताओं और राजनीतिज्ञों के प्रतिअप ने गुस्से का इज़हार कर रही है , बेशक वो भारतीय जनता के स्थापित व्यवहार के बिल्कुल प्रतिकूल लग रहा हो किंतु पिछले दिनों हुए जनांदलनों में सडक पर उतरे हुए लोगों के चेहरों पर इस तरह की चेतावनी स्पष्ट दिख रही थी ।


देश का आम आदमी आज महंगाई और अनिश्चितता के जिस दौर से गुज़र रहा है , अब उसे ये भी स्पष्ट समझ आ रहा है कि इसकी एक बहुत बडी वजह देश के भ्रष्ट राजनीतिज्ञों व प्रशासकों का भ्रष्टाचार ही है । देश की अपनी कुल जमा पूंजी से ज्यादा जब भ्रष्टाचार से जमा होने लगे तो फ़िर देश की आर्थिक स्थिति का होना अपेक्षित ही था । अफ़सोस ये है कि देश की आर्थिक स्थिति का होना ही अपेक्षित ही था । अफ़सोस ये है कि देश के प्रधान विख्यात अर्थशास्त्री के रूप में अंतरराष्ट्रीय पहचान बना चुके हैं ।

देश का समाज , राजनीतिक , बाज़ार , सब कुछ परिवर्तन के दौर में हैं । साप्ताहिक हाट बाजार से सजने वाला देश अब वालमार्ट की ज़द में आ रहा है । ऐसे में यदि राजनेता आम लोगों से वही पुरानी मासूमियत और सहनशीलता की अपेक्षा कर रहे हैं तो वे खुद को मुगालते में रख रहे हैं ।

सरकारें और इनसे जुडे हुए प्रभावकारी तत्व दिनों दिन भ्रष्ट व लालची होते हुए अब भ्रष्टाचार और लालच के उच्चतम स्तर पर हैं । जनता पहले सी भीड वाली प्रतिक्रियाहीन लोकतंत्र नहीं रही है । अब वो प्रतिकार करना चाहती है । और ज़ाहिर है ऐसे में विकल्प के रूप में किसी भी नेता पर जूते चप्पल फ़ेंक कर , उनके साथ मारपीट करके उन्हें सार्वजनिक रूप से बदनाम करना उनके लिए एक आसान विकल्प है ।

बेशक इस तरह की मारपीट को सकारात्मक प्रतिक्रिया न माना जाए किंतु जनता को एक विकल्प तो मिल ही गया है । आम जनता अब सरकार और सियासत की संवेदनहीनता को काफ़ी देख व परख चुकी है । जो भी हो आधुनिक राजनीतिक काल में ऐसी घटनाएं दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के रूप में ही दर्ज़ की जाएंगी और ये देखना भी जरूरी होगा कि जनता की ऐसी हिंसक प्रतिक्रिया का परिणाम क्या निकलेगा ???? 

गुरुवार, 24 नवंबर 2011

सरकार की उगाही और घोटाले











 दिल्ली नगर निगम ,राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ,बहुत जल्दी ही , साफ़ सफ़ाई , स्वच्छता के लिए एक नया कर ,सैनिटेशन कर ,लाने की तैयारी कर रहा है । मौजूदा समय के राजनीतिक हालातों को देखते हुए इस बात की पूरी संभावना है कि ,थोडे बहुत हील हुज्जत के बाद सरकार ये कर आम लोगों पर थोप ही देगी । सबसे बडी विडंबना ये है कि ,जिस समाचार माध्यम पर इस आशय की खबर दिखाई सुनाई दे रही थी उसके साथ ही ये खबर भी थी कि ,एक दिन पहले पूर्वी दिल्ली में एक व्यवसायी की मौत ,  बीस फ़ीट गहरी सीवर लाईन के मैनहोल के खुले ढक्कन में गिर कर हो गई । और ऐसा नहीं है कि ये कोई इकलौती घटना है । इन दोनों बातों को देखते समझते हुए आम आदमी के सामने कुछ गंभीर प्रश्न उठ कर आ जाते हैं । पिछले एक दशक में सरकार नए नए करों, और करों पर उपकर लगाने की संभावना तलाश कर उन्हें मनमाने तरीके से आम लोगों पर थोप रही है उससे यही लग रहा  है कि सरकार किसी न किसी बहाने से आम लोगों के खून पसीने की गाढी कमाई में से हिस्सेदारी वसूल रही है । 


देश के अर्थशास्त्र और उसे पूंजीवान बनाए रहने के लिए ये जरूरी है कि सरकार अपने नागरिकों से कर वसूलने के अधिकार का प्रयोग करे , उसमें किसी नागरिक को कोई आपत्ति भी नहीं है , किंतु यकायक ही बिना किसी आधार के , बिना आम लोगों की राय मंशा जाने सीधा एक कर उनपर थोप देना न्यायसंगत नहीं लगता ,खासकर उस शासन प्रणाली में तो कतई नहीं जो खुद को आधुनिक युग का सबसे सफ़ल प्रजातंत्र मानता हो । सरकार किसी भी नए कर के प्रस्ताव और उसे कानून बना कर जनता के ऊपर थोपे जाने के मामलों में उतनी ही और ठीक वैसी ही जल्दबाज़ी दिखाती है जितना कि सांसदों व विधायकों के वेतन वृद्धि के समय । 

