यूं तो इन दिनों रेल की पटरियों पर जाट भाई लोग लंबलेट पडे हुए हैं लेकिन अपनी टरेन ही क्या जो पटरियों की मोहताज हो .पटरी न सही सडक पर दौडा लेंगें ..लीजीए फ़िर से आपके बीच धडधडाती पहुंच गई है टरेन ..
day 25 March 2011
सिद्धान्त चौधरी उत्तराखण्ड घूमना चाहते हैं
प्रस्तुतकर्ता नीरज जाट जी
गाजियाबाद से सिद्धान्त चौधरी लिखते हैं:
"नीरज भाई नमन,
नीरज जी, मैं आपका ब्लॉग पिछले डेढ साल से पढ रहा हूं। आप जिस तरह से अपनी लेखनी प्रस्तुत करते हैं, मैं उसका काफी बडा प्रशंसक हूं। माफी चाहता हूं कि किसी कारणवश मैंने आपसे सम्पर्क करने का प्रयास नहीं किया। जब भी आप उत्तराखण्ड की यात्रा का सार प्रस्तुत करते हैं तो मुझे लगता है कि आप मुझे कुछ विशेष जानकारी दे सकते हैं।
देखिये, वैसे मैं उत्तराखण्ड कई बार गया हूं (हरिद्वार, ऋषिकेश, नीलकण्ठ, देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, जोशीमठ, भीमताल, नैनीताल आदि)। मैं हमेशा अकेला ही उत्तराखण्ड के लिये घूमने निकला हूं। ज्यादातर मैं गलत सीजन में निकल जाता हूं (नवम्बर-फरवरी), इस कारण से मैं कभी ज्यादा आगे नहीं जा सका। रास्ते बन्द होते हैं और लोकल लोगों से आगे जाने के बारे में पूछता हूं तो मना कर देते हैं। एक बार इरादा भी बना लिया था कि अबकी बार दिसम्बर में बद्रीनाथ जाना है लेकिन पाण्डुकेश्वर से आगे आर्मी वालों ने मना कर दिया। वास्तव में मेरे पास टाइम भी कम होता है इसलिये मैं प्लानिंग को ठीक तरह से मैनेज और एप्लाई नहीं कर पाता। एक बात और, मैं ज्यादा से ज्यादा यात्रा को पैदल चलकर पूरा करता हूं।
शनिवार, २६ मार्च २०११
टीवी का दख़ल
अचरज और पाखी के पैदा होने के पहले ही शांति ने अपने बच्चों के बारे में तमाम कल्पनाएं कर रखीं थीं। और अपने बच्चों को वो क्या सिखाएगी और क्या बनाएगी, इसकी एक मोटी रूपरेखा भी उसके और अजय के ज़ेहन में थी। हालांकि बच्चों के जन्मने के बाद से उसकी काल्पनिक रूपरेखा में काफ़ी बदलाव भी आया। उसने सोचा था कि वो पाखी को संगीत ज़रूर सिखाएगी ताकि वो उसकी नानी की तरह सुरीला गा सके। हालांकि पाखी का गला अच्छा है मगर उसे संगीत में दिलचस्पी ही नहीं। उंगलियों को कीपैड पर बार-बार दबाने से जो संगीत पैदा होता है आजकल उसी से पाखी का जीवन संचालित होता है। अचरज के लिए उसने सोचा था कि वो अपने दादा की तरह अकैडमिक्स में जाए। जब अचरज पुरानी धोतियों की लंगोटियाँ ही पहन रहा था, तभी अजय और शांति ने उसकी भविष्य की छवि में मोटे चश्मे और सुलगते पाइप के तत्व जोड़ने शुरु कर दिए थे।
Friday, March 25, 2011
शिव ने पार्वती को चूम लिया
दक्षिण में चोल राजवंश ने ९वीं से १४वीं शताब्दी तक राज्य किया। उन्होंने गंगई कोंडा चोलापुरम में वृहद ईश्वर मंदिर बनवाया। इस चिट्ठी में, इस मन्दिर की चर्चा है।
बृहद ईश्वर मन्दिर - चित्र विकिपीडिया से
दक्षिण में चोल राजवंश ने ९वीं से १४वीं शताब्दी तक राज्य किया। ११वीं शताब्दी की शुरुवात में, राजेन्द्र चोल-I (१०१२-१०४४ ईसवी) ने वृहद ईश्वर मंदिर का निर्माण किया। इस मंदिर का निर्माण, पाला राजवंश पर जीत के स्मरणोत्सव के रूप में किया गया है। यह मंदिर शिव भगवान को अर्पित है। इसे, युनेस्को के द्वारा, विश्व धरोहर स्थान का दर्जा दिया गया है।
