तो लीजीए इस सफ़र के पहली पटरी है तैयार ,फ़ुर्सत के क्षणों में अच्छी बातें भी पढ लिया करो ॥राम जी नाम केवल सच्चा लगता है ,एक राम के बाद मिलिए एक और राम से ,तुम बजाओ अपनी ढपली , हम अपनी हरमुनिया ,शनिवार को गूगल का होवे है बुरा हालगिरिश भाई नित नए करते हैं प्रयोग ,ब्लॉगजगत में अमन चैन का फ़ैल रहा पैगाम ,यूं तो रोहतक मिलन का पढ पढ के आप हो गए बोर ,फ़ुलमतिया के प्रश्न से , खदेरन हुआ परेशान ,पढिए देखिए , झकझोर गया तन मन ॥नशामुक्त बन सके , समाज , ग्राम और देश ॥कह रही हैं वंदना , अब भी तुम्हारी बहुत याद आती है ,प्रवीण जी को पढना ,एक अनुभव है , बात हमारी मानिए ॥कह रही है अंजना हल्की होती बात जो कही जाए बार बार ,श्याम जी देखिए बिना किए अब देर ,विवेक भाई के साथ करिए मुंबई का एक सफ़र ,देखिए कि पोस्ट पर आज क्या पढा रहे हैंप्रतिभा जी डायरीनुमा ले के आईं कुछ अगडम बगडम ,ये दिल मेरा मेरे खुदा ,न दर्द की खिताब हो ,तो आज के लिए इतना ही इजाजत दीजीए ....मैं पुराने रंग मैं लौट रहा हूं आहिस्ता आहिस्ता ...
फ़ॉलोअर
शनिवार, 27 नवंबर 2010
लीजीए हमने बिछा दी फ़िर से दो लाईनों की पटरियां ....jha ji on track
गुरुवार, 25 नवंबर 2010
झा जी कहिन फ़िर लौटा पोस्टों की झलकियां लेके ..
जी हां , अब कल से कोशिश करूंगा कि वही पुराने अंदाज़ में आपको दो लाईनों में पोस्टों तक पहुंचाने का सूत्र पकडाता चलूं ..निरंतर और निर्बाध …
Thursday, November 25, 2010
दुनिया की १० सबसे खतरनाक और जटिल सडकें :-१
आज अपनी हर पोस्ट से अलग हटकर मैं आपके समक्ष लाया हूँ कुछ तस्वीरें, ये तस्वीरें हैं दुनिया की १० सबसे खतरनाक और जटिल सड़कों की, इस पोस्ट को दो भागों में प्रकाशित किया जायेगा | तो आज कोई चिंतन नहीं, कोई काव्य नहीं बस पेश है दुनिया की ५ सबसे खतरनाक और जटिल सडकें |
१. इस सूची में पहले स्थान पर है फ़्रांस में आल्पस पर्वत श्रंखला पर स्थित Col-De-Turini .. ये सड़क समुद्रतल से २० मीटर ऊपर से प्रारंभ होकर १६७० मीटर तक जाती है |
------------------------------------------------------------------------------------------------------------ २... दूसरे स्थान पर है इटली स्थित stelvio-pass , और ये भी आल्पस की पर्वत श्रृंखला पर ही स्थित है |
------------------------------------------------------------------------------------------------------------ ३... तीसरे स्थान पर नाम आता हैभारत का | हिमाचल प्रदेश में लेह-मनाली मार्ग | इस सड़क के खतरनाक होने का मुख्य कारण है यहाँ होने वाली बर्फ़बारी और भूस्खलन | इस सड़क की देखभाल पूरी तरह से भारतीय सेना की जिम्मेदारी है |
दिल्ली में मिले दिल वालों से..१३ नवम्बर, २०१०
इतना सारा स्नेह, इतना सम्मान-ढेरों रिपोर्टिंग.
आनन्द आ गया दिल्ली मिलन समारोह में.
अक्षरम हिंदी संसार और प्रवासी टुडे से जुडे अनिल जोशी जी एवं अविनाश वाचस्पति जी जिस दिन मैं दिल्ली पहुँचा, उसके अगले दिन ही आकर मिले. बहुत देर चर्चा हुई, चाय के दौर चले और तय पाया कि सभी ब्लॉगर मित्र कनाट प्लेस में मुलाकात करेंगे. १३ तारीख को शाम ३ बजे मिलना तय पाया.
१३ तारीख को सतीश सक्सेना जी का फोन आया और उन्होंने मुझे अपने साथ चलने का ऑफर दिया. अंधा क्या चाहे, दो आँख. मैं तुरंत तैयार हो गया मगर जब बाद में पता चला कि वह मुझे लेने नोयडा से दिल्ली विश्व विद्यालय नार्थ कैम्पस तक आये हैं और उसकी दूरी और ट्रेफिक को जाना तो लगा कि काश!! मैं खुद से चला जाता तो उन्हें इतना परेशान न होना पड़ता.
कनाट प्लेस जैन मंदिर सभागर में बहुत बड़ी तादाद में ब्लॉगर मित्र पधारे थे, सभी के नाम आप विभिन्न रिपोर्टों में पढ़ ही चुके हैं उन सबके साथ साथ वहाँ प्रसिद्ध व्यंग्यकार मान. प्रेम जनमजेय जी को पाकर मन प्रफुल्लित हो उठा. फिर पाया कि वहाँ मीडिया रिसर्च स्कॉलर श्री सुधीर जी के साथ अनेक बच्चे मीडिया शिक्षार्थी ब्लॉगिंग के विषय में कुछ जानने समझने आए हैं. बहुत अद्भुत नजारा था सब का मिलना. इन्हीं शिक्षार्थियों में एक छात्रा रिया नागपाल जिसने हिंदी ब्लॉगिंग को ही शोध के विषय के रूप में चुना है, से मुलाकात हुई और उसने मुझे याद दिलाया कि एक बार वह मेरा इसी विषय पर कनाडा से साक्षात्कार ले चुकी है. बहुत अच्छा लगा सबसे मिलकर.
