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मंगलवार, 29 जून 2010

कटौती का जमाना है ....एक लाईना से काम चलाईये (कुछ पोस्ट लिंक्स )

आज यकायक ही लगा कि भई कटौती का जमाना है तो फ़िर हम सबका फ़र्ज़ है कि इस जमाने के साथ चलने का कुछ न कुछ यत्न तो करें ही । तो फ़िर आज एक लाईना ही पेश किए देते हैं आपके लिए , अब दो लाईना में से इससे ज्यादा क्या कटौती करें भाई ....


तुम्हारा नाम लिखूं
..........हां अब कौन सा नाम देख कर माईनस प्लस का टंटा बचा है ।


तख्ता पलट दो ससुरों का .....और ऐसा सारे दामाद मिल कर करें ..


अब क्या करोगे राज भाई .....वेलेंटाईन डे भी चला गया जो प्रेमी प्रेमिका पीटते ..


क्या इंडली में भी फ़र्जीवाडे की झलक दिख रही है ? .. क्या कहा नहीं ....फ़ौरन ही थ्रीडी चश्मा खरीद डालिए ..सब दिखता है ।


दिन हरज़ाई ........आज भी बारिश न आई ।


प्राईम टाईम ...जरा हंस लें मुस्कुरा लें ....... रोने के लिए टीवी प्राईम टाईम ही लगा लें ।


ब्लागवाणी को लेकर हम ...
तब तक लिखते रहेंगे जब तक वो वापस न आ जाए ।


जीवन के स्टेशन पे
..कभी भी एडवांस रिजर्वेशन नहीं मिलता


गड्ढा ..
बस गिरते ही ठहाके शुरू ।


ये पैरेंटिंग नहीं आसान ..खासकर जब उसके साथ साथ ब्लोग्गिंग भी करनी हो तो ।


उदास होके भी मैं क्या पाऊंगा ....कुछ नहीं , इसलिए ऐसे ही हंसते खेलते रहिए ..पोस्ट ठेलते रहिए ।



सर , आप तो बडे ही क्यूट हैं .. कोई ऐसा कहे तो फ़ौरन समझ जाईये कि ...आपके साथ वो गे आंदोलन शुरू करने वाला है ।



याद आते हैं दूरदर्शन के वे दिन ....ओह ये पढ कर तो हमें भी अपना पेजर याद आ गया ....देखता हूं कहां गया ??


पाप और पुण्य ..
प से पाप , प से पुण्य , प से पोस्ट , प से पाठक ......



ब्लागवाणी छुट्टी पर , अंगना में आई हमारवाणी ...बस फ़टाक से इस नए अंगना में उछल कूद शुरू करो


एसएमएस से मिलेगी सीट : फ़िलहाल तो पोस्ट ही नदारद मिली है


महंगाई मार गई ..बस ब्लोग लिखना ही सस्ता रह गया है अब तो


विरोध करने का तरीका कैसा होना चाहिए ....सिर्फ़ लिख कर बताएं ..यहां हडताल, जाम , बंदी वगैरह करने की गुंजाईश नहीं है


आज के लिए इतना ही ...डोज़ पसंद आया तो ..कहिएगा ...यही प्रेस्क्रिपशन जारी रहेगा अभी कुछ दिनों तक ।

शनिवार, 26 जून 2010

टू लाईना इज बैक ......जस्ट पोस्ट लिंक्स ....यार !



बहुत दिन हो गए , अपनी मनपसंद दो लाईनों की पटरियां बिछाए हुए । यूं तो वैसे भी आजकल ब्लोगवाणी के डिरेल होने के कारण बहुत सी पोस्टें पता नहीं कौन कौन सी बडी लाईन छोटी लाईन और लूप लाईन से होकर निकल रही हैं , कमबख्त समझ ही नहीं आ रहा है कि कौन सा वो ट्रैक पकडें कि सबसे मुलाकात हो जाए । इसी बहाने सभी पगडंडियों तक पर चले जा रहे हैं , तो देखिए आज उनमें से किन किन को पकड के पटरियों को बिछाया गया है ।



एक बार सुबह उठो तो योगा के अलावा कुछ करने नहीं दूंगा ,
कह रहे हैं प्रवीण , करोगे तो मैं तुम्हें मरने नहीं दूंगा ॥


इस्तुतिमति का पिटारा, पंडियाईन इज हर नेम ,
देखिए भोजपुरी इज कैसे , बिल्कुल सेम टू सेम ॥


मिसर जी करके लौटे आरती भोलेनाथ की ,
आप यहां पर बांचिए , कथा इसके बाद की ।



आज पूछी वाणी ने अजब सी एक पहेली ,
बताईये कौन है उनकी जान , दोस्त या सहेली ।


बीबीसी ब्लोग्स की महिमा अपरंपार है ,
वहां आज नीति, राजनीति और बिहार है ॥


उसको लगे बडा ही पाप जो इसे पढने से रोके
,
जानिए आखिर क्या पाया हमने इंसां होके


धान के देश में मिला एक सार्थक लेख ,
इस लिकं को पकडिए और आप लीजीए देख ॥


आज देखिए अभय बाबू ने किन शब्दों की ,की धुलाई ,
हमें तो निर्मल आनंद मिल गया इसे पढ के भाई ॥


मधु चौरसिया ने डाली आज फ़ैशन पर है नज़र ,
इस पोस्ट पर पहुंचिए आपको पढना हो गर ॥


विवेक भाई के ब्लोग पर बीमे की है जानकारी ,
सबको पढनी चाहिए , जिन्हें जान हो , या न हो प्यारी ।