कुछ दिन पहले मैंने निवेदिता मेनन और आदित्य निगम की किताब, "ताकत और विरोध" (Nivedita Menon and Aditya Nigam, "Power and Contestation: India Since 1989", Halifax and Winnipeg: Fernwood Publishing; London and New York: Zed Books 2007) पढ़ी जो मुझे बहुत दिलचस्प लगी. निवेदिता जी दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र विभाग में रीडर हैं और फेमिनिस्ट विमर्ष में भी सक्रिय रही हैं, जबकि आदित्य जी दिल्ली के विकासशील समाजों के अध्ययन केन्द्र (Centre for studies of developing societies - CSDS) के संयुक्त निर्देशक हैं. यह किताब "आधुनिक विश्व इतिहास" शृँखला के अन्तर्गत छापी गयी है जिसका उद्देश्य है 1989 के शीत युग के अन्त के पश्चात बदलती हुई दुनिया के इतिहास को समझने की कोशिश करना.
मेनन और निगम भारत के आधुनिक इतिहास के विमर्ष में उत्तर राष्ट्रीयवाद, नव वामपंथ और फेमिनिस्ट दृष्टिकोणों का उपयोग करते हैं.
निवेदता मेनन ने पहले भी अन्य जगह "फेमिनिस्म के संस्थाकरण" के बारे में अपने विचार रखे हैं. उनका कहना है कि पित्रकेन्द्रित समाज में चाहे स्त्रियों से जुड़ी कोई भी बात हो, बलात्कार या हिँसा या दहेज की, लैंगिक समता के लिए लड़ने वाले गुट अब केवल कानून बदलने की बात करने तक ही सीमित रह जाते हैं कुछ यह सोच कर कि कानून बदलने से अपने आप ही समाज बदल जायेगा. वह कहती हैं कि फैमिनिस्म और लैंगिक समता की बात सोचने वालों लोगों को फैमिनिस्ट विचार विमर्श के व्यक्तिगत सशक्तिकरण के पक्ष पर ज़ोर देना चाहिये.
वह दंपत्ति मेरे पास आया था और उनके पति अपनी पत्नी की काउंसिलिंग के लिए उन्हें लाये थे। उन्हें शिकायतथी कि वे बहुत गुमसुम रहने लगी हैं। उन्हें लगता है कि घर से बाहर और ऑफिस में खुश रहती हैं फिर घर में हीआकर क्या हो जाता है? वे इसका निदान चाहते थे और उन्होंने ये बात मुझे फ़ोन पर पहले ही बता दी थी। पति औरपत्नी दोनों ही उच्च शिक्षित और अच्छी जगह पर नौकरी कर रहे थे।
जब उन दोनों ने मेरे कमरे में प्रवेश किया तो मुझे ये समझते देर नहीं लगी कि बीमार कौन है ? जहाँघर में सिर्फ दो ही लोग रहते हों और फिर भी तनाव तो उसका कारण कोई एक तो बनता ही होगा। मैंने दोनों से हीअलग अलग बात करना चाहा तो पति से कहा कि आप बाहर बैठें , मैं इनसे अकेले में कुछ पूछना चाहती हूँ। पतिदेव बाहर चले गए।
जब पति बाहर निकल गए और दरवाजा बंद हो गया तो पत्नी ने पीछे मुड़कर देखा और एक गहरीसाँस ली। उनकी सिर्फ एक सांस ने पूरी कहानी बयान कर दी। फिर भी उनकी हिस्ट्री तो जाननी ही थी।
Saturday, March 26, 2011
गुमचोट
सब ठीकठाक है
बस एक तकलीफ
जब-तब जीने नहीं देती
जानता नहीं कि यह क्या है
याद से जा चुकी
या किसी और जन्म में लगी
भीतर की कोई भोथरी गुमचोट
कोई अनुपस्थिति
कोई अभाव
कोई बेचारगी कि
हम अपने खयाल को सनम समझे थे
इस खयाल का कोई क्या करे
Wednesday, March 23, 2011
वो कौन सा सपना था भगत?