इससे अलग और ज्यादा महत्वपूर्ण बात ये है कि , सरकार पुराने करों के साथ साथ नए नए कर उपकर भी आम लोगों पर लादे जा रही हैं । आम आदमी जो पहले ही दैनिक जरूरतों की वस्तुओं को पाने के लिए , अच्छा आवास , रोजी , शिक्षा ,स्वास्थ्य के लिए महंगाई से जूझ रहा होता है , सरकार व प्रशासन आम आदमी को तो कानून और कर चोरी के अपराध का डर दिखा कर उसे कर चुकाने पर मजबूर भी कर लेती है , किंतु लाखों करोडों अरबों रुपए का कर चोरी करने वाले बडे औद्यौगिक घराने , बडे बडे राजनीतिज्ञ ,खिलाडी ,अभिनेताओं आदि पर अपनी सख्ती नहीं दिखाती है । 


आम आदमी का गुस्सा इन करों को दिए जाने से ज्यादा तब फ़ूट पडता है जब वो देखता है कि उसकी गाढी कमाई से निकले हुए एक भाग को राजनीतिज्ञ व प्रशासक घोटाले गबन करके हडप कर जाते हैं ,और इसका परिणाम ये होता है कि इन करों के आधार पर आम लोगों के विकास और सुविधा के लिए जो योजनाएं और निर्माण कार्य     होने होते हैं वे सब इसकी भेंट चढ जाते हैं ।ज्ञात हो वाहनों को खरीदते समय ही ग्राहक से आजीवन पथकर के रूप में राशि वसूल ली जाती है और देश की सडकों का हाल वास्तविकता बयां करता है कि उस पथकर का उपयोग सडक के लिए कितना किया जाता है । खराब सडकों के कारण प्रतिवर्ष हादसे में सैकडों व्यक्तियों की मौत के लिए सरकार अपनी जिम्मेदारी लेना तो दूर , इन दुर्घटनाओं में पीडितों को मिलने वाले मुआवजे को देने में भी जैसी असंवेदनशीलता दिखाती हैं वो शर्मनाक और निंदनीय है । 


दिल्ली सरकार देर सवेर सैनिटेशन चार्ज़ वसूलने के लिए नया कानून तो ले ही आएगी , और यदि इस कानून के बाद जनता को शहर की स्वच्छता के कार्य में कुछ प्रतिशत भी सकारात्मक दिखता है तो यकीनन उसे अफ़सोस नहीं होगा बल्कि खुशी से वह कह सकेगा कि शहर की सुंदरता में उसका अपना भी कुछ योगदान है , हालांकि एक नागरिक के रूप में लोग स्वयं ही गंदगी को न फ़ैला कर , कूडे कचरे का सही और समुचित निस्तारण व्यवस्था में हाथ बंटा कर गलियों शहरों को सुंदर रखने में मदद करें तो ऐसे करों और उपकरों की नौबत ही नहीं आएगी । इसके अलावा सरकार को उन लोगों पर भी भारी जुर्माने और सज़ा का प्रावधान करना , न सिर्फ़ कानूनन बल्कि व्यावहारिक रूप में करना चाहिए । साठ सालों से बिगडती हुई तस्वीर को अगले साठ सालों में बिल्कुल लुप्त हो जाने से बचाने के लिए कुछ तो कठोर करना ही होगा । यदि इसी तरह से आम जनता द्वारा वसूले जा रहे कर धन को राजनीतिज्ञ अपने विदेशी बैंक खातों में भरते रहेंगे तो फ़िर जनता अपना रास्ता चुनने को बाध्य होगी , और नए जनांदोलनों की शुरूआत का बहाना भी । 



रविवार, 9 अक्टूबर 2011

कुछ पोस्ट झलकियां …झाजी कहिन

 

 

 

 

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय भाग 5

विशेष पुलिस अधिकारियों

(एस0पी0ओ0) की नियुक्ति एवं सेवा शर्तें

28. कोया कमांडो की कार्यप्रणाली के सम्बन्ध में वादियों के द्वारा कई आरोप लगाए गए। इस अदालत के द्वारा पूछे जाने पर कि कोया कमांडो कौन है और क्या है छत्तीसगढ़ राज्य ने अपने दो हलफनामों एवं लिखित टिप्पणी के माध्यम से निम्नलिखित तथ्य प्रकट किए हैं-
क. 2004 और 2010 के दौरान राज्य में 2298 नक्सलवादी हमले हुए, 538 पुलिस एवं सुरक्षा बलों के कर्मी मारे गए। इन आक्रमणों में 169 विशिष्ट पुलिस अधिकारी मारे गए एवं 32 सरकारी अधिकारी एवं 1064 ग्रामीण मारे गए। राज्य के नक्सल प्रभावित जिलांे में विशिष्ट पुलिस अधिकारी सम्पूर्ण सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण अंग हैं। दांतेवाड़ा जिले का चिंतलनारि क्षेत्र सर्वाधिक नक्सलियों से प्रभावित क्षेत्र है। यहाँ पर एक घटना में 76 सुरक्षा कर्मी मारे गए थे।

 

09 October 2011

शीबा पर हमला अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है!