आशीष भाई ब्लोगर्स के लिए करते हैं कई जतन,
आज गजेट नहीं है , मगर आज है इक बटन ॥


इस पोस्ट में दिखा गजब का इक असर ,
क्यों न हो आखिर यहां चल रहा है इक सफ़र ॥



महफ़िल प्यार की मिसर जी को आ रही है याद ,
आपको भी आएगी , इस पोस्ट को पढने के बाद ॥


राम त्यागी हो गए चींटियों से परेशान ,
आप भी उनकी परेशानी में करिए कुछ योगदान ॥


अब कुछ नए ब्लोग्स से करिए मिलने की तैयारी ,
सबसे पहले देखिए क्यों अधूरी है नारी ॥


ये हैं मनीष आचार्य , लिख रहे हैं राजस्थान से ,
आज अपनी पोस्ट में कुछ कहते हैं आसमान से ॥

संजीव गौतम जी के ब्लोग से मिलिए , नाम है कभी तो ,
फ़िलहाल एक कविता आप पढिए अभी तो ॥



चलिए अब चलता हूं उम्मीद है कि ...........बहुत दिनों बाद ....प्रस्तुत आपको ये दो लाईना कुछ अलग सा फ़्लेवर दे सकेंगी ..........। अब देखिए अगली पोस्ट में कोई अगला फ़्लेवर .....

शुक्रवार, 25 जून 2010

सीता की दुविधा ऐसी जानी , हाय कैसी अटकी ब्लोगवाणी ........


( ललित शर्मा जी के पोस्ट से साभार )






बात नहीं ये बडी पुरानी ,
सुनिए जरा सब ज्ञानी ध्यानी ,

मणि रत्नम ने बुनी कहानी ,
राम सीता रावण की बानी

राम जी ने जाने इक दिन कैसी ठानी ,
सीता जी की दुविधा पहचानी ,


और दुविधा देख सिया की ,
जतन से लिखी इक पोस्ट सयानी ,

अब दिल थाम के सुने हर प्राणी ,
अटक गई उसी पर ब्लोगवाणी ,

हाय ऐसी बदली तब सबकी बानी ,
सब ब्लोग्गर्स की याद आई नानी ॥

हर ब्लोग्गर हाय हुआ दिवाना ,
और हर पोस्ट हो गई दिवानी ,

चलो माना कि कुछ गर्मी थी पहले ,
मगर अब आया बरसात और आया पानी ,

कब तक दुविधा में अटकी रहोगी ,
अब तो वापस आओ महारानी ॥

गुरुवार, 3 जून 2010

कुछ पोस्टें , देखी अनदेखी सी (पोस्ट झलकियां )

 

 

बीबीसी हिंदी ने अपने पत्रकार साथियों को अपने मन की बात अपने तरीके से कहने के लिए ,के लिए बीबीसी ब्लोग्स मंच प्रदान कर रखा है । इस मंच पर प्रतिदिन अलग अलग पत्रकार जो देश विदेश के अलग अलग कोने में अपने कार्य को अंजाम दे रहे हैं न सिर्फ़ अपने अनुभवों को साझा करते हैं बल्कि , ज्वलंत विषयों , राजनीतिक हालातों पर बेबाकी से अपनी राय भी रखते हैं । इन्हें पढने वाले पाठकों की संख्या भी हज़ारों में होती है और प्रतिक्रिया देने वाले भी सैकडों पाठक होते हैं । आज बीबीसी पत्रकार सुशील झा झारखंड से बिहार तक की सडक यात्रा के अनुभव और झारखंड की बदहाल होती सडकों पर अपनी कलम की धार पिजाते हुए कहते हैं ,

 

सुशील झा सुशील झा | गुरुवार, 03 जून 2010, 18:53

टिप्पणियाँ (0)

टूटा हुआ हाईवे...... आती जाती ट्रकें......घुप्प अँधेरा.....और पास में ट्रक वालों से पैसा वसूलते नौजवान.....

हाइवे का ढाबा.....तेज़ आवाज़ में बजता संगीत...कारों में नशा करते अधेड़ उम्र के लोग (हथियारों से लैस)......

ये दो चित्र किस राज्य के हो सकते हैं......बिहार कहने से पहले ज़रुर सोचें.. ये नज़ारा बिहार का नहीं बल्कि बिहार से सटे झारखंड का है. वहां लंबे समय से पत्रकारिता में रहे लोग कहते हैं कि अब राज्य में इस तरह के नजा़रे आम हो गए हैं.

पिछले दिनों झारखंड से बस के रास्ते बिहार गया. क़रीब 14 घंटों के सफ़र में जो देखा जो सुना और जो समझा वो दुखद और परेशान करने वाला था.

पहले जब मैं इसी रास्ते पर बस से बिहार जाता था तो रात में ख़राब सड़कों पर नींद टूटती थी तो बस के लोग कहते थे. अरे चलो बिहार की सीमा में आ गए. इस बार बिहार की सीमा में प्रवेश करने के बाद ही सड़कें ठीक मिलीं.

कहते हैं 2004 के बाद सड़कों का निर्माण और रख रखाव ठप्प पड़ता जा रहा है याद आया पश्चिमी सिंहभूम के एक इलाक़े में सड़क के ठेके को लेकर मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा को काफ़ी परेशान हुए थे.

ढाबों पर नशा करते लोग संभवत छोटे ठेकेदार थे जो हथियारों से लैस भी थे यानी जान माल सुरक्षित नहीं. इनमें से एक भी आदिवासी नहीं था. महिलाओं के प्रति इन लोगों की भावना को घटिया ही कहा जा सकता था.

रास्ते में बस ख़राब हुई और अंधेरे में पांच घंटे रहने पड़े. बगल में नौजवान ( अधिकतर ग़रीब आदिवासी) ट्रक वालों से लूटपाट करने में लगे थे. इन पाँच घंटों में कभी पुलिस का कोई वाहन दिखाई नहीं दिया.