THURSDAY, NOVEMBER 25, 2010
मुझसे भी तो बाटों चाँद
पतला पतला काटों चाँद
मुझसे भी तो बाटों चाँद
ओस बन टपके आंसूं
ऐसे तो ना डाटों चाँद
सिन्दूरी सुबह कजरारी रात
अपना रंग भी छाटों चाँद
करवा चौथ पे तू भी देखे
इस धरती पर कितने चाँद
बरसे जो सिक्को की माफिक
बारातों में लूटो चाँद
लटके लटके थके नहीं तुम
कभी तो नभ से टूटो चाँद
THURSDAY, NOVEMBER 25, 2010
रूल्स जो भारतीय फॉलो करते हैं...खुशदीप
मैं चाहे ये करूं, मैं चाहे वो करूं...मेरी मर्ज़ी...क्या हम भारतीयों के अंदर कोई आइडेंटिकल और टिपीकल जींस पाए जाते हैं...पृथ्वी सूरज का चक्कर काटना छोड़ सकती है लेकिन मज़ाल है कि राइट टू मिसरूल के हमारे जींस अपने कर्मपथ से कभी विचलित हों...अब दिल थाम कर इसे पढ़िए और दिल से ही बताइए कि क्या आप इन रूल्स (मिसरुल्स) का पालन नहीं करते...
रूल नंबर 1
अगर मेरी साइड पर ट्रैफिक जैम है तो मैं बिना एक मिनट गंवाए साथ वाली रॉन्ग साइड पकड़ लूंगा...मानो सामने से आने वाली सभी गाड़ियों को बाइपास की तरफ़ डाइवर्ट कर दिया जाएगा...
बीबीसी हिंदी ब्लॉग्स पर देखिए क्या पढा लिखा जा रहा है
बेईमानों के बीच ईमानदार
मैं एक प्रशासनिक अधिकारी को जानता हूँ जिनकी ईमानदारी की लोग मिसालें देते हैं.
वे एक राज्य के मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव थे लेकिन लोकल ट्रेन की यात्रा करके कार्यालय पहुँचते थे. वे मानते थे कि उन्हें पेट्रोल का भत्ता इतना नहीं मिलता जिससे कि वे कार्यालय से अपने घर तक की यात्रा रोज़ अपनी सरकारी कार से कर सकें.
वे ब्रैंडेड कपड़े ख़रीदने की बजाय बाज़ार से सादा कपड़ा ख़रीदकर अपनी कमीज़ें और पैंट सिलवाते थे.
जिन दिनों वे मुख्यमंत्री के सचिव रहे उन दिनों सरकार पर घपले-घोटालों के बहुत आरोप लगे. उनके मंत्रियों पर घोटालों के आरोप लगे. लोकायुक्त की जाँच भी हुई. कई अधिकारियों पर उंगलियाँ उठीं.विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त भी हुई. कहते हैं कि पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को अच्छा चंदा भी पहुँचता रहा.
लेकिन वे ईमानदार बने रहे. मेरी जानकारी में वे अब भी उतने ही ईमानदार हैं.
उनकी इच्छा नहीं रही होगी लेकिन वे बेईमानी के हर फ़ैसले में मुख्यमंत्री के साथ ज़रुर खड़े थे. भले ही उन्होंने इसकी भनक किसी को लगने नहीं दी लेकिन उनके हर काले-पीले कारनामों की छींटे उनके कपड़ों पर भी आए होंगे.
WEDNESDAY, NOVEMBER 24, 2010
हिन्दी मे लिखने का प्रथम प्रयास - "भ्रष्टाचार के खिलाफ़ मेरी लड़ाई"
हिन्दी मे लिखने का प्रथम प्रयास -
विगत काफ़ी समय से श्री विवेक रस्तोगी जी चाह्ते थे कि हमे भी हिन्दी ब्लॉग में शामिल होना चाहिए, सोचाशुरुआत करे। काफ़ी विचार करने के बाद मैंने पहले विषय के रूप में "भ्रष्टाचार" का चयन किया।
भ्रष्टाचार, मैं इसे "नैतिक पतन" कहना ज्यादा उचित समझता हू । यह हमारे-आपके, हम सबके घरो से शुरूहोता है, उदाहरणार्थ अगर हमारा बच्चा नहीं पढ़ रहा है तो हम कहते हैं, अगर आप समय पर अपना काम खत्मकरेगे तो आप को कुछ खिलौना या chocklet मिल सकती है....इस तरह हम उसे जाने अनजाने नैतिक पतन कापाठ सिखा रहे होते है। बच्चा तो यही समझता है कि ये सब सही है....और धीरे धीरे ये उसकी आदत मे आ जाताहै....और जब वह बड़ा होता है तो वो भी यही सब करता है और बाद मै हम इसी भ्रष्टाचार को ले कर परेशान होते है।
THURSDAY, NOVEMBER 25, 2010
हर फिकराकस की एक औक़ात होती है....!!
मसक जातीं हैं,
अस्मतें,
किसी के फ़िकरों
की चुभन से,
बसते हैं मुझमें भी
हया में सिमटे
आदम और हव्वा,
जो है सो है
जब सरकार ही ब्लैकमेलिंग पर उतर आए...
राजेश कालरा Thursday November 25, 2010इस देश में ईमानदारी के तेजी से गिरते मापदंडों के बावजूद, पिछले दिनों देश के उच्चतम न्यायालय और अटॉर्नी जनरल (AG) के बीच सेंट्रल विजिलेंस कमिश्नर (CVC) के तौर पर पी. जे. थॉमस की नियुक्ति पर तीखी बातचीत एकदम अभूतपूर्व है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस तरफ ध्यान खींचा, जो कि सही भी था, कि अगर सीवीसी के खिलाफ ही आपराधिक मामला लंबित पड़ा है, तो उनसे यह कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वह राष्ट्र के टॉप विजिलेंस कमिश्नर के तौर पर अपना काम सही ढंग से कर पाएंगे। कोर्ट ने यह कहा: क्या यह सीवीसी के लिए शर्मिंदगी भरा नहीं होगा जब लोग उनसे जांच करने के अधिकार पर ही सवालिया निशान खड़े करेंगे, क्योंकि वह खुद एक आरोपी हैं?
बृहस्पतिवार, २५ नवम्बर २०१०
पुराने स्वेटर
आज
माँ उधेड़ रही है
पुराने स्वेटर
भीगी आँखों से
और एक चलचित्र चल रहा है
उसके भीतर
कैसे माँ बुनती थी
स्वेटर
जाग कर
रात रात भर
सोच सोच कर
खुश हो रही आज
HURSDAY, NOVEMBER 25, 2010
माँ की बाँहों में
माँ - सुबह का अजान
माँ- रात की लोरी
माँ- जब कहीं कोई राह नहीं तो माँ एक हौसला
माँ कितनी भी कमज़ोर हो जाये , ऊँगली नहीं छोडती
हर दिन नज़र से उतार
एक नया दिन दे जाती है.......
