अगर गौर से सोचें तो पाएंगे कि करुणा की हत्या तो असल में उसी दिन हो गई थी , जिस दिन , उस व्यक्ति ने , बल्कि यह कहना चाहिए कि मनुष्य के रूप में हैवान के मस्तिष्क वाले ने , किसी भी समय ,किसी भी दिन और किसी भी क्षण ,जब सोचा था या फिर वह बड़ी आसानी से ये फैसला ले पाया था कि वह यूं सरेआम दिनदहाड़े करुणा को चाकुओं से गोदा लेगा |
और तब भी क्यों बल्कि उससे भी बहुत पहले ,तब जब ,आज से ठीक कुछ वर्षों पहले ,देश के सबसे वीभत्स अपराध ने पूरे देश के जनमानस को खौला कर सड़कों पर ला दिया था और लगने लगा था कि सरकार ,प्रशासन, न्यायविद ,पुलिस सभी मिलकर अब इस बात के लिए कटिबद्ध हो गए हैं कि भविष्य में इस तरह की कोई घटना दोहराई नहीं जाएगी |लेकिन ऐसा हुआ क्या ????नहीं इसके ठीक विपरीत कानूनी व्यवस्थाओं की कमियों का फ़ायदा उठाते हुए उस नृशंस अपराध का एक दोषी आज सरकार व सरकार की नीतियों से लाभान्वित होकर आराम से कहीं जीवन बसर कर रहा होगा , यकीन करिए ऐसा ही हो रहा होगा ,व्यवस्थाएं पीड़ितों से अधिक आरोपियों के हक़ में संवेदनशील दिखाई देती हैं |
सरकार मशीनरी ,प्रशासन सबके अपने अपने स्तर पर ठोस कदम उठाए जाने के दावों के बावजूद स्थिति में कहीं कोई परिवर्तन देखने सुनने को नहीं मिल रहा है | बल्कि ऐसा लगता है मानो यह प्रवृत्ति बहुत तेजी से एक नासूर का रूप लेती जा रही है | सरकारी क्या कर रही है या पुलिस क्या कर रही है ??? यह प्रश्न अलग है | इससे अलग एक प्रश्न यह उठता है , कि प्रियदर्शिनी, निर्भया ,करुणा ,कौन जाने कौन कौन और कौन जाने कौन हीं , कहाँ नहीं ,घर, दफ्तर सड़क , सिनेमा , कब और कब नहीं ,कुल मिलाकर देखा जाए तो परिदृश्य ये निकलकर सामने आता है कि आज स्थिति बेहद हृदय विदारक चिंता जनक है
एक हिंदी पत्रिका के लिए एक साप्ताहिक आलेख लिखने के दौरान अध्ययन करते समय मैंने पाया और देखकर दुखद आश्चर्य हुआ की विश्व के सबसे शक्तिशाली देश की सेना की महिला कमांडो दस्ते की लगभग 24% महिला कमांडो ने एक सर्वेक्षण के दौरान कबूला कि उन्हें उन के साथी सैनिकों ने एक बहादुर सिपाही के अलावा और भी अलग नजर से देखा || यह मेरे लिए बहुत ही दुखद आश्चर्य देने वाला था क्योंकि अगर विश्व के सबसे शक्तिशाली सेना की महिला कमांडो भी कहीं ना कहीं उन्हीं सब परिस्थितियों और उन्हें छेड़छाड़ का शिकार हुई थी तो फिर हमें यह समझ लेना चाहिए कि कमोबेश यह स्थिति आज हर स्थान पर है ||
इस हालिया घटना और इससे पहले कि इसी तरह की घटी सारी घटनाओं में जो एक बात मुझे सबसे ज्यादा अखरती है वह कि आखिर यह लड़कियां अपने आप को इतनी आसानी से बिना प्रतिरोध बिना प्रतिवाद बिना प्रतिकार किए इतनी आराम से अपनी जान क्यों गवा देते हैं और कई बार तो बिना शिकायत किए हुए ही ||पुरुषों और महिलाओं के बीच बढ़ रही यह खाई इस कदर सामाजिक असंतुलन को जन्म दे रही है कि उसने अपने अंदर न्याय कानून सरकार प्रशासन सब को लपेटे में ले लिया है और उसका परिणय यह हुआ है कि कहीं भी किसी के लिए कोई भी खड़ा नहीं होता है ||
इन परिस्थितियों में क्यों नहीं यह जरूरी हो जाता कि प्रत्येक देशवासी को अनिवार्य सैनिक शिक्षा देकर उन्हें कम से कम आत्मरक्षा आत्मविश्वास अनुशासन आपसी सहायता ,सहभागिता दृढ़ता आदि का प्रशिक्षण दिया जाए ||इसके लिए विशेष रूप से गठित एनसीसी , स्काउट गाइड व् एनएसएस जैसी संस्थाओं को तुरंत इस बात के लिए आग्रह किया जाना चाहिए कि वह देश भर के स्कूल कॉलेजों में अपने को पुनर्स्थापित करें | हालांकि मैं निजी रूप से इस विषय पर एक पत्र पहले ही प्रधानमंत्री कार्यालय को लिख चुका हूं |
अंत में उन लाखों निर्भया ,करुणाओं और अन्य सभी लड़कियों से सिर्फ एक प्रश्न पूछना चाहता हूं कि आखिर वह अपनी लड़ाई अधूरी छोड़कर क्यों बीच में ही चली जाती है बिना उनको सजा दिए ,बिना उन उनके अपराध के लिए उनको अंजाम तक उन्हें पहुंचाए बिना और कई बार तो ये लड़कियां यूं बिना कुछ किए बिना कुछ बोले ...........आखिर क्यों इस दुनिया को छोड़ कर ...........अपने घर परिवार को छोड़कर चली जा रही हैं और बस चली जा रही हैं ,
प्रश्न विचारणीय है हमें आपको सोचना है आज और अभी सोचना है...........