सड़कें नहीं.....क़ानून व्यवस्था नहीं और शायद रोज़गार भी नहीं. यह नवगठित राज्य जा कहां रहा है...

शायद बिहार के साथ भी यही हुआ होगा सालों पहले जब उसका गठन हुआ होगा. बर्बाद होते होते बिहार की यह हालत हो गई है कि अब थोड़ा सा भी विकास लोगों को बहुत अच्छा लगता है.

पूरी दास्तान वहीं पढिए , वैसे भी जिस राज्य में मुख्यमंत्री की सीट को क्रिकेट मैच की तरह खेला जा रहा हो उस राज्य का इससे अच्छा हाल हो भी नहीं सकता ।

 

इसी तरह से एक और मंच है नवभारत टाईम्स ब्लोग्स का जहां नवभारत टाईम्स हिंदी समाचार पत्र से जुडे पत्रकार साथी अपना ब्लोग लिखते हैं । हिंदी ब्लोग्गिंग में समान रूप से सक्रिय भाई आलोक पुराणिक जी और भाई प्रियरंजन झा जी वहां भी बहुत सक्रिय दिखते हैं ।आज अपने ब्लोग अकथ्य पर सुश्री पूजा प्रसाद ने एक सवाल रखा है

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क्या वेटर आपका गुलाम है?

पूजा प्रसाद Thursday June 03, 2010

हरिवंश राय बच्चन ने अपनी जीवनी में एक जगह कहा है - गुलामी के संस्कार पीढ़ियों तक नहीं जाते। जब मैं होटल-रेस्टॉरेंट्स में लोगों को वेटर्स को टिप देते हुए देखती हूं तो यही लगता है।
किसी को गुलाम समझने में या खुद से कमतर समझने में जो खुशी हमारी रीढ़ की हड्डी से हो कर गुजरती है, हमें अपनी सेवाएं देने वालों को दी जाने वाली बख्शीश इसी खुशी का इनडाइरेक्ट एक्सटेंशन है। बात जरा कड़वी है मगर सोच कर देखिए क्या सच नहीं है? और जिस तरह से टिप लेने वाला खुश होता है, क्या वह इसी सामंती जीन का असर नहीं है?

जबकि असल बात तो यह है कि कोई वेटर जब विनम्रता से आपको मेन्यू दे कर, ऑर्डर ले कर खाना परोसता है, तो वह अपना काम कर रहा होता है। ठीक वैसा ही काम जैसा कि मैं एनबीटी डॉट कॉम में करती हूं या फिर आप अपने ऑफिस में कर रहे हैं। इस जॉब के बदले में महीने के अंत में हम सभी को एक अमाउंट मिलता है जिसे हम सैलरी कहते हैं। किसी वेटर, किसी अकाउंटेंट या किसी जर्नलिस्ट को हर महीने उसके काम के एवज में सैलरी मिलती है। अब जरा बताइए, कैसा लगेगा एक अकाउंटेट को जब उसका बॉस शाम को जाते समय उसकी टेबल पर कुछ चिल्लड़ रख जाए और मुस्कुरा कर चलता बने?

 

क्या कहा थकान महसूस होने लगी , लो जी खाने का भी इंतज़ाम कर रखा है ,नाश्ते में राम लड्डू पेश कर रही हैं निशा मधुलिका जी , जाईये सीखिए , बनाईये और सबको खिलाईये

| नाश्ता | राम लड्डू (Ram Laddu Recipe)

राम लड्डू (Ram Laddu Recipe)

निशा मधुलिका - - 310 बार पढ़ा गया

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image Ram Laddu Recipe

लड्डू सामान्यतया मीठे होते हैं लेकिन राम लड्डू नमकीन होते हैं और हरी चटनी और मूली के लच्छे के साथ खाये जाते हैं . दिल्ली में राम लड्डू का ठेलें आप लगभग हर बाजार में देख सकते हैं, गोल गोल गरमा गरम राम लड्डू कढ़ाई में तलते देख इन्हैं खाने के लिये मन कर जाता हैं

 

भाई आलोक रंजन कहते हैं कि चुप ही रहता हूं , मगर पोस्ट देख कर लगा कि लो कल्लो बात इतनी चुप्पा चुप्पी में ही इत्ता धमाका देखिए

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Wednesday, June 2, 2010

लो जी बोलने का मौका फिर आ गया... मुंबई के बांबे हॉस्पीटल में बिजली आखिरकार आ ही गयी... पूरे तीन दिनों बाद यहां पर बिजली रानी के कदम पड़े हैं... तीन दिनों तक बिना बिजली के ये हॉस्पीटल चलता रहा... जेनेरेटर की मदद ली गयी.. ताकि इमरजेंसी सेवाओं पर बिजली के नहीं होने का असर ना पड़े... अमां ये बिजली भी बड़ी अजीब है... रहने से भी दिक्कत ना रहने से दिक्कत... और किसी पर गिर पड़े तो भइया समझो कि बस काम पूरा हुआ... दुनिया में अब उसके लिए कोई काम बचा ही नहीं... लेकिन मुझे तो बांबे हॉस्पीटल में बिजली नहीं होने के पीछे बड़ी साजिश लगती है... कोई बड़ा षडयंत्र लगता है... कहीं जानबूझकर तो बांबे हॉस्पीटल की बिजली गायब तो नहीं कर दी गयी... अब आप सोच रहे होंगे कि भला इसमें कैसी और किसकी साजिश हो सकती है... तो जनाब लगता है आप लोगों का ध्यान हॉस्पीटल के नाम की तरफ नहीं गया... बांबे हॉस्पीटल... अब भी समझ नहीं आया

समझ नहीं आया तो जाईये पोस्ट पढिए और समझिए न …..