दिखे ना दिखे
माँ साथ चलती है ..........
रश्मि प्रभा
बुधवार, २४ नवम्बर २०१०
आदमी से छाँव होता जा रहा है
देख कब से धूप से बतिया रहा है,
आदमी से छाँव होता जा रहा है ।
दिल है के उलझा हुआ है मस’अलों में,
इल्म वो मुद्दे सभी सुलझा रहा है ।
खो गया हूँ बारहा बातों में उसकी,
उसके लहज़े में घना कोहरा रहा है ।
है बहुत बेचैन मंजिल पर पहुँच कर,
याद उसको रास्ता अब आ रहा है ।
कब तलक आखिर रहे वो साथ खुद के,
अब वो अपने आप से उकता रहा है ।
बिहार विधानसभा चुनाव परिणाम पर परिचर्चा
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन, जिसमें जदयू और भाजपा शामिल है, ने बिहार विधानसभा चुनाव में लगातार दूसरी बार जीत का परचम लहरा दिया है। 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में राजग को तीन चौथाई बहुमत मिला है। उसके 206 उम्मीदवार जीत गये हैं। चुनाव आयोग की ओर से घोषित नतीजों के अनुसार, जनता दल यूनाइटेड 115 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। उसकी सहयोगी भारतीय जनता पार्टी को 91 सीटें मिली हैं। 2005 के विधानसभा चुनाव के हिसाब से सबसे ज्यादा फायदे में भारतीय जनता पार्टी रही। उसे पिछली विधानसभा के 55 सीटों के मुकाबले 36 अतिरिक्त सीटें मिली हैं। पिछली बार के मुकाबले नीतीश कुमार की पार्टी जदयू ने अपनी सीटों में 27 की बढ़ोतरी की। लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल की सीटें 54 से घटकर 22 हो गई हैं। राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी को 7 सीटों का नुकसान हुआ और वह 10 से 3 पर आ गए। कांग्रेस 9 से 4 पर आ गई जबकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी भी अपने दो विधायकों से हाथ धो बैठी. उसे सिर्फ 1 सीट मिली है।
बिहार विधानसभा चुनाव परिणाम की कुछ विशेष बातें-
-गुजरात के बाद दूसरी बार जनता ने विकास के लिए मतदान किया।
-बिहार चुनाव का संदेश-जो विकास करेगा, वही जीतेगा।
-बिहार के महारोग जातिवाद को ध्वस्त करते हुए जात-पांत से ऊपर उठकर मतदान किया।
एक और व्यंग्य ग़ज़ल----(विनोद कुमार पांडेय)
व्यंग्य ग़ज़लों का सिलसिला जारी रखते हुए अपने सीधे-सादे लहजे में प्रस्तुत करता हूँ एक और ग़ज़ल|आप सब के आशीर्वाद का आपेक्षी हूँ.
चारो ओर मचा है शोर
सब अपनें-अपनों में भोर
बच कर के रहना रे भाई
बना आदमी आदमख़ोर
इंसानों ने सिद्ध कर दिए
रिश्तों की नाज़ुक है डोर
नज़र उठा कर देखो तो
है ग़रीब,सबसे कमजोर
Thursday, November 25, 2010
सबसे युवा कबाड़ी का स्वागत
नीरज बसलियाल सॉफ़्टवेयर इंजीनियर हैं. पूना में रहते हैं. उनके ब्लॉग कांव कांव पब्लिकेशन्स लिमिटेड की कुछेक पोस्ट्स ने मेरा ध्यान खींचा था. उन्हें कबाड़ख़ाने का सदस्य बनाने की नीयत से मैंने उन्हें एक मेल लिखी और कल रात टेलीफ़ोन पर कुछ देर बात भी की. थोड़ा सा शर्मीला सा लगने वाला यह नजवान अभी फ़क़त पच्चीस साल का है. कबाड़ख़ाना अपने सबसे युवा साथी का इस्तकबाल करता है और यह उम्मीद भी कि उनके बेबाक और अनूठे गद्य का रसपान करने का हमें यहां भी मौका मिलेगा. फ़िलहाल प्रस्तुत है उनकी नवीनतम पोस्ट उन्हीं के ब्लॉग से:
बृहस्पतिवार, २५ नवम्बर २०१०
जब जुड़ना ही है तो.....ब्रेक के बाद क्यूँ?
चोपडाओं और जोहरों का फिल्म बनाने का अपना तरीका है। इसमें वह दर्शकों को आकर्षित कर पाने में सफल भी होते रहे हैं, इसलिए वह अपनी इस शैली पर खुद ही फ़िदा हैं। अब ये बात दीगर है कि इन फिल्मकारों की इस घिसी पिटी शैली से दर्शक ऊबने लगे हैं। यश चोपड़ा की प्यार इम्पोसिबिल तथा जोहर की वी आर फॅमिली और आइ हेट लव स्टोरीज की असफलता इसका प्रमाण है। कुनाल कोहली भी इसी स्कूल से हैं। इसी लिए उनकी नयी फिल्म ब्रेक के बाद में चोपडाओं और जोहरों की झलक नज़र आती है। अभय गुलाटी और आलिया खान बचपन से साथ पले बढे हैं। अभय आलिया से प्रेम करता है और शायद आलिया भी। पर ना जाने क्यूँ आलिया ब्रेक लेना चाहती है और अभय इसे मान भी लेता है।क्यूँ ? यह कुनाल जाने। आलिया ऑस्ट्रेलिया चली जाती है। अभय भी पीछे पीछे जाता है।
THURSDAY, NOVEMBER 25, 2010
२६/११ की बरसी पर विशेष - एक रि पोस्ट
बताओ करें तो करें क्या ...................??????
हाँ हाँ यादो में है अब भी ,
क्या सुरीला वो जहाँ था ,
हमारे हाथो में रंगीन गुब्बारे थे
और दिल में महेकता समां था ..........
वो खवाबो की थी दुनिया ..........
वो किताबो की थी दुनिया ..................