प्रेस नोट

जानी-मानी लेखिका और स्त्री अधिकार कार्यकर्ता शीबा असलम फहमी के घर पर दिल्ली में हुए इमाम बुखारी समर्थकों के बर्बर हमले का हम कडा विरोध करते हैं. साम्प्रदायिक कट्टरता के खिलाफ खुलकर लिखने वाली शीबा को धमकियां लंबे समय से मिल रही थीं और इसके पहले भी उन पर हमले हुए हैं. देश में लगातार सर उठा रहे दक्षिणपंथी कट्टरपंथ को रोकने में सरकार की नाकामयाबी ने जनपक्षधर लेखकों के लिए तमाम मुश्किलात खडी कर दी हैं और लोकतंत्र के समक्ष यह एक बड़ी चुनौती है.

 

फूली फूली चुन लिए काल्हि हमारी बार ....एक नए सदर्भ में ...!

वैसे तो अंगरेजी भाषा की  क्रिया -"टू वेजिटेट'' एक निष्फल सी, झाड झंखाड़ सी उगती जाती ज़िंदगी की  ओर इशारा करती है मगर एक आम जुझारू ज़िंदगी के साथ भी बहुत से खर पतवार किस्म की चीजें इकठ्ठा होती चलती  हैं , वे इसलिए और भी इकठ्ठा होती जाती हैं कि उनके प्रति हम एक आसक्ति भाव लिए रहते हैं ...जबकि कुदरत का एक 'जीवनीय' सूत्र हमें हमेशा अनेक माध्यमों से सन्देश देता रहता है कि बहुत कुछ पुराने धुराने को हमें टिकाते भी रहना चाहिए ....इसलिए कि 'पुराणमित्येव न साधु सर्वं' (यह पुराना है इसलिए श्रेष्ठ है यह बात हमेशा सही नहीं है)...प्रकृति में भी तो देखिये कई जीव जंतु तो अपने पुराने चोले को हर वर्ष त्यागते रहते हैं और त्यागकर और अधिक आकर्षक हो उठते हैं -सांप समुदाय इसमें निष्णात है ..पुरानी केंचुली उतारी नयी ओढ़ ली .....और भी कातिल सौन्दर्य हासिल कर लिया ....हमें कुदरत से बहुत बातों को सीखते रहना चाहिए खुद अपनी बेहतरी के लिए ...दत्तात्रेय नामके ऋषि ने तो इसलिए पशु पक्षियों को अपना गुरु मान लिया था ....इस पुरानी धुरानी चीजों की साफ़ सफाई को आप जानते ही हैं अंगरेजी में वीडिंग कहते हैं ...दीपावली के पूर्व घरों में वीडिंग अभियान जोरो शोरों से चलाया जाता है ..आफिसों में लाल फीतों में लिपटे कबाड़ को वीड करने के तरीकों पर तो बाकायदा शासनादेश हैं ....

 

Sunday, October 9, 2011

चाँद सो गया, तारे सो गए....मधुर लोरी में पुरवैया की महक लाये अनिल दा

 

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 761/2011/201
ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और बहुत बहुत स्वागत है आप सभी का इस सुरीले सफ़र में। और इस सुरीले सफ़र के हमसफ़र, मैं, सुजॉय चटर्जी, साथी सजीव सारथी के साथ और आप सभी को साथ लेकर फिर से चल पड़ा हूँ एक और नई शृंखला के साथ। दोस्तों, किसी भी देश में जितने भी प्रकार के संगीत पाये जाते हैं, उनमें से सबसे ज़्यादा लोकप्रिय संगीत होता है वहाँ का लोक-संगीत। जैसा कि नाम में ही "लोक" शब्द का प्रयोग है, यह है ही आम लोगों का संगीत, सर्वसाधारण का संगीत। लोक-संगीत एक ऐसी धारा है संगीत की जिसे गाने के लिए न तो किसी संगीत शिक्षा की ज़रूरत पड़ती है और न ही इसमें सुरों या तकनीकी बातों को ध्यान में रखना पड़ता है। यह तो दिल से निकलने वाला संगीत है जो सदियों से लोगों की ज़ुबाँ से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होती चली आई है। हमारे देश में पाये जाने वाला लोक-संगीत यहाँ की अन्य सब चीज़ों की तरह ही विविध है, विस्तृत है, विशाल है। यहाँ न केवल हर राज्य का अपना अलग लोक-संगीत है, बल्कि एक राज्य के अन्दर भी कई कई अलग तरह के लोक-संगीत पाये जाते हैं। आज से 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर हम शुरु कर रहे हैं पूर्वी और उत्तर-पूर्वी भारत के लोक गीतों और लोक-संगीत शैलियों पर आधारित हिन्दी फ़िल्मी गीतों से सजी हमारी नई लघु शृंखला 'पुरवाई'।

 

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ईश्‍वर के अस्तित्‍व पर सवाल उठाता 'नास्तिकों का ब्‍लॉग'

('जनसंदेश टाइम्स', 05 अक्‍टूबर, 2011 के

'ब्लॉगवाणी' कॉलम में प्रकाशित ब्लॉग समीक्षा)

दुनिया के समस्‍त धर्म ग्रन्‍थ मुक्‍त कंठ से ईश्‍वर की प्रशंसा के कोरस में मुब्तिला नजर आते है। उनका केन्द्रीय भाव यही है कि ईश्‍वर महान है। वह कभी भी, कुछ भी कर सकता है। एक क्षण में राई को पर्वत, पर्वत को राई। इसलिए हे मनुष्‍यो, यदि तुम चाहते हो कि सदा हंसी खुशी रहो, तरक्‍की की सीढि़याँ चढ़ो, तो ईश्‍वर की वंदना करो, उसकी प्रार्थना करो। और अगर तुमने ऐसा नहीं किया, तो ईश्‍वर तुम्‍हें नरक की आग में डाल देगा। और लालच तथा डर से घिरा हुआ इंसान न चाहते हुए भी ईश्‍वर की शरण में नतमस्‍तक हो जाता है।

 

पुरुष की बेचारगी क्‍या और बढे़गी?