 

पढाई लिखाई नाश्ता वैगेरह के बाद थोडा गीत संगीत हो जाए तो ….देखिए आज प्रतिभा जी ,क्या सुनवा रही हैं

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Wednesday, June 2, 2010

हमारी सांसों में आज तक वो हिना की खुशबू महक रही है..

आज अपने ब्लॉग पर पहला ऑडियो दे रही हूँ.
इस सुरीले आगाज़ के लिए नूरजहाँ की आवाज से
बेहतर भला क्या होगा...

 

बहुत कोशिश के बावजूद वो औडियो यहां नहीं लोड हुआ , अच्छा ही हुआ अब आप जाकर उनकी पोस्ट पर ही इसका लुत्फ़ उठाईये , वर्ना यहीं  से सुन कर खिसक लेने का रिस्क ज्यादा दिख रहा था हमें …..तो जाईये और वहीं सुनिए

Posted by pratibha at 12:18 PM

आगे बढा तो प्रतीक माहेश्वरी एक दृढ फ़ैसला लेते हुए दिखे , जिसमें एक राजनेता के  कत्ल होने की दास्तान थी । देखिए न

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एक दृढ़ फैसला 

बुधवार, २ जून २०१० comments: 7

Posted by Pratik Maheshwari at ११:५३ PM

मोहित एक सर्वगुण और सम्पूर्ण परिवार का लाडला बेटा था | बड़ा भाई डॉक्टर बन गया था और बड़ी बहन भी अपनी पढ़ाई पूरी कर के अपने ससुराल जा चुकी थी | मोहित पिछले ५ सालों से बाहर ही था और अपनी पढ़ाई ख़त्म करके वो वापस घर आया था |
मोहित में बदलाव ज़बरदस्त था और उसके सोचने-समझने-परखने की शक्ति लाजवाब हो गयी थी | कॉमर्स लेकर पढ़ने के बाद भी उसका रुख अपने देश, अपनी मातृभूमि के लिए कुछ कर गुजरने का था | वह केवल बोलना और सुनना नहीं चाहता था.. कुछ करना भी चाहता था | कुछ अनुभवी लोगों से विचार-विमर्श करके उसने एक फैसला लिया.. एक दृढ़ फैसला |

बताईये कि क्या ये फ़ैसला सही था या गलत ?

 

आगे राधारमण जी ने सूचना देते हुए बताया कि नहीं रहीं उजरा बट ,

 

Wednesday, June 2, 2010

नहीं रहीं उजरा बट

प्रसिद्ध थियेटर अभिनेत्री और भारतीय अभिनेत्री जोहरा सहगल की बहन उजरा बट का पूर्वी पाकिस्तान के सांस्कृतिक शहर लाहौर में निधन हो गया है। वह ९३ वर्ष की थीं। बट ने अपना अंतिम स्टेज कार्यक्रम २००८ में दी थी। उन्होंने अपना ९३ वां जन्मदिन २२ मई को अपने दोस्तों और परिवार के साथ मनाया था।

भारत में उत्तराखंड के रामपुर में १९१७ में जन्मी बट ने अपने कैरियर की शुरुआत नृत्यांगना के रूप में १९३७ में की थी। १९४० और १९५० के बीच वह प्रसिद्ध पृथ्वी थियेटर की महत्वपूर्ण महिला में शुमार हो गई। उन्होंने ख्वाजा अहमद अब्बास के नाटक जुबैदा में अभिनय किया और पृथ्वीराज कपूर के साथ महत्वपूर्ण रोल की। पृथ्वी थियेटर के साथ कई वर्षों तक जुड़ी रही बट ने शंकुतला, पठान, किसान, गद्दार और दिवार में अपनी बहन जोहरा के साथ काम किया और लगभग पूरे अविभाजित भारत का अपने समूह के साथ दौरा की। लेकिन १९६४ में वह अपने पति हामिद बट के साथ पाकिस्तान चली गईं। वे रावलपिंडी में शांति का जीवन गुजारने लगीं। बाद में अक्टूबर १९८५ में वह अजोका थियेटर में शामिल हो गईं।

स्तुति पांडे

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अपने अलग अंदाज़ में कभी राबर्ट की भोजपुरी दिखवाती हैं तो कभी डेबी से मिलवाती हैं जाईये आप भी मिल कर आईये

Wednesday, June 2, 2010

डेबी की डेस्क


डेबी मेरे साथ आई बी एम् में काम करती थीं. वो पिछले १३ साल से आई बी एम् से जुडी हुई थीं, कल उनका विदाई समारोह था. दो वर्ष पहले वो फ्लोरिडा से कोलोराडो ऑन-साईट काम करने के लिए स्थान्तरित हुई थीं. फ्लोरिडा वाला घर बेचा, बच्चों से दूर हुयीं, पोते-पोती और नाती-नातिन से भरा पूरा परिवार छोड़ कर अकेले यहाँ आयीं. अकेले इसलिए क्यूंकि तलाक हो चुका है. यहाँ आकार फिर से नए सिरे से शुरुवात की ही थी की उनके जाने की घोषणा कर दी गयी. डेबी के हिस्से का काम इंडिया आउट सोर्स कर दिया गया.

लीजीए अब परमजीत बाली जी की चिंता पर भी गौर फ़रमाईये जरा

क्या आपको भी अपने फिगर की चिन्ता नही है....?