साँसों में थे मचलते ज़लज़ले और
आँखों में 'वो' सुहाना नशा था |
जानिये नये-नये ब्लॉग पते
Posted by जयराम "विप्लव" on November 25, 2010 in ब्लॉग हलचल | 1 Comment
हर रोज नये -नये ब्लॉग अवतरित हो रहे हैं | एक ब्लोगवाणी था जो ब्लॉग पाठकों को इन नवागंतुकों की जानकारी देता रहता था अब थोड़ा बहुत काम चिट्ठाजगत कर रहा है | जनोक्ति पर “ब्लॉग-हलचल” स्तम्भ में हर रोज जानिये नये-नये ब्लॉग पते |
1. ANJANA SAMAJ (http://aanjana.blogspot.com/)
चिट्ठाकार: Sanwal Ram Choudhary
बृहस्पतिवार, २५ नवम्बर २०१०
इंडिया माता
भारत माता की जय के नारे लगाते हुए बचपन से जवान हुए। यह एक ऐसा नारा है जो दिलों में जोश और खून में रवानगी पैदा करता है। भारतमाता की जय बोलते हुए देश का भौगोलिक नक्शा हमारी आँखों के सामने घूम जाता है। जो बताता है कि कन्याकुमारी से कश्मीर तक देश का हर नागरिक विभिन्न जाति धर्म और सम्प्रदाय का होते हुए भी भारत का नागरिक है। भारत जो हमारे दिलों में बसता है। भारत जिसके दर्शन लहलहाते खेतों, खिलखिलाते बच्चो, जिंदगी से हार न मान कर सतत संघर्ष करते लोगों में हमें रोज होते हैं।
एक बंटवारा अंग्रेजों ने किया था। एक बंटवारा हम भारतीयों ने कर डाला। भारत को इंडिया बनाकर। राहुल गांधी की बात माने तो इंडिया प्रगति के मार्ग पर अग्रसर है, पर भारत कहीं पीछे छूट गया। वो भारत जो गावों में बसता है जो इंडिया के लिए रोटी पैदा करता है, पर उसके भाग्य में अक्सर दो जून की रोटी मयस्सर नहीं होती। यह भारत अक्सर इन तथाकथित इंडियन्स के हाथों दुत्कारा जाता है क्योंकि ये इनके लकदक सफेद कपड़ों और चमचमाती कारों के बीच बदनुमा धब्बे सा घूमता रहता है इसलिए जब विदेशी मेहमान शहर में तफरीफ लाते हैं या कॉमनवेल्थ खेल जैसे समारोह होते हैं तो या तो इनके बाहर निकलने पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है या इनसे निजात पाने के लिए इन्हें शहर से ही खदेड़ दिया जाता है।
तो आज के लिए इतना ही …
शनिवार, 13 नवंबर 2010
दिल्ली ब्लॉगर संगोष्टी एवं विमर्श ..उडनतश्तरी उतरी राजधानी में ..just a photo shoot ...झा जी के कैमरे से
अभी अभी दिल्ली ब्लॉगर संगोष्ठी एवं विमर्श से लौटा हूं ...मन और तन दोनों ही पुलकित हैं ..क्या क्या हुआ किसने क्या कहा ..किसने क्या सुना ...किसने क्या देखा .....अरे रे रे आप तो जल्दी मचाने लगे ...भाई ..इतनी जल्दी भी क्या है ...अभी सिर्फ़ चंद फ़ोटो शूट देखिए । आपको तफ़सील से पूरी रपट पढवाएंगे । फ़ोटो भी सिर्फ़ कुछ ही दिखा रहा हूं ....तब तक मुंह का स्वाद बनाईये ...पूरा पकवान मैं धीरे धीरे तैयार करता हूं । अरे यार लगभग पचास से भी अधिक मित्र साथी थे , सबकी बातें हैं यादें हैं ..और हमारे सुपर स्टार ..उडनतश्तरी जी , बालेन्दु दधीच जी ..और भी हैं भई .....
रविवार, 7 नवंबर 2010
आज न रोको सरकार , बलम अमरीकन आए हैं ......बाह बाह झाजी का गीत आया है नयका ...
गुरुवार, 4 नवंबर 2010
दुम पकड लिए हैं..हथिया खुदे पकडिए ..झा जी कहिन…एंद सम लिंक्स दिहिन …
Thursday, November 04, 2010
दीपोत्सव की हार्दिक मंगलकामनाएं...
मेरे ब्लॉग्स के सभी चाहने वालों, तथा उनके परिजनों के लिए दीपावली का रोशनी से भरा यह पावन पर्व जीवन में ढेर सारी खुशियां और उजाले लेकर आए, यही कामना है...
निष्ठा, सार्थक, हेमा तथा विवेक रस्तोगी...