वह भी मार्च का कोई आज सा ही वक्त रहा होगा
जब पेड़ पलाश के सुर्ख फ़ूलों से लद रहे होंगे
गेहूँ की पकती बालियाँ
पछुआ हवाओं से सरगोशी कर रही होंगी
और चैत्र का चमकीला चांद
उनींदी हरी वादियों को
चांदनी की शुभ्र चादर से ढक रहा होगा
जब कोयल की प्यासी कूक
रात के दिल मे
किसी मीठे दर्द सी आहिस्ता उतर रही होगी
कोने में रखी एक किताब .......गुनाहों का देवता............भारतीनामा ( एक श्रंखला )
ये महज़ एक किताब नहीं , एक पूरा युग है जिसे मैंने जियो है और अब भी जी रहा हूं
ये इस ब्लॉग की पहली पोस्ट है । इस ब्लॉग के यहां होने की भी एक दिलचस्प वजह है । किताबें शुरू से ही बहुत लोगों की तरह में मेरे वही प्रिय दोस्त रहे हैं । ये अलग बात है कि इन किताबों के दायरे में पहले कॉमिक्स , फ़िर वेद प्रकाश शर्मा , गुलशन नंदा , और कर्नल रंजीत सरीखे लेखक आए । अपने संघर्ष के दिनों में मुझे मेरे एक सीनीयर प्रफ़ुल्ल भईया ने अचानक ही एक दिन मेरे हाथों में ये किताब रख दी । नाम था गुनाहों का देवता ..इस किताब ने हिंदी साहित्य की किताबों की तरफ़ दीवानेपन का वो दरवाज़ा मेरे भीतर खोल दिया कि आज कमोबेश मेरे पास लगभग छ सौ किताबें हैं वो भी मित्रों द्वारा पढने के बहाने टपाने के बावजूद भी ।
इन किताबों को पढने का अवसर , जी हां नियमित मैं कभी भी नहीं पढ पाता हूं ..अक्सर मुझे लंबे सफ़र में या फ़िर घर से बाहर कहीं समय बिताते समय मिल ही जाता है और कमाल दे्खिए कि इस ब्लॉग का जन्म भी हाल ही में चर्चित पुस्तक five point someone को रास्ते में पढते समय ही आया था ।
हमारे देहरादून में, खास तौर पर रायपुर गांव की ओर एक मुहावरा है - चंडूखाने की। यह चंडूखाने की हर उस बात के लिए कहा जा सकता है, जिस बात का कोई ओर छोर नहीं होता, वह सच भी हो सकती है और नहीं भी। पर उसकी प्रस्तुत सच की तरह ही होती है। एक और बात- वैसे तो "चंडूखाने की" यह विशेषण जब किसी कही गयी बात को मिल रहा होता है तो उसका मतलब बहुत साफ साफ होता है कि बात में दम है। चंडूखाने की मतलब कोई ऎसी बात जो किसी बीती घटना के बारे में भी हो सकती है। पर ज्यादतर इसका संबध भविष्यवाणी के तौर पर होता है या फिर ऎसा जानिये कि इतिहास में घटी किसी घटना का वो संस्करण जिसे प्रस्तुत करने की जरूरत ही इसलिए पड़ रही है कि वह निकट भविष्य का कोई गहरा राज खोल सकती है। मैं कई बार सोचता रहा कि यह मुहावरा देहरादून और खासतौर पर रायपुर गांव के निवासियों की जुबा में इतना आम क्यों है, जबकि आस पास भी कोई चंडू खाना मेरी जानकारी में तो नहीं ही है।
संक्षिप्त नाम (Abbreviations)
प्रस्तुतकर्ता जी.के. अवधिया Sunday, March 27, 2011
AAFI
अमेच्योर एथेलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इण्डिया (Amateur Athletics Federation of India)
AASU
ऑल आसाम स्टूडेंड्स यूनियन (All Assam Students Union)
ABM
एंटी बैलेस्टिक मिसाइल (Anti Ballistic Missile)
AC
अल्टरनेट करेंट / अशोक चक्र / एयर कंडीशनर / अंटार्टिक क्लब (Alternate Current / Ashok Chakra / Air Conditioner / Antarctic Club)
ACC
एंक्ज़िलरी कैडेट कोर (Anxillary Cadet Core)
AD
एनो डोमिनी अर्थात् ईसा के जन्म के पश्चात् (Ano Domini - After the birth of Jesus)
ADB
एशियन डेव्हलपमेंट बैंक (Asian Development Bank .)