Thursday, June 3, 2010

आज नेट पर घुमते हुए एक विचार मन मे आया कि नर-मादा दोनों मे से किसे अपनी फिगर की चिन्ता ज्यादा सताती है.......इसी बारे मे खोज कर रहा था कि अनायास ही यह कार्टून हाथ लग गया....सोचा कि आप तक भी इसे पहुँचाया जाए......जरा संभल कर देखे:)

 

अब आगे रेणु दीपक उर्फ़ पुखराज जी

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की कविता की इन पंक्तियों का मजा लीजीए ,

Wednesday, June 2, 2010

धुआं धुआं हो गयी नज़र

तेरे इंतज़ार को पाले ने मारा है ,

एक ज़लज़ला उठा है फिर

मलबे तले जीवन हारा है ,

अंतहीन तलाश है जाऊं कहाँ

लोग कहते हैं नाकारा है ,

तेरी यादों को भूलने के दर्द ने

लकीरों में तेरा नाम उभारा है ,

पूरी कविता को आप पोस्ट पर जाकर पढिए और सराहिए ……

 

मिलिए एक नए ब्लोग से

Wednesday, June 2, 2010

भारत माता की वीर पुत्री, झांसी की रानी।

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

आप सोच रहे होंगे बस आगे आगे ही भागे जा रहे हैं , अजी खुशखबरी भी सुनिए जी किसने रोका है भाई

खुशखबरी... खुशखबरी... खुशखबरी... ब्लोगिंग से कमाई शुरू

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Author: जी.के. अवधिया | Posted at: 9:55 AM | Filed Under: कमाई, टिप्पणी, ब्लोगिंग

आप तो जानते ही हैं कि आजकल विज्ञापन का जमाना है और आप विज्ञापन के महत्व को भी अच्छी तरह से समझते हैं। ये विज्ञापन चीज ही ऐसी है कि किसी उत्पाद को बाजार में आने के पहले ही सुपरहिट बना देती है। अच्छे से अच्छा उत्पाद विज्ञापन के अभाव में पिट जाता है और सामान्य से भी कम गुणवत्ता वाला उत्पाद विज्ञापन के बदौलत हिट हो जाता है। तो फिर आखिर अपने ब्लोग का अन्य ब्लोग में विज्ञापन करने में बुराई ही क्या है?
इसीलिये हमने निश्चय किया है कि आप हमारे पोस्टों में टिप्पणी करते हुए अपने ब्लोग का विज्ञापन कर सकते हैं, और वह भी बहुत सस्ते दर पर। विज्ञापन के दर इस प्रकार हैं:

  • बिना किसी लिंक के प्रचार वाली टिप्पणी के लिये रु.100 मात्र
  • आपकी टिप्पणी में एक लिंक के लिये रु.200 मात्र
  • आपकी टिप्पणी में दो लिंक के लिये रु.300 मात्र
  • आपकी टिप्पणी में तीन से पाँच लिंक के लिये रु.500 मात्र
  • हमारे ब्लोग के साइडबार में आपके ब्लोग का विजेट लगाने के लिये रु.2000 प्रतिमाह मात्र

खुशखबरी के बाद एक जरूरी सूचना भी ले लें

 

पूरे भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों के नम्बर बदले: हिन्दी-अंग्रेजी में पूरी सूची उपलब्ध

Posted in national highway number, छत्तीसगढ़, राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक प्रस्तुतकर्ता बी एस पाबला on Thursday 3 June 2010

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पिछले कई दिनों से मैं सड़क मार्ग द्वारा अपने उत्तर-पश्चिम भारत भ्रमण की रूपरेखा बना रहा हूँ। हालांकि तकनीक के विकास ने हमें बहुत सी सुविधाएँ दे दी हैं। चाहे वह गूगल लैटीट्यूड व गूगल मैप्स का मार्ग-दर्शन हो या प्यारी सी आवाज़ में जीपीएस नेवीगेशन के सहारे रह-रह कर दिए जाने वाले दिशा-निर्देश। फिर भी कई चीजों को धरातल पर रह कर किया जाना सुरक्षित रहता है!

 

चलिए आज के लिए इतना ही काफ़ी है , अरे भाई आपके लिए नहीं मेरे लिए ……..अभी और भी बहुत कुछ पढना लिखना है जी , रेडियो भी सुनना है , समाचार भी सुनना है जी ……और और और ….सब आपही को बताएंगे क्या ॥

कुछ पोस्टें , देखी अनदेखी सी (पोस्ट झलकियां )

 

 

बीबीसी हिंदी ने अपने पत्रकार साथियों को अपने मन की बात अपने तरीके से कहने के लिए ,के लिए बीबीसी ब्लोग्स मंच प्रदान कर रखा है । इस मंच पर प्रतिदिन अलग अलग पत्रकार जो देश विदेश के अलग अलग कोने में अपने कार्य को अंजाम दे रहे हैं न सिर्फ़ अपने अनुभवों को साझा करते हैं बल्कि , ज्वलंत विषयों , राजनीतिक हालातों पर बेबाकी से अपनी राय भी रखते हैं । इन्हें पढने वाले पाठकों की संख्या भी हज़ारों में होती है और प्रतिक्रिया देने वाले भी सैकडों पाठक होते हैं । आज बीबीसी पत्रकार सुशील झा झारखंड से बिहार तक की सडक यात्रा के अनुभव और झारखंड की बदहाल होती सडकों पर अपनी कलम की धार पिजाते हुए कहते हैं ,

 

सुशील झा सुशील झा | गुरुवार, 03 जून 2010, 18:53

टिप्पणियाँ (0)

टूटा हुआ हाईवे...... आती जाती ट्रकें......घुप्प अँधेरा.....और पास में ट्रक वालों से पैसा वसूलते नौजवान.....

हाइवे का ढाबा.....तेज़ आवाज़ में बजता संगीत...कारों में नशा करते अधेड़ उम्र के लोग (हथियारों से लैस)......