नगर निगम वालों--घर की सफाई कर ली क्या ? --हो सके तो कचरा भी हटवा दो - डेंगू से त्रस्त हैं हम
कसम खाने के लिए हमने भी दिवाली के अवसर सफाई की कुछ । बहुत मेहनत के बाद भी कुछख़ास अंतर नहीं दिखाई दिया। हमने सोचा चलो फ्रिज ही साफ़ कर लेते हैं। पुनः जुट गए सफाईअभियान में। सफाई भी हो रही थी , और कुछ चीजें खा-खा कर निपटाते भी जा रहे थे। मेरीफ्रिज तकरीबन साफ़ हो चुकी थी की तभी एक सफाई-प्रेमी , बड़ी बहन का फ़ोन आ गया । उनसेपूछा क्या समाचार है, तो पता चला लखनऊ में ठण्ड काफी पड़ रही है । और डेंगू ने भी त्रस्त कररखा है। अरे भाई, डेंगू तो दिल्ली वालों की बपौती है, ये मच्छर का क्या काम नजाकत औरनफासत के शहर लखनऊ में। खून पीने को कोई और जगह नहीं है क्या।
दिवाली सफाई से नगर-निगम वालों की याद आई। बहुत बेशरम हो गए हैं ये लोग। देश कोगन्दगी से भर रखा है। सिर्फ तनख्वाह लेते रहते हैं। काम कुछ नहीं। कहीं सीवर चोक पड़ा है, तोकहीं दुनिया जहान की गन्दगी उड़-उड़ कर पुरे गली सड़क को रंगीन कर रही है।
कल न्यूज़ में देखा तो गंगा-तट पर बेशुमार गन्दगी का ढेर लगा हुआ है । अब अपने पाप कीगठरी धोने कहाँ डुबकी लागाएं हम ? पाप तो धुल जायेंगे , लेकिन दो-चार संक्रामक रोग गले पड़जायेंगे।
Wednesday, November 3, 2010
उल्फ़त के दीप दिल में जलाओ तो बात है--------------रानीविशाल
रोशन है कायनात दीवाली की रात है
उल्फ़त के दीप दिल में जलाओ तो बात है
नफ़रत की आग दिल में, जलाकर मिलेगा क्या
रोशन महल उन्हीं के हैं, जिनकी बिसात है
०३-११-२०१०
क्या आप दूसरों के ब्लॉग 'फ्री' में फॉलो करते हैं ? मैं तो ऐसा बिलकुल नहीं करता।
पिछले दिनों मैंने अपने ब्लॉग के फॅलोअर लिस्ट में एक खूबसूरत सा चेहरा देखा। जब उस चेहरे के बारे में जानने के लिए मैंने उसे क्लिक किया, तो मुझे घोर निराशा हुई। कारण उस फॉलोअर ने न तो अपनी कोई प्रोफाईल को फॉलो सुविधा से जोड़ा था और न ही उसमें ब्लॉग वगैरह का लिंक दिया हुआ था।
यदि उस फॉलोअर ने अपने फोटो के साथ अपना परिचय आदि दिया होता, तो हो सकता है कि मैं उसके ब्लॉग तक जाता। इस प्रकार उस फॉलोअर ने अपना एक संभावित कमेंट ही नहीं संभावित फॉलोअर भी खो दिया। इसे ही कहते हैं मुफ्त में किसी का ब्लॉग फॉलो करना। क्योंकि भले ही आप ऐसा करके आप अपने डैशबोर्ड में फॉलो किए हुए ब्लॉग की ताजा पोस्ट की जानकारी पा रहे हों, अपने ब्लॉग की जानकारी आप फॉलोअर लिस्ट के द्वारा दूसरों तक नहीं पहुँचा पा रहे हैं।
Wednesday, November 3, 2010
फेंगशुई कैंडल्स भर देंगी घर को सकारात्मक ऊर्जा से
फेंगशुई कैंडल्स भर देंगी घर को सकारात्मक ऊर्जा से
दीपावली पर रंगीन मोमबत्ती की सजावट का ट्रेंड आजकल जोरों पर हैं। मोमबत्तीयों की सजावट को फेंगशुई के अनुसार भी शुभ माना गया है। दीपावली पर आप अपने घर के सही कोने में सही रंग की मोमबत्ती लगाएं तो घर सकारात्मक ऊर्जा से भर जाएगा।
- घर के उत्तर-पूर्वी कोने में ग्रीन रंग की मोमबत्ती लगाएं। इससे घर में पढऩे वाले बच्चों का एकाग्रता बढ़ती है।
- ग्रीन रंग की मोमबत्ती लगाने से घर की सकारात्मक ऊर्जा मे वृद्धि होती है।
- दक्षिण पश्चिम यानी अग्रिकोण में गुलाबी और पीले रंग की मोमबत्ती जलाएं। इससे परिवार के सदस्यों में आपसी प्रेम व सामंजस्य बढ़ेगा।
Thursday, 4 November 2010
बीन बैग्स पर बैठ कर बिग बास देखने का मजा ही कुछ और है!
अभी उसी ही दिन तो कौस्तुभ उर्फ़ मिकी ने बिग बास में एक विचित्र से कुशन नुमा मोढ़े पर बैठे हुए खली द महाबली की ओर इशारा करके कहा कि पापा यह बीन बैग खरीद लीजिये न -यह बैठने में बड़ा ही आरामदायक होता है ... मैं उस विचित्र सी संरचना को लेकर जिज्ञासु हो उठा ....क्या कहते हैं इसे ...?
"बीन बैग"
"यह कैसा नाम,इसे बीन बैग क्यों कहते हैं ?"
"इसमें बीन भरी होती है "
"मतलब ,इसमें राजमा या सेम आदि के दाने भरे होते हैं ?"
"हाँ ..शायद ....पता नहीं .."
"धत ,क्या फ़ालतू बात करते हो -नेट पर सर्च करो .." फिर जो जवाब आया उसे मैं आपसे यहाँ भी बांटना चाहता हूँ ...
बीन बैग एक पोर्टेबल सोफा है जिसे आप अपनी सुविधानुसार किसी भी तरह का आकार प्रकार दे सकते हैं ,वजन में फूल की तरह हल्का ,बस विक्रम वैताल स्टाईल में कंधे पर टांग लीजिये और जहां भी चाहिए धर दीजिये और पसर जाईये ...इसमें जो कथित "बीन" है वह दरअसल इसे ठोस आधार देने के लिए इसमें भरा जाने वाला कृत्रिम बीन-सेम या राजमा के बीज जैसी पी वी सी या पालीस्टिरीन पेलेट होती हैं जो बेहद हल्की होती हैं! वैसे तो बीन बैग्स के बड़े उपयोग है मगर हम यहाँ इसके बैठने के कुर्सीनुमा ,सोफे के रूपों की चर्चा कर रहे हैं .हो सकता है कि इस तरह के बैग नुमा मोढ़े के आदि स्वरुप में सचमुच सेम या अन्य बीन की फलियाँ ही स्थायित्व के लिए कभी भरी गयी हों मगर अपने अपने हल्के फुल्के रूप ये पाली यूरीथीन फोम जैसे हल्के पदार्थ के बीन -बीज/दाने नुमा संरचनाओं से भरी हुई १९६० -७० के दशक में अवतरित हुईं -मगर ज्यादा लोकप्रिय नहीं हुईं ...और लम्बे अरसे के बाद फिर १९९० के दशक और फिर अब जाकर तो इनका तेजी से क्रेज बढ़ा है .
बृहस्पतिवार, ४ नवम्बर २०१०
बुझावन के प्रश्न, बतावन का जवाब-१२
बुझावान : ये बताइए कि भविष्यवाणी करने वाला ऑक्टोपस कैसे मरा?
बतावन : हर्ट अटैक से!
बुझावान : क्यॊं हुआ हर्ट अटैक?
बतावन : किसी भारतीय ने ऑक्टोपस से पूछ लिया था – कि भारत फुटबॉल वर्ल्डकप कब जीतेगा?