आदमी की लाचारी, उसकी बेबसी क्‍या प्रकृति प्रदत्त है? महिलाओं के प्रति उसका तीव्र आकर्षण यहाँ तक की महिला को पाने के लिए कुछ भी कर गुजरने का पागलपन! शायद कभी समाज ने इसी प्रवृत्ति को देखकर विवाह संस्‍था की नींव डाली होगी। पुरुष के चित्त में सदा महिला वास करती है। उसका सोचना महिला के इर्द-गिर्द ही होता है। पुरुषोचित साहस, दबंगता, शक्तिपुंज आदि सारे ही गुण एक इस विकार के समक्ष बौने बन जाते हैं। वह महिला को पूर्ण रूप से पाना चाहता है, उसे खोने देना नहीं चाहता। पति के रूप में वह पत्‍नी को अपनी सम्‍पत्ति मानने लगता है और इसी भ्रम में कभी वह लाचार और बेबस भी हो जाता है। महिला भी यदि दबंग हुई तो उसकी बेचारगी और बढ़ जाती है। इसलिए आदिकाल से ही पुरुष का सूत्र रहा है कि अपने से कमजोर महिला को पत्‍नी रूप में वरण करो।

 

 

लो भाई अपना रावण फूंको... हम चले - संजय कान्त

हमने इस बार दशहरा नहीं मनाया .....
जी, पिछले कई वर्षों से दशहरा का कार्यकर्म बहुत ही धूमधाम से मनाते आ रहे हैं... लगभग २०-२१ वर्षों से.. उस समय तो कई लड़के बहुत छोटे थे... और कई तो पैदा ही नहीं हुए थे ... खासकर जो शोभायात्रा में राम लक्ष्मण बनते है ... जुड़वाँ भाई, गोली सोनी... जैसा नाम वैसे ही चंचल. एक समय आया कि ये लव कुश बन कर सजे हुए घोड़े की लगाम पकड़ कर चलते थे, फिर वनवासी राम लक्ष्मण, और अब तक राजसी राम लक्ष्मण के स्वरुप में दशहरा की झांकी में अपना योगदान देते थे.

 

कुन फाया कुन का रूहानी सुकून...खुशदीप

 

रणबीर कपूर की नई फिल्म रॉक स्टार की कव्वाली कुन फाया कुन सुनने पर ज़ेहन को बड़ा सुकून देने वाली है...जानने की इच्छा हुई कि कुन फाया कुन का अर्थ क्या है...नेट पर तलाशा तो इसका ये मतलब दिखाई दिया... 'Be! And it is'
इससे ज़्यादा समझ नहीं आया तो नेट को और खंगाला...हिंदी में एक जगह ही ज़िक्र दिखा-
"अल्लाह ताला जब किसी काम को करना चाहते हैं तो इस काम के निस्बत इतना कह देतें हैं कि कुन यानी हो जा और वह फाया कून याने हो जाता है"...
(सूरह अल्बक्र २ पहला पारा आयत 117)
इससे यही समझ आता है कि कुन फाया कुन दुनिया के बनने से जुड़ा है...गाने की एक पंक्ति भी है...जब कहीं पे कुछ नहीं भी नहीं था, वही था, वही था...कुन फाया कुन को और ज़्यादा अच्छी तरह अरबी के जानकार ही समझा सकते हैं...

 

ब्लागिंग पर रवीन्द्र प्रभात की अनुपम पहल ....

प्रकाशन :रविवार, 9 अक्टूबर 2011

डॉ. अरविन्द मिश्र

आवश्यकता, उपयोगिता, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय दुनिया से सैकण्डों में अपनी बात के जरिए जुड़ने वालों की बढ़ती संख्या को देखते हुये आज ब्लॉगिंग जैसे द्रतगामी संचार माध्यम को पॉचवा स्तम्भ माना जाने लगा है। कोई इसे वैकल्पिक मीडिया तो कोई न्यू मीडिया की संज्ञा से नवाजने लगा है । हलांकि हिन्दी ब्लॉगिंग का इतिहास महज ८ वर्ष का ही है मगर इसकी पैठ और प्रवृत्तियों पर लोगों की पैनी नजर है और नतीजतन इसके इतिहास लेखन की ओर रवीन्द्र प्रभात सरीखे जिम्मेदार साहित्यकर्मी का उन्मुख होना सहज ही है ...जबकि यह प्रश्न उठाया गया था कि क्या हिन्दी ब्लॉग लेखन इतनी परिपक्वता पा चुका है कि उसका इतिहास लेखन आरम्भ हो जाय? इतिहास का मतलब दिक्कालीय परिवेश और घटनाओं के दस्तावेजीकरण का है और इसके लिए इंतज़ार किया जाना प्रमाणिकता को बनाए रखने के लिहाज से जरुरी नहीं है। इतिहास द्रष्टा द्वारा सीधे खुद लिखने के बजाय जब भी कालान्तर में लोगों द्वारा बिखरे हुए साक्ष्यों और तथ्यों के आधार पर इतिहास लिखा जाता है प्रमाणिकता के साथ समझौता करना पड़ता है। कहना केवल यह है कि इतिहास का वस्तुनिष्ठ प्रस्तुतीकरण उसके समकालीन दस्तावेजीकरण से ज्यादा सटीक तरीके से हो सकता है। इस लिहाज से रवीन्द्र प्रभात की सद्य प्रकाशित पुस्तक "हिन्दी ब्लागिंग का इतिहास" एक स्वागतयोग्य प्रकाशन है। पुस्तक का प्रकाशन हिन्दी साहित्य निकेतन बिजनौर द्वारा किया गया है ।

 

 

Sunday, October 9, 2011

... मुहब्बत अच्छी नहीं होती !