ये दो चित्र किस राज्य के हो सकते हैं......बिहार कहने से पहले ज़रुर सोचें.. ये नज़ारा बिहार का नहीं बल्कि बिहार से सटे झारखंड का है. वहां लंबे समय से पत्रकारिता में रहे लोग कहते हैं कि अब राज्य में इस तरह के नजा़रे आम हो गए हैं.

पिछले दिनों झारखंड से बस के रास्ते बिहार गया. क़रीब 14 घंटों के सफ़र में जो देखा जो सुना और जो समझा वो दुखद और परेशान करने वाला था.

पहले जब मैं इसी रास्ते पर बस से बिहार जाता था तो रात में ख़राब सड़कों पर नींद टूटती थी तो बस के लोग कहते थे. अरे चलो बिहार की सीमा में आ गए. इस बार बिहार की सीमा में प्रवेश करने के बाद ही सड़कें ठीक मिलीं.

कहते हैं 2004 के बाद सड़कों का निर्माण और रख रखाव ठप्प पड़ता जा रहा है याद आया पश्चिमी सिंहभूम के एक इलाक़े में सड़क के ठेके को लेकर मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा को काफ़ी परेशान हुए थे.

ढाबों पर नशा करते लोग संभवत छोटे ठेकेदार थे जो हथियारों से लैस भी थे यानी जान माल सुरक्षित नहीं. इनमें से एक भी आदिवासी नहीं था. महिलाओं के प्रति इन लोगों की भावना को घटिया ही कहा जा सकता था.

रास्ते में बस ख़राब हुई और अंधेरे में पांच घंटे रहने पड़े. बगल में नौजवान ( अधिकतर ग़रीब आदिवासी) ट्रक वालों से लूटपाट करने में लगे थे. इन पाँच घंटों में कभी पुलिस का कोई वाहन दिखाई नहीं दिया.

सड़कें नहीं.....क़ानून व्यवस्था नहीं और शायद रोज़गार भी नहीं. यह नवगठित राज्य जा कहां रहा है...

शायद बिहार के साथ भी यही हुआ होगा सालों पहले जब उसका गठन हुआ होगा. बर्बाद होते होते बिहार की यह हालत हो गई है कि अब थोड़ा सा भी विकास लोगों को बहुत अच्छा लगता है.

पूरी दास्तान वहीं पढिए , वैसे भी जिस राज्य में मुख्यमंत्री की सीट को क्रिकेट मैच की तरह खेला जा रहा हो उस राज्य का इससे अच्छा हाल हो भी नहीं सकता ।

 

इसी तरह से एक और मंच है नवभारत टाईम्स ब्लोग्स का जहां नवभारत टाईम्स हिंदी समाचार पत्र से जुडे पत्रकार साथी अपना ब्लोग लिखते हैं । हिंदी ब्लोग्गिंग में समान रूप से सक्रिय भाई आलोक पुराणिक जी और भाई प्रियरंजन झा जी वहां भी बहुत सक्रिय दिखते हैं ।आज अपने ब्लोग अकथ्य पर सुश्री पूजा प्रसाद ने एक सवाल रखा है

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क्या वेटर आपका गुलाम है?

पूजा प्रसाद Thursday June 03, 2010

हरिवंश राय बच्चन ने अपनी जीवनी में एक जगह कहा है - गुलामी के संस्कार पीढ़ियों तक नहीं जाते। जब मैं होटल-रेस्टॉरेंट्स में लोगों को वेटर्स को टिप देते हुए देखती हूं तो यही लगता है।
किसी को गुलाम समझने में या खुद से कमतर समझने में जो खुशी हमारी रीढ़ की हड्डी से हो कर गुजरती है, हमें अपनी सेवाएं देने वालों को दी जाने वाली बख्शीश इसी खुशी का इनडाइरेक्ट एक्सटेंशन है। बात जरा कड़वी है मगर सोच कर देखिए क्या सच नहीं है? और जिस तरह से टिप लेने वाला खुश होता है, क्या वह इसी सामंती जीन का असर नहीं है?

जबकि असल बात तो यह है कि कोई वेटर जब विनम्रता से आपको मेन्यू दे कर, ऑर्डर ले कर खाना परोसता है, तो वह अपना काम कर रहा होता है। ठीक वैसा ही काम जैसा कि मैं एनबीटी डॉट कॉम में करती हूं या फिर आप अपने ऑफिस में कर रहे हैं। इस जॉब के बदले में महीने के अंत में हम सभी को एक अमाउंट मिलता है जिसे हम सैलरी कहते हैं। किसी वेटर, किसी अकाउंटेंट या किसी जर्नलिस्ट को हर महीने उसके काम के एवज में सैलरी मिलती है। अब जरा बताइए, कैसा लगेगा एक अकाउंटेट को जब उसका बॉस शाम को जाते समय उसकी टेबल पर कुछ चिल्लड़ रख जाए और मुस्कुरा कर चलता बने?