WEDNESDAY, NOVEMBER 3, 2010
अबकी दिवाली ना जाए खाली
अबकी दिवाली ना जाए खाली
मुझको तारो से सजा दो
तारे गर हो दूर बहुत तो
दो चार हीरे ही तुम ला दो
दीप सजे तो रात सुनहरी
दीपमालिका मुझे बना दो
लौ से मैं कहीं झुलस ना जाऊं
सोने के कंगन गड़वा दो
जगमग जगमग हर घर आँगन
द्वार द्वार पर सजी रंगोली
रंग अगर मिटने डर हो
सतरंगी चूनर दिलवा दो
जितना चाहूं उतना पाऊं
THURSDAY, NOVEMBER 4, 2010
ये पोस्ट हरकीरत हीर को समर्पित...खुशदीप
कल मेरी पोस्ट पर हरकीरत हीर जी ने प्यारी सी शिकायत की...
"आजकल आप अधिक व्यस्त हो गए लगते हैं ....
वो हंसी मजाक भी छूट गया लगता है ....??"
हीर जी, न तो मैं ओबामा हुआ हूं कि खुद भी व्यस्त रहूं और दुनिया को भी खाली-पीली व्यस्त रखूं...और न ही मेरे मक्खन-ढक्कन घर छोड़ कर भाग गए हैं जो मेरा हंसी मज़ाक का स्टॉक चूक गया हो...हां, मैंने ब्लॉगिंग में अब कुछ सतर्कता बरतना ज़रूर शुरू कर दिया है...न जाने निर्मल हास्य के तहत ही कही गई कोई बात किसी को चुभ जाए...इसलिए ललिता जी ठीक कहती हैं के सर्फ स्टाइल में सावधानी में ही समझदारी है...लेकिन आज यहां सिर्फ हंसने-हंसाने की बात ही करूंगा...
बॉस एक ही रहेगा
मन में जो उजियारा कर दे
कुछ रोज पहले किशोर दिवसे जी का एक आलेख पढ़ रहा था जिसका शीर्षक देख लगा कि इस पर तो पूरी गज़ल की बनती है, तो बस प्रस्तुत है एकदम ताजी गज़ल दीपावली पर खास आपके लिए:
लाखों रावण गली गली हैं,
इतने राम कहाँ से लाऊं?
चीर हरण जो रोक सकेगा
वो घनश्याम कहाँ से लाऊँ?
बापू सा जो पूजा जाये
प्यारा नाम कहाँ से लाऊँ
श्रद्धा से खुद शीश नवा दूँ
अब वो धाम कहाँ से लाऊँ?
केछू अब बला औल समझदार हो गया है
केशू से पूछे गए कुछ सवाल के जवाब (केशू के बारे में जानने के लिए यहाँ देखें):
प्रश्न : केछू के पास कितना हाथ है?
उत्तर : टू!
प्रश्न : केछू के पास कितना पैर है?
उत्तर : टू!
प्रश्न : केछू के नाक में कितना छेद है?
उत्तर : टू!
प्रश्न : केछू के कितने आईज हैं?
उत्तर : टू!
प्रश्न : केछू कि कितनी दीदी है?
उत्तर : टू!
प्रश्न : केछू के पास कितने कान हैं?
उत्तर : टू!
आज इरफान खान, कुश, गिरिजेश राव, कार्तिकेय मिश्र का जनमदिन है
>> बृहस्पतिवार, ४ नवम्बर २०१०
आज, 4 नवम्बर को
- इतनी सी बात वाले (कार्टूनिस्ट) इरफान खान
- कुश की कलम वाले कुश
- एक आलसी का चिट्ठा वाले गिरिजेश राव
- मैनें आहुति बनकर देखा.. वाले कार्तिकेय मिश्र
11/03/2010
एक ठो लघु कुत्ता कथा......
फोटो साभार : www.wheelchairsfordogs.com
जंगल में एक हरे भरे जगह पर कुकर सभी इक्कट्ठा हैं........ मौका है - नया सरदार चुनने की रस्म पूर्ति करने का .......
वैसे तो कुक्कर स्वाभाव से ही स्वामिभक्त होते है और ये चुनाव वगैरा में मन नहीं लगाते - पर क्या है कि इस जंगल में लोकतंत्र की रावायत चली हुई है....... इसलिय दिखाने को ही सही... सभी कुक्कर चुनाव में भाग लेते हैं व् अगले तील साल के लिए सरदारी तय करते हैं.... वैसे ये सरदारी भी एक ही वंश के अधीन है........ शुरू से ही इस वंश को सरदारी करने का शौंक रहा था..... इसके लिए जंगल भी बाँट डाला गया...... ताकि अपनी सरदारी कायम रहे...... उसके बाद जो पुश्ते हुई .... उन्होंने और इस सरदारी को पुख्ता किया.....
Wednesday, November 3, 2010
इस दिवाली आओ कुछ नया करें...
दिवाली की रौनक फिज़ाओं में घुलने लगी है... वो मिठाइयाँ, वो पटाखे, वो दिये, वो रौशनी, वो सारी ख़ुशियाँ बस दस्तख़ देने ही वाली हैं... भाई-बहनों, दोस्तों-रिश्तेदारों के साथ मिल के वो सारा-सारा दिन हँसी-ठिठोली, वो मौज-मस्ती, वो धमा-चौकड़ी, वो हो-हल्ला... सच हमारे त्योहारों की बात ही अलग होती है... हमारी संस्कृति की यही चमक दमक... ये रौनक... बरसों से लोगों की इसकी ओर आकर्षित करती आयी है...
आजकल तो बाजारों की रौनक भी बस देखते ही बनती है... दुकानें तो लगता है जैसे आपको रिझाने के लिये ब्यूटी पार्लर से सज-धज के आयी हैं... इतनी भीड़ भाड़ के बीच तो लगता है ये महंगाई का रोना जो रोज़ न्यूज़ चैनल्स और अखबारों की सुर्खियाँ में रहता है मात्र दिखावा है... अगर महंगाई सच में बढ़ी है, तो खरीदारों की ये भीड़ क्यूँ और कैसे... सच तो ये है की महंगाई और व्यावसायिकता तो बढ़ी ही है साथ ही साथ लोगों की "बाईंग कपैसिटी" भी बढ़ी है... और दिखावा भी, नहीं थोड़ा सोफिस्टीकेटेड तरीके से कहें तो सो कॉल्ड "सोशल स्टेटस" मेन्टेन करने की चाह भी...
THURSDAY, NOVEMBER 4, 2010
दर्द-निवारक / एक दृढ़ फैसला
तुम्हारे पास लकड़ी की नाव नहीं ,
निराशा कैसी?