खूब छेड़-छाड़ की है, किसी ने मेरी खामोशियों से
सच ! अब न सिर्फ वो, सारा शहर जागा हुआ है !!
...
लो मियाँ, मुंह खुद-ब-खुद मीठा हो गया
उन्हें देखते ही, मुंह में पानी आ गया !!
...
ये करतब देखे हुए हैं, शायद यहाँ या कहीं और
सच ! कलम की, गजब जादूगरी है !!
...
क्या खूब, ठोक-ठोक के पीटा है
लोहे का टुकड़ा, चीमटा हुआ है !

 

 

 

रविवार, ९ अक्तूबर २०११

" दिवस त्यौहार के आए" ( डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

महकता गन्ध से उपवन,

धरा ने रंग विखराए।

खुशी से खिल उठे चेहरे,

दिवस त्यौहार के आए।।

सुशोभित कमल सुन्दर हैं,

सजे फिर से सरोवर हैं,

सिँघाड़ों की फसल फिर से,

हमारे ताल ले आये।

खुशी से खिल उठे चेहरे,

दिवस त्यौहार के आए।।

 

 

 

कहते हैं दहेज़ लेना और देना कानूनन अपराध हैं , क्या सच में

दो तीन दिन से टी वी पर खबर आ रही हैं की एक लड़की जिसकी शादी इस साल शायद मार्च में ही हुई थी उसको उसके ससुराल वालो ने छत से नीचे फ़ैक दिया और वो बहुत गंभीर हालत में अस्पताल में भरती हैं ।
घटना जयपुर की हैं लड़का डॉक्टर हैं लड़की भी डॉक्टर हैं । लड़की अपने माँ पिता की एक ही संतान हैं ।
लड़की के पिता का कहना हैं की लडके वाले दहेज़ की मांग कर रहे थे । और ससुराल वालो ने लड़की को छत से फैकने से पहले उस से सुसाइड नोट भी लिखवा लिया था ।
क्या एक डॉक्टर लड़की को छत से फैकने से पहले उसके माँ पिता को ज़रा भी आभास नहीं हुआ होगा की ये होने वाला हैं ??
क्या एक डॉक्टर लड़की के विवाह में दान दहेज़ की प्राथमिकता होती हैं ??
क्या एक डॉक्टर लड़की शादी से पहले बिलकुल अनभिज्ञ रहती हैं कि उसके विवाह में क्या क्या खर्च होगा ?

 

सपने दर सपने

रविवार, ९ अक्तूबर २०११

हम भी दौड़ाते हैं रेल

कभी एक्स्प्रेस कभी सुपर फ़ास्ट

कभी लोकल

अपने कुनबे के सपनों को

नन्हीं सी ढोल में बन्द करके।

अम्मा बापू के सपने

हमारे सपने

सबके सपने

बन्द हैं हमारी छोटी सी ढोल में।

सबके सपनों का बोझ

भूख से कुलबुलाती अंतड़ियां

अलस्सुबह खींच ले जाती हैं हमें

भारतीय रेल की पटरियों पर।

 

रविवार, ९ अक्तूबर २०११

अब तो इस तालाब का पानी बदल दो......

चौबे जी की चौपाल

आज चौबे जी कुछ शायराना मूड में हैं। देश के घटनाक्रम पर अपनी चुटीली टिप्पणी से गुदगुदाते हुए चौबे जी ने कहा कि " राजनैतिक निजाम भी ससुरा मौसम की तरह तिरछा हो गया है आजकल । कभी उपवास का मौसम तो कभी यात्राओं का । शुरू हो गया झांसी से रामलीला पार्ट टू । मीडिया भी चना जोर गरम बाबू मैं लायी मजेदार कह-कहके जनता जनार्दन को जीभ लपलपाने के लिए विवश कर रही है । अन्ना बुढऊ और सलवार वाले बाबा ने उपवास का अईसा चस्का लगाया, कि बरकऊ,मंगरुआ,ढोरयीं सब ससुरा बात-बात में उपवास रखने की धमकी देने लगे है। नेता परेशान कि आखिर माल कहाँ रखे और खाल कहाँ रखे । अब हर किसी के पास मोदी जईसन रुतवा तो है नाही कि एयरकंडीशंड कक्ष मा एकादशी ब्रत का उपवास ठोक दे और जब प्रतिक्रिया की बात आये तो अपने लालू भाई की तरह बिन मौसम बरसात हो जाए। गुड़गुडाने लगे हुक्का बिलावजह । ज़माना बदल गया है रामभरोसे, नेताओं की तरह रागदरबारी लेखक भी हाई टेक होने लगे हैं । एयरकंडीशंड कक्ष मा बैठके मेघ का वर्णन करने लगे हैं और बाबा लोगों की बात मत पूछो एक्सरसाईज के बदले रथ की साईज ठीक करवाने में लगे हैं । हम तो कहेंगे कि बाबाजी को रथयात्रा का पेटेंट करा ही लेना चाहिए । एक-दो और ट्रस्ट बन जायेंगे, एक-दो और बाल-गोपाल पैदा हो जायेंगे ।"

 

नारी आज भी कमजोर ...?