 

क्या कहा थकान महसूस होने लगी , लो जी खाने का भी इंतज़ाम कर रखा है ,नाश्ते में राम लड्डू पेश कर रही हैं निशा मधुलिका जी , जाईये सीखिए , बनाईये और सबको खिलाईये

| नाश्ता | राम लड्डू (Ram Laddu Recipe)

राम लड्डू (Ram Laddu Recipe)

निशा मधुलिका - - 310 बार पढ़ा गया

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image Ram Laddu Recipe

लड्डू सामान्यतया मीठे होते हैं लेकिन राम लड्डू नमकीन होते हैं और हरी चटनी और मूली के लच्छे के साथ खाये जाते हैं . दिल्ली में राम लड्डू का ठेलें आप लगभग हर बाजार में देख सकते हैं, गोल गोल गरमा गरम राम लड्डू कढ़ाई में तलते देख इन्हैं खाने के लिये मन कर जाता हैं

 

भाई आलोक रंजन कहते हैं कि चुप ही रहता हूं , मगर पोस्ट देख कर लगा कि लो कल्लो बात इतनी चुप्पा चुप्पी में ही इत्ता धमाका देखिए

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Wednesday, June 2, 2010

लो जी बोलने का मौका फिर आ गया... मुंबई के बांबे हॉस्पीटल में बिजली आखिरकार आ ही गयी... पूरे तीन दिनों बाद यहां पर बिजली रानी के कदम पड़े हैं... तीन दिनों तक बिना बिजली के ये हॉस्पीटल चलता रहा... जेनेरेटर की मदद ली गयी.. ताकि इमरजेंसी सेवाओं पर बिजली के नहीं होने का असर ना पड़े... अमां ये बिजली भी बड़ी अजीब है... रहने से भी दिक्कत ना रहने से दिक्कत... और किसी पर गिर पड़े तो भइया समझो कि बस काम पूरा हुआ... दुनिया में अब उसके लिए कोई काम बचा ही नहीं... लेकिन मुझे तो बांबे हॉस्पीटल में बिजली नहीं होने के पीछे बड़ी साजिश लगती है... कोई बड़ा षडयंत्र लगता है... कहीं जानबूझकर तो बांबे हॉस्पीटल की बिजली गायब तो नहीं कर दी गयी... अब आप सोच रहे होंगे कि भला इसमें कैसी और किसकी साजिश हो सकती है... तो जनाब लगता है आप लोगों का ध्यान हॉस्पीटल के नाम की तरफ नहीं गया... बांबे हॉस्पीटल... अब भी समझ नहीं आया

समझ नहीं आया तो जाईये पोस्ट पढिए और समझिए न …..

 

पढाई लिखाई नाश्ता वैगेरह के बाद थोडा गीत संगीत हो जाए तो ….देखिए आज प्रतिभा जी ,क्या सुनवा रही हैं

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Wednesday, June 2, 2010

हमारी सांसों में आज तक वो हिना की खुशबू महक रही है..

आज अपने ब्लॉग पर पहला ऑडियो दे रही हूँ.
इस सुरीले आगाज़ के लिए नूरजहाँ की आवाज से
बेहतर भला क्या होगा...

 

बहुत कोशिश के बावजूद वो औडियो यहां नहीं लोड हुआ , अच्छा ही हुआ अब आप जाकर उनकी पोस्ट पर ही इसका लुत्फ़ उठाईये , वर्ना यहीं  से सुन कर खिसक लेने का रिस्क ज्यादा दिख रहा था हमें …..तो जाईये और वहीं सुनिए

Posted by pratibha at 12:18 PM

आगे बढा तो प्रतीक माहेश्वरी एक दृढ फ़ैसला लेते हुए दिखे , जिसमें एक राजनेता के  कत्ल होने की दास्तान थी । देखिए न

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एक दृढ़ फैसला 

बुधवार, २ जून २०१० comments: 7

Posted by Pratik Maheshwari at ११:५३ PM

मोहित एक सर्वगुण और सम्पूर्ण परिवार का लाडला बेटा था | बड़ा भाई डॉक्टर बन गया था और बड़ी बहन भी अपनी पढ़ाई पूरी कर के अपने ससुराल जा चुकी थी | मोहित पिछले ५ सालों से बाहर ही था और अपनी पढ़ाई ख़त्म करके वो वापस घर आया था |
मोहित में बदलाव ज़बरदस्त था और उसके सोचने-समझने-परखने की शक्ति लाजवाब हो गयी थी | कॉमर्स लेकर पढ़ने के बाद भी उसका रुख अपने देश, अपनी मातृभूमि के लिए कुछ कर गुजरने का था | वह केवल बोलना और सुनना नहीं चाहता था.. कुछ करना भी चाहता था | कुछ अनुभवी लोगों से विचार-विमर्श करके उसने एक फैसला लिया.. एक दृढ़ फैसला |

बताईये कि क्या ये फ़ैसला सही था या गलत ?

 

आगे राधारमण जी ने सूचना देते हुए बताया कि नहीं रहीं उजरा बट ,

 

Wednesday, June 2, 2010

नहीं रहीं उजरा बट

प्रसिद्ध थियेटर अभिनेत्री और भारतीय अभिनेत्री जोहरा सहगल की बहन उजरा बट का पूर्वी पाकिस्तान के सांस्कृतिक शहर लाहौर में निधन हो गया है। वह ९३ वर्ष की थीं। बट ने अपना अंतिम स्टेज कार्यक्रम २००८ में दी थी। उन्होंने अपना ९३ वां जन्मदिन २२ मई को अपने दोस्तों और परिवार के साथ मनाया था।

भारत में उत्तराखंड के रामपुर में १९१७ में जन्मी बट ने अपने कैरियर की शुरुआत नृत्यांगना के रूप में १९३७ में की थी। १९४० और १९५० के बीच वह प्रसिद्ध पृथ्वी थियेटर की महत्वपूर्ण महिला में शुमार हो गई। उन्होंने ख्वाजा अहमद अब्बास के नाटक जुबैदा में अभिनय किया और पृथ्वीराज कपूर के साथ महत्वपूर्ण रोल की। पृथ्वी थियेटर के साथ कई वर्षों तक जुड़ी रही बट ने शंकुतला, पठान, किसान, गद्दार और दिवार में अपनी बहन जोहरा के साथ काम किया और लगभग पूरे अविभाजित भारत का अपने समूह के साथ दौरा की। लेकिन १९६४ में वह अपने पति हामिद बट के साथ पाकिस्तान चली गईं। वे रावलपिंडी में शांति का जीवन गुजारने लगीं। बाद में अक्टूबर १९८५ में वह अजोका थियेटर में शामिल हो गईं।