AERE
एटामिक एनर्जी रिसर्च इस्टेब्लिशमेंट (Atomic Energy Research Establishment)
Sunday 27 March 2011
आरक्षण लाभ के लिए जाति का निर्धारण जन्म से होगा न कि विवाह से
मथुरा (उ.प्र.) से नेम प्रकाश ने पूछा है -
.............................................................................................................
अनुसूचित जाति की कोई लड़की किसी सामान्य जाति के पुरुष से विवाह करती है, तो क्या उस लड़की की जाति शादी के बाद बदल जाती है? क्या वह सरकारी नौकरियों के लिये अपनी जाति का प्रयोग कर सकती है? कृपया उचित सलाह दें।
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Sunday, March 27, 2011
हिमाचल से ‘हिमप्रस्थ’
पत्रिका: हिमप्रस्थ, अंक: फरवरी 2011, स्वरूप: मासिक, संपादक: रणजीत सिंह राणा, पृष्ठ: 96, मूल्य: 5रू(वार्षिक 50रू.), ई मेल: himprasthahp@gmail.com , वेबसाईट: उपलब्ध नहीं, फोन/मो. नहीं, सम्पर्क: हिमाचल प्रदेश पिं्रटिंग प्रेस परिसर, घोड़ा चैकी, शिमला 5 हिमाचल प्रदेश
पत्रिका के समीक्षित अंक में प्रमुखतः विविधतापूर्ण आलेखों का प्रकाशन किया जाता है। इस अंक में शमी शर्मा, दादू राम शर्मा, ललितमोहन शर्मा, अमिता पाण्डेय, सुनीता, गोपल जी गुप्त, कंचन कुमारी तथा सिम्मी सिंह के विविध विषयों पर लिखे गए आलेखों का प्रकाशन किया गया है। सुरेन्द्र चंचल, मनोज श्रीवास्तव तथा पीयूष गुलेरी की कहानियां अच्छी व पढ़ने योग्य हैं। नरेन्द्र भारती, देशराज पुष्प तथा अखिलेश शुक्ल की लघुकथाएं समसामयिक विषयों पर संक्षिप्त किंतु सार्थक चिंतन है। स्नेहलता, नंदिता बाली, उदय ठाकुर एवं रमेश कुमार सोनी की कविताएं भी स्तरीय हैं। अशोक गौतम का व्यंग्य तथा दायकराम ठाकुर का यात्रा विवरण ठीक ठाक है। पत्रिका की अन्य रचनाएं, समीक्षाएं भी रूचिपूर्ण कही जा सकती है।
नवकी... घर को जाने कब से बुढ़ौना लगा है!
बालम विदेस हैं। नवकी का करे?
इस उजाड़खंड बरमंड में ससुर खाँसते रहते हैं और सास सुनगुन सूँघती रहती हैं। घर को जाने कब से बुढ़ौना लगा है जब कि पलंग रात को चररमरर चर पर करती है। नवकी अपनी ही करवट उठान लेती है, लजाती है और फिर बालम को कोसती है - मुआँ एक किल्ला तक ठीक न करा पाया, अब नवकी का करे? इस चररमरर का का करे?
नवकी किरकेट देखती है। लागा झुलनिया के धक्का बलम कलकत्ता। अरे नाहीं रे छक्का! कोई इतनी नई मेहरारू को छोड कर जाता है भला?