कागज़ के पन्ने तो हैं !
नाव बनाओ और पूरी दुनिया की सैर करो..........
हर खोज,हर आविष्कार तुम्हारे भीतर है ,
अन्धकार को दूर करने का चिराग भी तुम्हारे भीतर है
तुम डरते हो कागज़ की नाव डूब जायेगी , पर
अपने आत्मविश्वास की पतवार से उसे चलाओ तो
हर लहरें तुम्हारा साथ दें
THURSDAY 4 NOVEMBER 2010
शुगर-फ्री कैलोरी-फ्री नहीं होता
दीपावली में शुगरफ्री मिठाई के नाम पर कालाजाम, कराची हलवा, मोतीपाक लड्डू, डोडा बरफी, पनीर लड्डू, संदेश, क्रीम लड्डू, क्रीम बर्फी, क्रीम रोल, बॉर्नवीटा बर्फी, कैडबरी रोल, जीनी लड्डू जैसी कई वैरायटी पेश की गई हैं। मिठाइयों के अलावा शुगर-फ्री ड्रिंक, चॉकलेट, जैम, केक जैसी तमाम चीजें भी मार्किट में उपलब्ध हैं।
इन चीजों को बनाने में शुगर के अलावा घी, खोया जैसी बाकी वे सारी चीजें उतनी ही होती हैं, जितनी आम मिठाइयों में, लेकिन लोग शुगर फ्री के नाम पर जमकर खा लेते हैं और बाकी चीजें उनका कोलेस्ट्रॉल, ब्लड शुगर सब बढ़ा देती हैं। यह स्थिति जानलेवा भी बन सकती है। इनमें आर्टिफिशल स्वीटनर्स डाले जाते हैं, जिन्हें लंबे वक्त तक इस्तेमाल करना नुकसानदेह हो सकता है।
शुगर-फ्री कैलोरी-फ्री नहीं अक्सर लोग शुगर-फ्री को कैलोरी फ्री मानते हैं, जबकि ऐसा नहीं है। अक्सर एक के बजाय लोग दो-तीन डाइट कोक पी जाते हैं, जबकि इनमें सोडियम और फॉस्फोरस ज्यादा होता है। ये हड्डियों के लिए नुकसानदेह हैं। फॉस्फोरस बॉडी में से कैलशियम रिप्लेस करता है। ऐसे में हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। इसके अलावा, अनिद्रा, अवसाद और पेट की तमाम बीमारियां हो सकती हैं।
बुधवार, ३ नवम्बर २०१०
बाजार है तो सबकुछ है
मैं कभी बाजार का विरोधी नहीं रहा। मुझे बाजार के बीच रहकर अजीब-से सुख की प्राप्ति होती है। मैं चाहता हूं कि बाजार हमेशा मेरे आसपास ही रहे। कसम से, संबंधों-रिश्तों से कहीं ज्यादा मैं 'बाजार की निष्ठा' पर विश्वास करता हूं। इस बाजार से मुझे कितना कुछ मिला है क्या बताऊं?
बृहस्पतिवार, ४ नवम्बर २०१०
मालूम नहीं है क्या? आज नरक चौदस है --- ललित शर्मा
एक पुरानी कविता
आज सुबह-सुबह श्रीमती ने जगाया
हाथ में चाय का कप थमाया
तो मैंने पूछा- क्या टाइम हुआ है?
मुझे लगता नहीं कि अभी सबेरा हुआ है
बोली ब्रम्ह मुहूर्त का समय है,चार बजे हैं
और आप अभी तक खाट पर पडे हैं
मालूम नहीं आज नरक चौदस है
आज जो ब्रम्ह मुहूर्त में स्नान करता है
वो सीधा स्वर्ग में जाता है
वहां परम पद को पता है
जो सूर्योदय के बाद स्नान करता है
वो सारे नरकों को भोगता है
चलो उठो और नहाओ
बस अनन्त अनमोल है माँ
KESAR KYARI........usha rathore..., Nov 4, 2010
ममता बरसाती बारिश सी है माँ
सागर मे उफनती लहरों सी है माँ
पानी की बूंद को तरसते बच्चो के लिए दुध की धार सी है माँ
अपनी ममता की रक्षा के लिए तलवार सी है माँ
ना इसकी ममता की सीमा है ना इसके प्यार की हद है
मई जून की गर्मी में जाड़े की धुप सी है माँ
कभी उफनते दुध सी है माँ
बस अनन्त अनमोल है माँ
हम सब के लिए रब का वरदान है माँ
हम तेरे कर्जदार कद्रदान है माँ
अंधेरो जलती शंमा सी है माँ
रोग मे दवा सी मुसीबत मे दुआ सी हैं माँ
केशर क्यारी......... उषा राठौड़
बुधवार, ३ नवम्बर २०१०
एको खबर को छोडे नहीं है ...सबका मूडी पकड के रगड दिए हैं ...झाजी वक्रदृष्टि टाइम्स ...
खबर :-सवाल पूछने पर बरस पडे ओबामा
नज़र -हां तो ऊ कभियो बरस सकते हैं कि साला कौनो इंडिया का बादल है कि जौन दिन प्रेडिक्शन करता है भारतीय मौसम विभाग ऊ दिन को छोड के कहियो बरस जाता है ,.....इसलिए ऊ बरस सकते हैं ..सवाल पूछने पर बरसे तो अच्छा ही है ..मुदा सवाल था का ..का कहे ..कौनो पूछ दिया कि ..का ई बात सच है कि ..चिंचपोकली में एक ठो देसी ठर्रा केंद्र ..ओबामा ओसामा के ज्वाइंट पार्टनरशिप में खुला हुआ है ..बताओ ई तो सवाल बरसने वाला था ही ...अरे जादे से जादे एतना हिम्मत किया जा सकता था कि ई पूछ लिया जाता कि ,सर आपको यदि कभी अंटे पे उडाना हो ..तो जुतवा कौन मॉडल का पसंद करेंगे ....
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खबर :-प्रयोगशाला में विकसित किया मानव लीवर
नज़र - लो एक तो साला ई प्रयोग का साला ...में हमेसा की कुछ न कुछ पकते ही रहता है ......लेकिन तुम लोग एतना मुसकिल से ई मानव लीवर तैयार किया होगा ...हम लोग फ़टाक से एक ठो मराठी को पकडे ..उनका अंदर एतना हिंदी ठूंसे कि ..थोडे दिन के बाद ऊ जॉनी लीवर हो कर सामने आए । अईसन कमाल का हिंदी कॉमेडियन ऊ बने कि कौनो कह नहीं सकता था कि ....इनका पर राज ठाकरे का तनिको ...रिएक्शन हुआ पाया गया है ....