नारी आज भी कमजोर और पराधीन  

क्यों ?

प्रश्न नारी की अस्मिता का नहीं   

अबला घोषित करने का है 

अपना जेहन टटोलो 

और इस झूठ को   

समझने ही कोशिश करो 

समझ जाओ तो 

जानने  की कोशिश करो

क्यों ?

कोख से शुरू होकर 

स्तन-पान  और  

 

 

सेंसर से पास हुई भक्त धन्ना जाट

 

फिल्म का प्रोमो यू ट्यूब पर चल रहा है, जिसे काफी पसंद किया जा रहा है

जयपुर. राजस्थानी फिल्मों के जाने-माने अभिनेता सन्नी अग्रवाल की नई फिल्म भक्त धन्ना जाट को फिल्म सेंसर बोर्ड ने पास कर दिया है। इसे यू सर्टिफिकेट दिया गया है। फिल्म की अवधि दो घंटे दस मिनट है।
सन्नी अग्रवाल ने बताया कि अब हम फिल्म के प्रमोशन में जुट गए हैं। फिल्म का प्रोमो यू ट्यूब पर चल रहा है, जिसे काफी पसंद किया जा रहा है। साथ ही सोशल साइट फेसबुक पर भी इसे काफी अच्छा रेस्पांस मिल रहा है। जल्द ही दर्शक अपने प्रिय भक्त धन्ना जाट को सिनेमा घरों में देख पाएंगे। प्रवक्ता ओपी भार्गव ने बताया कि नेहरिया फिल्म्स प्रोडक्शन के बैनर तले बनी इस फिल्म के निर्माता हरिप्रकाश नेहरिया हैं। इसे निर्देशित किया है हुसैन ब्लॉच ने तथा कैमरा मैन हैं यूजिन डिसूजा। संगीत सतीश देहरा ने दिया है तथा कहानी एवं गीत सूरज दाधीच ने लिखे हैं। सन्नी अग्रवाल, मनीषा मुंगेकर, छाया जोशी, हास्य कलाकार ओपी भार्गव, रामकरण चौधरी, सोनू मिश्रा, मंजू अग्रवाल ने मुख्य भूमिकाएं निभाई हैं।
भगत धन्ना जाट का प्रोमो यू ट्यूब पर देखने के लिए टाइप करें-राजस्थानी मूवीज भगत धन्ना जाट।

 

 

ठोकर न मारें...

 

ठोकर न मारें

दिखाकर रोशनी, दृष्टिहीनों को,

और प्रदीप्यमान सूरज को,

रोशनी का तो अपमान मत कीजिए !!!

और न ही कीजिए अपमान,

सूरज का और दृष्टिहीनों का.

इसलिए डालिए रोशनी उनपर,

जिन्हें कुछ दृष्टिगोचर हो,

ताकि सम्मान हो रोशनी का,

और देखने वालों का आदर.

 

 

प्यार तो बस प्यार है.....

 

 

फिल्म समीक्षा : लव ब्रेकअप्‍स जिंदगी

लव ब्रेकअप्स जिंदगी: प्रोफेशन बनाम इमोशनप्रोफेशन बनाम इमोशन

-अजय ब्रह्मात्‍मज

साहिल संघा की इस फिल्म के हीरो-हीरोइन जायद खान और दीया मिर्जा हैं। दोनों फिल्मी टाइप किरदार हैं। उन्हें एक-दूसरे के प्रति प्यार का एहसास होता है और फिल्म के अंत तक अपनी झिझक और झेंप में वे उलझे रहते हैं। लव बेकअप्स और जिंदगी को थोड़े अलग नजरिए से देखें तो ध्रुव (वैभव तिवारी) और (राधिका) पल्लवी शारदा ज्यादा तार्किक और आधुनिक यूथ के रूप में उभरते हैं। अगर उन दोनों को नायक-नायिका के तौर पर पेश किया जाता तो बात ही अलग होती। दोनों इमोशनल होने के साथ समझदार भी हैं, लेकिन हिंदी फिल्मों में नायक-नायिका होने के लिए जरूरी है कि आप रोमांटिक हों। अगर आप व्यावहारिक, तार्किक और प्रोफेशनल हुए तो उसे निगेटिव और ग्रे बनाने-समझाने में हमारे निर्देशक और दर्शक नहीं चूकते।

 

Sunday, October 9, 2011

और मैं आधुनिक बन गया!

 

समय निरन्तर निर्बाध गति से आगे ही आगे चलता रहता है, न तो कभी मुड़ कर पीछे देखता है और न ही किसी के लिए क्षण मात्र ही रुकता है। समय की गति के साथ परिवर्तन भी लगातार होते रहते हैं। रीति-रिवाज, आचार-विचार, जीवन शैली सभी कुछ बदल जाते हैं। इन परिवर्तनों ने मुझे अपने घर के रसोईघर में पाटे पर बैठकर, परसी गई थाली का आचमन कर के भगवान का भोग लगाकर, भोजन करने वाले व्यक्ति से जूते-चप्पल पहने हुए, बगैर ईश्वर को याद किए, डायनिंग चेयर पर बैठकर डायनिंग टेबल पर छुरी-चम्मच से खाना खाने वाला इंसान कब और कैसे बना दिया, मैं समझ ही नहीं पाया। मैं जान ही नहीं पाया कि कैसे मैं ग्रामोफोन के जमाने से डी.वी.डी. के जमाने तक कैसे पहुँच गया?