चौका छक्का ना रे नवकी! सब धक्का है। तोहरी झुलनिया क नाहीं रे! माया क धक्का। देखो मोबैल पर, टीवी पर तिरकिथ धिन तिरकित धिन मधुबन में राधिका, धुत्त पगली! माया नाचे रे! बालम की मुरलिया बाजे रे। थिरकित थिरकित, छनछन न न न नोट गिरे स न न न।
कहाँ बाड़ू sss हो पतोहा? नवकी नाक सिकोड़ती है। मुसकाती है। दाँत न दिखाना, अम्मा जी कहिन। घुघ्घुट काहें तनले, रे पतोहा। पुरान जमाना गइल रे। इहाँ आव देखीं। लपर लपर। हमहूँ कहीं, ललना काहे विदेस गैल? लै लो मुँहदेखाई। वोकर त करम फूट गैल। सनीचरी जस मेहरारू।
साहित्य लेखन बनाम ब्लौगिंग -- स्त्री-पुरुष चर्चा भाग-११
विषय दो प्रकार के होते हैं -
पहला- विज्ञान , आविष्कार , संस्कृति , भाषा , प्रेम , जनसंख्या , बीमारियाँ , भूकंप , प्रलय , ज्योतिष , आस्था , पकृति , इतिहास , भूगोल , गणित , आंकड़े , तरक्की और विकास , मंदिर , सभ्यताएं , वेद-पुराण , धर्म , भ्रष्टाचार इत्यादि ।
दूसरा - मन के विचार , मन का कोलाहल , मन में उत्पन्न असंख्य प्रश्न , खट्टे मीठे अनुभव , विमर्श , गोष्ठी , प्रतिक्रियाएं , उपलब्धियों की अभिव्यक्ति , मन का आक्रोश , ह्रदय की चिंता या व्यथा की अभिव्यक्ति , थोडा सा खट्टा , थोडा चरपरा , अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर ,आत्मा , पुनर्जन्म , छोटी-छोटी खुशियाँ और बहुत कुछ..
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...न रन, न बिकेट......इंडिया हिट विकेट !
चौबे जी की चौपाल
(दैनिक जनसंदेश टाईम्स/२७ मार्च २०११ )
....न रन, न बिकेट......इंडिया हिट विकेट !
आज चौपाल में काफी गहमागहमी है,वर्ल्ड कप के उत्तेजक क्रिकेट मैच की चर्चा जो हो रही है, दालान के बाहर पाकड़ के पेंड के निचवे दरी बिछाके बईठे हैं चौबे जी महाराज और कह रहे हैं कि बटेसर ! आजकल माहौल में इत्ती गर्मी और देशभक्ति की मात्रा इत्ती ज्यादा हो गयी है कि क्रिकेटमय हो गया है हमरा देश .... मैच देखने के चक्कर में हमरी लोकल पुलिस हफ्ता वसूली छोड़कर जेब कतरों के साथ टी वी पर अंखिया गराई दिए हैं , बस सारा फोकस हमरे धोनी भईया के ऊपर है, हार गए तो धोनी भईया जिम्मेदार और जीत गए तो कहेंगे अमा यार तक़दीर अच्छी थी उसकी ! जैसे हमरे देश में क्रिकेट क्रिकेट न शिला की जबानी हो गयी है, जिधर से गुजरो सारी टी वी कवरेज उसी पर फोकस हो जाती है और मुन्नी की तरह खामखा बदनाम हो जाता है बेचारा धोनी भईया !
तो आज की झलकियां फ़िलहाल इतनी ही …कल से फ़िर मिलेंगी आपको झा जी की दो पटरियों पर दौडती टरेन ..दो लाईना और एक लाईना भी
चली चली रे ट्रेन फिर चली रे ... बहुत खूब महाराज ... ऐसे ही चलाये रहो !
जवाब देंहटाएंआरक्षण का लाभ इसे कहते हैं। आप की ट्रेन में स्थान मिल गया।
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों बाद इस पर आये...
जवाब देंहटाएंट्रेन के आगमन पर दिल्ली जंक्शन पर आपका स्वागत है ।
जवाब देंहटाएंbadhiya jhalakiyaan dikhlaain bhaai ji..
जवाब देंहटाएंबहुत दिनो के बाद आप की यह ट्रेन आई, लेकिन खुब सुंदर नयी नवेली दुलहन सी सजी
जवाब देंहटाएंझा जी,
जवाब देंहटाएंजाट देवता का नमस्कार,
अपनी ट्रेन में मेरी बाइक की जगह जरुर बना लेना ।
चलो ट्रेन का सफ़र हमने भी कर लिया ..आपका शुक्रिया
जवाब देंहटाएंयह सफ़र जोरदार रहा अजय भाई ! शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंगागर से सागर छलकाती झलकियां :)
जवाब देंहटाएंअजय सुपुत्र
जवाब देंहटाएंचिरंजीव भवः
आपका लेख टरेन पढ़ अच्छा लगा
टरेन चलती रहे
आशिर्वाद के साथ
आपकी गुड्डोदादी चिकागो से