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रविवार, 12 जनवरी 2014

यादों का एलबम (ग्राम यात्रा- I)...झा जी कहिन

लहकते खेतों की सुनहरी चमक

लगभग एक साल के बाद मां की पांचवी बरसी के लिए गांव जाने का कार्यक्रम बन गया , वैसे तो मुझ बदनसीब को , बदनसीब इसलिए क्योंकि जितना ज्यादा प्यार और लगाव मुझे ग्राम्य जीवन से था और यही कारण था कि मैं किसी भी बहाने से साल में कम से कम दो बार तो जरूर ही गांव पहुंच जाता था, मगर अब मां बाबूजी के चले जाने के बाद ये तारतम्यता टूट सी गई है , जब भी कोई अवसर मिलता है मेरी भरसक कोशिश होती है कि मैं गांव पहुंच जाऊं मगर ये भी सच है कि अक्सर ऐसा नहीं हो पाता है ।

इस बार की बहुत ही छोटी सी ग्राम यात्रा बहुत सारे मायनों में अलग रही । बहुत कुछ नया , अ्नोखा और रोमांचित करने वाला लगा/मिला । सडकों की दुरूस्त हुई हालत ने न सिर्फ़ सडकों की रफ़्तार बढा दी है , न सिर्फ़ ऑटो टैंपो , रिक्शे , जीप की आवक जावक को बढा कर ट्रेन के आगे के गांव कस्बों तक पहुंच को सुलभ बनाया है बल्कि रातों को हर चौक चौराहे पर जलते बल्ब और सीएफ़एल भी मानो ये बता रहे हैं कि बहुत कुछ बदल रहा है और बहुत तेज़ी से बदल रहा है ।


खेतों में गन्नों , तंबाकू ,और सब्जियों की लहलहाती फ़सल मानो ईशारा कर रही थी कि हम भी अब बदलने को आतुर हैं । जिलों और कस्बों के बाज़ार अब फ़ैलने लगे हैं और उनमें भीड भी अचानक ज्यादा दिखाई देती है । किताबों की दुकानों से लेकर समाचार पत्रों की संख्या में भी बहुत इज़ाफ़ा होता दिखाई दिया है । बीच में अचानक जो शून्यता सी दिखने लगी थी वो अब भरने सी लगी है ।

लेकिन सब अच्छा ही अच्छा हो रहा है ऐसा भी नहीं है , सरकार की अजीबोगरीब नीतियां जिसके कारण आज गांवों के चौक चौराहों पर शराब के अड्डे खुल गए हैं , बडी से छोटी और कच्ची उम्र तक के लोग नशे के आदी बन रहे हैं अब शराब और थैली (कच्ची शराब) ज्यादा आसानी से उपलब्ध कराई जा रही है । तिस पर कमाल ये कि सरकार खुद ऐलान कर रही है कि नशा मुक्त ग्राम को एक लाख रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा । अपराध की बढती घटनाओं ने भी बरबस ध्यान खींचा , सिर्फ़ पांच दिनों के अपने प्रवास में मैंने कम से कम दस बडे अपराधों के बारे में पढा सुना । डकैती , अपहरण और बलात्कार की घटनाओं के अलावा भ्रष्टाचार और उनमें फ़ंसते और धराते अधिकारियों की खबरें भी पढने सुनने देखने को मिलीं । अस्पताल और स्कूल के हालात अब पहले के मुकाबले बहुत बेहतर है । इन सब पहलुओं पर विस्तार से लिखूंगा , और बिंदुवार लिखूंगा ...फ़िलहाल कुछ बेहद खूबसूरत से दृश्य जो मैंने अपने कैमरे में कैद किए , आपके लिए ले आया हूं







खेतों के आसपार विचरते हुए नीलगायों का समूह

नीलगायों ने बेशक कृषकों की मुसीबतें बढाई हैं मगर मेरे लिए तो आकर्षण जैसा था


आंगन में चमकता हुआ सूरज का कतरा बना हुआ गेंदे का फ़ूल
सरस्वती पूजा की तैयारियों में लगा बाज़ार ..खूबसूरत प्रतिमाएं

हरी पीली चादर ओढे हुए धरती


हरी हरी धरती पे पीले पीले फ़ूल

बढती और उगती फ़सल

रेल का लंबा सफ़र

गन्नों की पेराई और बनती गुड की भेलियां

बदलते हुए स्कूल


आगे की पोस्टों में , मैं आपको सिलसिलेवार इस विकास और विस्तार की कहानी सुनाऊंगा ..........

8 टिप्‍पणियां:

  1. इतिहास गवाह है कि छोटे इलाको मे जब जब विकास हुआ है कुछ न कुछ विनाश भी साथ हुआ है ... अब देखना यह होगा कि विकास ज्यादा हुआ है या विनाश |

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    उत्तर
    1. हां शिवम भाई यही कुछ हमने भी महसूस किया , जल्दी ही इस ब्लॉग पर पोस्ट लिखेंगे सिलसिलेवार इन्हीं मुद्दों पर

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (13-01-2014) को "लोहिड़ी की शुभकामनाएँ" (चर्चा मंच-1491) पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हर्षोल्लास के पर्व लोहड़ी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    उत्तर
    1. आपका शुक्रिया और आभार रूपचन्द्र शास्त्री जी , पोस्ट को स्थान व मान देने के लिए

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  3. उत्तर
    1. आपको भी बहुत बहुत शुभकामनाएं कालीप्रसाद जी

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  4. बेहतरीन फोटो अजय भाई... मकर संक्रांति की बहुत-बहुत बधाईयाँ!

    जवाब देंहटाएं
  5. बेहतरीन फोटो अजय भाई... मकर संक्रांति की बहुत-बहुत बधाईयाँ!

    जवाब देंहटाएं

पढ़ लिए न..अब टीपीए....मुदा एगो बात का ध्यान रखियेगा..किसी के प्रति गुस्सा मत निकालिएगा..अरे हमरे लिए नहीं..हमपे हैं .....तो निकालिए न...और दूसरों के लिए.....मगर जानते हैं ..जो काम मीठे बोल और भाषा करते हैं ...कोई और भाषा नहीं कर पाती..आजमा के देखिये..

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