 

 

तुम्हारा अंदाज़ बड़ा निराला

तुम्हारा

अंदाज़ बड़ा निराला

निरंतर

मन को लुभाता

दिख दिख कर

छिप जाना

हँस हँस कर रूठ जाना

खूब बात करना

फिर चुप्पी साध लेना

कभी मुंह चिढाना

फिर डर कर

माँ की गोद में मुंह

छुपाना

 

 

ग़ज़ल: दुनिया थोड़ी भली लगेगी

बज़्मे-ज़ीस्त सजाकर देख,
क़ुदरत के संग गा कर देख।


घर आएगा नसीब तेरा,
अपना पता लिखाकर देख।


रब तो तेरे दिल में ही है,
सर को ज़रा झुका कर देख।

 

 

एक छोटी सी लवस्टोरी--37

विरह की वेदना और तिरस्कार के दंश ने देह को जैसे जला दिया हो। किशोर मन पर सिनेमा का असर था और दैहिक सुख की अनुभूति के आनन्द को लेकर वह उद्धत भी। प्रतिबंध से युवा मन विद्रोह कर उठता है और जब वह विद्रोह करता है आगे पीछे की परवाह भी नहीं करता। यही युवा मन आज परवाह की लक्ष्मण रेखा को लांघ चुका था। मेरा भी मन अब विद्रोही हो गया था और इस विद्रोह को प्रकट भी करने लगा था। शाम मंे छत पर से टहलते हुए विद्रोही गीत गा रहा है-जब जब प्यार पे पहरा हुआ है, प्यार और भी गहरा, गहरा हुआ है। जब रात गहराने लगी तो मिलन की उम्मीद भी अपना दामन छुड़ाने लगा पर कभी कभी सबकुछ  उसी तरह नहीं होता जिस तरह आप सोंचते है। मैंने हौसला नहीं छोड़ा और आहिस्ते से अपनी छत से उतर कर रीना के घर की ओर चल दिया। पता नहीं कौन किस वक्त पकड़ ले। दिल घबड़ा रहा था और मन मचल रहा था। चल पड़ा। जिस कमरे में रीना सोती थी उसके खिड़की के पास जा कर एक ढेला फेंक दिया। शायद सो गई होगी तो जाग जाएगी। उधर से हल्की सी आहट हुई। वही है। 

 

 

तो पिरोगराम में थोडा चेंजमेंट ये है कि भोर में वन लाईनर केपसूल दिया जाएगा और शाम को बुलेटिन जारी होगा …देखिए बांचिए और जांचिए

चर्चा दो लाइना....इन झाजी इश्टाईल



पुराने थोबडे के साथ पुराने वाले ही चर्चाकार



टीवी मीडिया पर लगेगी लगाम , कैबिनेट ने मुहर लगाई
वो तो ठीक है लेकिन , कैबिनेट पर लगाम कब लगेगी भाई


यहां बता रहे हैं ओकील साहब , कौन सा विवाह करना उचित नहीं है ,
अरे ये दिल्ली के लड्डू हैं . हमरे हिसाब से तो कैसा भी विवाह करना उचित नहीं है

टिप्पणी चेपू ब्लॉगर का परिचय यहां दिया गया है
कैसा होता है ये ब्लॉगर , क्लीयर किया गया है


एक बार फ़िर रावण मारा गया व्यर्थ ,
डा. साहब की पोस्ट , पढ के लगाएं अर्थ


अरे इधर उधर कहां टहल रहे , डालिए एक नज़र इस ओर ,
आज मयंक भाई सिखा रहे , कैसे लगाएं ब्लॉग में Read More


स्वप्निल जी ने फ़िर शब्दों का जादू बिखेरा हुआ है ,
रुबाइयों के कोने में , सवेरा हुआ है ।


आप प्यार में जीते हैं , छि; गलत बात है सर !
सोचालय में मरियम से मिलवा रहे सागर ।


जो लफ़्ज़ों में नहीं बंधता , उसे बांध ,बना दी पोस्ट ,
तुम साथ साथ बह जाओगे , ये पूजा की लहरें हैं दोस्त


देखिए यहां कौन , क्यों , रावण रावण पुकार रहा ,
बेशक जला डाले रावण , मगर जिंदा भ्रष्टाचार रहा


अमित भाई , ले चले ,आज किसी के रुख से रुखसार तक ,
इस दुनिया की एक कहानी , मुहब्बत से प्यार तक



यहां पाइए , आप अपने , राष्ट्रभाषा हिंदी के सुंदर रंग ,
आज मनोज जी ले कर आए , एक प्रेरक प्रसंग ।


बेटियों के प्रति रवैय्या बदलना होगा ,
बहुत गिर चुके नीचे तक , आखिर कभी तो संभलना होगा


रश्मि जी , अपनी यादों में से , एक टुकडा सुना रही हैं ,
क्या हुआ हाय नई दुल्हन का हाल , बता रही हैं ।


कविता जी ने प्रश्न किया .मिट्टी में दिया जिंदा दबा ,वो भी इंसान है ,
कोख कब्र बने ,कभी मिट्टी बेटी की , क्योंकि समाज पुरूष प्रधान है   