Tuesday, November 2, 2010
बिहारी जी.पी.एस सेवा
विज्ञान की अनगिनत सुविधाओं में से एक है जी.पी.एस. जहाँ जाना हो वहां का पता उसमे डालिए, सैटेलाईट की मदद से जी.पी.एस आपको मार्ग-दर्शन करवाएगा. ऐसी सेवा भारत के बड़े राज्यों में शुरू कर दी गयी है, लेकिन मैं सोच रही थी की यही सेवा अगर बिहार में बिहार के ही अनूठे अंदाज़ में शुरू की जायेगी तो कैसा रहेगा? हमें किस किस तरह मार्ग दर्शन करवाएगा?
जी.पी.एस ऑन करते ही कुछ आवाज़ आएगी - "कहाँ जाना है जी? आएँ?? चिरइयांटाड? आच्छा"
WEDNESDAY, NOVEMBER 3, 2010
आदमी नहीं चुटकुले हो गए हैं सब..
हम रोज़ाना चौंकने के लिए खरीदते हैं अखबार,
हम मुस्कुराते हैं एक-दूजे से मिलजुलकर,
पल भर को...
जैसे आदमी नहीं चुटकुले हो गए हैं सब...
सबसे निजी क्षणों को तोड़ने के लिए
हमने बनाई मीठी धुनें,
सबसे हसीन सपनों को उजाड़ दिया,
अलार्म घड़ी की कर्कश आवाज़ों ने...
जिन मुद्दों पर तुरंत लेने थे फैसले,
चाय की चुस्कियों से आगे नहीं बढ़े हम..
शोर में आंखें नहीं बन पाईं सूत्रधार,
नहीं लिखी गईं मौन की कुंठाएं,
नहीं लिखे गए पवित्र प्रेम के गीत,
इतना बतियाए, इतना बतियाए
अपनी प्रेमिकाओं से हम...
उन्हीं पीढ़ियों को देते रहे,
संसार की सबसे भद्दी गालियां,
जिनकी उपज थे हम...
जिन पीढ़ियों ने नहीं भोगा देह का सुख,
किसी कवच की मौजूदगी में...
WEDNESDAY, NOVEMBER 3, 2010
बेसन की कढी
आवश्यक सामग्री
आधा कप बेसन
2 कप खट्टा दही
आधा छोटा चम्मच हल्दी पाउडर
2 छोटे चम्मच नमक स्वादानुसार
चौथाई छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर (स्वाद के अनुसार)
अन्य सामग्री 2 बड़े चम्मच तेल
आधा छोटा चम्मच जीरा
आधा छोटा चम्मच मैथीदाना
1 बड़ी इलायची # 2 लौंग
3-4 सूखी लाल मिर्च पकौड़े की सामग्री
1 कप बेसन,
पौन कप पानी- लगभग एक बड़ा प्याज- बारीक कटा
1 छोटा आलू- बारीक कटा
डेढ़ इंच टुकड़ा अदरक बारीक कटी
2 हरीमिर्च- बारीक कटी
आधा छोटा चम्मच लाल मिर्च पाउडर
चौथाई छोटा चम्मच बेकिंग पाउडर
तलने के लिए तेल
विधि
खट्टी दही, बेसन, नमक, लालमिर्च पाउडर और 4 कप पानी मिलाएं। अच्छी तरह फेटें जिससे गांठें न रह जाएं। भारी पेंदे के गहरे बर्तन में तेल गर्म करें और उसमें जीरा, मेथीदाना, बड़ी इलायची और लौंग डाल दें। इसी के साथ साबुत लालमिर्च भी उसी में डाल दें।
THURSDAY, NOVEMBER 04, 2010
बड़े होटल में मिलता है झुठे गिलास में पानी
राजधानी के एक बड़े होटल बेबीलोन इन का हाल यह है कि वहां पर लोगों को झुठे गिलास में पानी दिया जाता है। एक कार्यक्रम में इस बात का खुलासा हमारे एक फोटोग्राफर मित्र ने किया।
इस होटल में एक कार्यक्रम के सिलसिले में जाना हुआ तो वहां खाना-खाने के बाद जो भी गिलास रखे जा रहे थे उन गिलासों को वेटर बिना धोये ही टेबल के नीचे से पानी भरकर टेबल के ऊपर रख दे रहे थे। हमारे फोटोग्राफर मित्र किशन लोखंडे लगातार देख रहे थे अंत उन्होंने जाकर वेटरों को जमकर फटकारा और उनसे कहा कि ये क्या कर रहे हैं। गिलास थोये क्यों नहीं जा रहे है। वेटर घबरा गए। जब फोटोग्राफर ने कहा कि होटल के मैनेजर को बुलाए तो वेटर हाथ-पैर जोडऩे लगे।
इस एक वाक्ये ये यह पता चलता है कि बड़े होटलों में क्या होता है। जिस होटल में एक व्यक्ति के खाने के लिए 400 रुपए से लेकर एक हजार से भी ज्यादा रुपए वसूले जाते हैं, उन होटलों में अगर गिलास ही न धोये जाए तो ऐसे होटलों में जाने का क्या मतलब है। हमारे फोटोग्राफर मित्र ने कहा कि इससे तो अच्छे सड़क के किनारे ठेले लगाने वाले होते हैं, कम से कम एक बाल्टी पानी में वे प्लेट और गिलासों को धोते तो हैं, अब यह बात अलग है कि हर प्लेट और गिलास को उसी में धोने की वजह से दूसरे की जुठन तो उसमें भी लग जाती है।
THURSDAY, NOVEMBER 4, 2010
कार्टून :- जलील हुए तो क्या हुआ मज़ा तो आया...
Thursday, November 04, 2010
नृत्य कर उठे : रावेंद्रकुमार रवि की बालकविता
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नृत्य कर उठे
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दीवाली की
रात मनोहर
जब आई तो,
नृत्य कर उठे
नन्हे दीपक
ठुम्मक-ठुम्मक!
चलिए आप लोग तब तक ई पोस्ट सब को निहारिए ..हम और मसाला तैयार करते हैं …..आज टिप्पी का टिप्पा आने की खबर है …