स्तुति पांडे

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अपने अलग अंदाज़ में कभी राबर्ट की भोजपुरी दिखवाती हैं तो कभी डेबी से मिलवाती हैं जाईये आप भी मिल कर आईये

Wednesday, June 2, 2010

डेबी की डेस्क


डेबी मेरे साथ आई बी एम् में काम करती थीं. वो पिछले १३ साल से आई बी एम् से जुडी हुई थीं, कल उनका विदाई समारोह था. दो वर्ष पहले वो फ्लोरिडा से कोलोराडो ऑन-साईट काम करने के लिए स्थान्तरित हुई थीं. फ्लोरिडा वाला घर बेचा, बच्चों से दूर हुयीं, पोते-पोती और नाती-नातिन से भरा पूरा परिवार छोड़ कर अकेले यहाँ आयीं. अकेले इसलिए क्यूंकि तलाक हो चुका है. यहाँ आकार फिर से नए सिरे से शुरुवात की ही थी की उनके जाने की घोषणा कर दी गयी. डेबी के हिस्से का काम इंडिया आउट सोर्स कर दिया गया.

लीजीए अब परमजीत बाली जी की चिंता पर भी गौर फ़रमाईये जरा

क्या आपको भी अपने फिगर की चिन्ता नही है....?

Thursday, June 3, 2010

आज नेट पर घुमते हुए एक विचार मन मे आया कि नर-मादा दोनों मे से किसे अपनी फिगर की चिन्ता ज्यादा सताती है.......इसी बारे मे खोज कर रहा था कि अनायास ही यह कार्टून हाथ लग गया....सोचा कि आप तक भी इसे पहुँचाया जाए......जरा संभल कर देखे:)

 

अब आगे रेणु दीपक उर्फ़ पुखराज जी

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की कविता की इन पंक्तियों का मजा लीजीए ,

Wednesday, June 2, 2010

धुआं धुआं हो गयी नज़र

तेरे इंतज़ार को पाले ने मारा है ,

एक ज़लज़ला उठा है फिर

मलबे तले जीवन हारा है ,

अंतहीन तलाश है जाऊं कहाँ

लोग कहते हैं नाकारा है ,

तेरी यादों को भूलने के दर्द ने

लकीरों में तेरा नाम उभारा है ,

पूरी कविता को आप पोस्ट पर जाकर पढिए और सराहिए ……

 

मिलिए एक नए ब्लोग से

Wednesday, June 2, 2010

भारत माता की वीर पुत्री, झांसी की रानी।

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

आप सोच रहे होंगे बस आगे आगे ही भागे जा रहे हैं , अजी खुशखबरी भी सुनिए जी किसने रोका है भाई

खुशखबरी... खुशखबरी... खुशखबरी... ब्लोगिंग से कमाई शुरू

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Author: जी.के. अवधिया | Posted at: 9:55 AM | Filed Under: कमाई, टिप्पणी, ब्लोगिंग

आप तो जानते ही हैं कि आजकल विज्ञापन का जमाना है और आप विज्ञापन के महत्व को भी अच्छी तरह से समझते हैं। ये विज्ञापन चीज ही ऐसी है कि किसी उत्पाद को बाजार में आने के पहले ही सुपरहिट बना देती है। अच्छे से अच्छा उत्पाद विज्ञापन के अभाव में पिट जाता है और सामान्य से भी कम गुणवत्ता वाला उत्पाद विज्ञापन के बदौलत हिट हो जाता है। तो फिर आखिर अपने ब्लोग का अन्य ब्लोग में विज्ञापन करने में बुराई ही क्या है?
इसीलिये हमने निश्चय किया है कि आप हमारे पोस्टों में टिप्पणी करते हुए अपने ब्लोग का विज्ञापन कर सकते हैं, और वह भी बहुत सस्ते दर पर। विज्ञापन के दर इस प्रकार हैं:

  • बिना किसी लिंक के प्रचार वाली टिप्पणी के लिये रु.100 मात्र
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  • हमारे ब्लोग के साइडबार में आपके ब्लोग का विजेट लगाने के लिये रु.2000 प्रतिमाह मात्र

खुशखबरी के बाद एक जरूरी सूचना भी ले लें

 

पूरे भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों के नम्बर बदले: हिन्दी-अंग्रेजी में पूरी सूची उपलब्ध

Posted in national highway number, छत्तीसगढ़, राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक प्रस्तुतकर्ता बी एस पाबला on Thursday 3 June 2010

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पिछले कई दिनों से मैं सड़क मार्ग द्वारा अपने उत्तर-पश्चिम भारत भ्रमण की रूपरेखा बना रहा हूँ। हालांकि तकनीक के विकास ने हमें बहुत सी सुविधाएँ दे दी हैं। चाहे वह गूगल लैटीट्यूड व गूगल मैप्स का मार्ग-दर्शन हो या प्यारी सी आवाज़ में जीपीएस नेवीगेशन के सहारे रह-रह कर दिए जाने वाले दिशा-निर्देश। फिर भी कई चीजों को धरातल पर रह कर किया जाना सुरक्षित रहता है!

 

चलिए आज के लिए इतना ही काफ़ी है , अरे भाई आपके लिए नहीं मेरे लिए ……..अभी और भी बहुत कुछ पढना लिखना है जी , रेडियो भी सुनना है , समाचार भी सुनना है जी ……और और और ….सब आपही को बताएंगे क्या ॥

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