लेखनी जब फ़ुर्सत पाती है , वे कहर ढाते हैं ,
जो फ़ुर्सत और ज्यादा हो , प्यार को धोखे से चरस खिलाते हैं


देख प्रभु तेरी दुनिया , अब कैसा कैसा होता है ,
कहते श्यामल आज इसलिए , देख मेरा मन रोता है


शिव जी करा रहे , चंदू की पेरिस हिल्टन से चैट ,
पढिए , घुस के आप भी , बिना किए दिस एंड दैट
नवगीत की पाठशाला में आज दिन खनकता है,
इस बगिया में शब्दों का कोई फ़ूल रोज़ महकता है


कैलाश जी सजा लाए हैं , सूना इक आकाश ,
इनकी पंक्तियों में पाया है , एक अलग एहसास


एक शिक्षक , चुपचाप लीन , कर रहा शब्दों का सृजन ,
जज़्बात में आज जानिए , शब्दों की चुप्पी का गर्जन



एक लाइना बुलेटिन दोपहर में जारी किए जाएंगे

गुरुवार, 8 सितंबर 2011

99 पे काहे अटका दिए हो .....फ़ालो काहे नय करते हो ...वन लाइनर









चर्चा बाबू , पोज में 






आपको पता है हिंदी ब्लॉगिंग में आपकी स्थिति क्या है :- अभी तो ई पता लगाने में बिजी हैं कि हिंदी ब्लॉगिंग की स्थिति क्या है 




न अब मुस्कुराते नहीं बनता : हां , यही कह रही है जनता 




वे दो : पढ लो 




अजीब या रोचक : हम रह गए भौंचक्क 







एक खबर एक दुविधा : के हिसाब से पर खबर एक दुविधा का एवरेज बन गया 



 उत्तर प्रदेश पुलिस में राजनीति : अच्छा , क्या बहिन जी जीप के बदले हाथी दे रही हैं पुलिस को 



 बारिश से ठीक पहले : लिखी पोस्ट को बारिश खत्म होने से पहले ही पढ जाना चाहिए 



 अन्ना हज़ारे और पीसी बाबू : बीमारे बेचारे दिग्गी बाबू 


 मैं जब भी अकेली होती हूं : एक धांसू पोस्ट का आइडिया आ ही जाता है 


 जीत को तरस रही टीम इंडिया : फ़ौरन ही बांग्लादेश के साथ मैच खेलना चाहिए 


 आखिर हम बांग्लादेश से हार गए : ल्यो इहां तो उलटा ही हो गया ..ई तो पहिले ही हार गए जी 


 अंक 100 के बारे में : बहुत मेथामेटिकल पोस्ट है भाई 


 अब हम वनडे सीरीज़ में तीर मारेंगे : अरिस्स साला , किरकेट से डायरेक्ट तीरअंदाज़ी ..केतना टेलेंटेड टीम है भाई 



 कबाडखाने की दो हज़ारवीं पोस्ट : ये कबाडखाना फ़लता फ़ूलता रहे दोस्त 


ये जो सामान रखा है  : बडा कमाल है , खुदे देखिए 




 ये तो मैं भी कर सकता हूं : मैं नहीं कर सकता , मैं तो गरिया सकता हूं खाली 



पीले जूते वाली लडकी : जहां भी मिले , उसके जूते फ़ौरन ब्लैक पॉलिश करवाए जाएं 


 कविता और बाज़ार : दुन्नो एक्के साथ 



 वो कुंभकरन की पोती है : और मेघनाद का नाती भी दिखा क्या कहीं 



 धत प्यार क्या होता है जी ? ये हम नहीं जानते : हट , ये कितना भी कह लें आप , हम नहीं मानते 
 


छोटी बात , बडी बात : दोनों को मिलाकर , एक अच्छी पोस्ट तैयार हो सकती है 




हमको यकीन है कि ई पोस्ट के बाद ....झा जी कहिन ..का अनुसरक सूची ..शतक मार लेगा ....जय हो आज के वन लाइनर देखिए हम फ़िर कल मिलते हैं  

सोमवार, 22 अगस्त 2011

पिछले अडताली घंटों की आंखों देखी ..झा जी ऑन स्पॉट



मैं पहले ही ये बात कह चुका था कि न सिर्फ़ सोलह अगस्त से अन्ना हज़ारे को दोबारा अनशन पर बैठना होगा बल्कि अपनी आदत से मजबूर सरकार इस फ़ुंसी को जब तक असाध्य फ़ोडा नहीं बना देखेगी तब तक उसकी समझ में कुछ नहीं आएगा । आंदोलन का रुख क्या होगा और परिणाम क्या ये तो आने वाला वक्त ही तय करेगा लेकिन उससे पहले उस सैलाब का हिस्सा बनकर इस क्रांति को भीतर से महसूसने का आनंद अवर्णनीय है । मैं अपना हिस्से की सारी बातें आपसे धीरे धीरे साझा करूंगा , किंतु फ़िलहाल आप पिछले दो दिनों में खींची गई लगभग एक हज़ार चित्रों में से कुछ देख कर महसूस करिए इस तपिश को



















































और जाने कितने ही चेहरे मिले , बहुत कुछ कहते हुए , कितने हाथों के तिरंगों ने जाने क्या क्या कह दिया , और अब भी कह रहे हैं , मैं बताता रहूंगा आपको 
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