मुझे लगता है कि अब पाठकों के पास ब्लॉग पोस्टों को पढने , साझा करने और उन्हें सहेज़ने के लिए एग्रीगेटर्स की निर्भरता बहुत हद तक कम हो गई है या कि अब शायद उतनी कमी महसूस नहीं की जा रही है , सबने अपने अपने ठिकाने और रास्ते गढ और तलाश लिए हैं , मेरे लिए तो गूगल प्लस , ब्लॉगर डैशबोर्ड के अलावा बहुत से एग्रीगेटरनुमा ब्लॉगों और नि:संदेह हमारीवाणी भी बहुत बडा स्रोत रहा है ,जहां से मैं ब्लॉगों तक पहुंचता हूं वैसे जब अपने स्टैट पर नज़र डालता हूं तो देखता हूं कि पाठकों का एक बहुत बडा वर्ग गूगल सर्च इंज़न से चला आ रहा है । ब्लॉग पोस्टों की लिंक को एक पन्ने पर सहेज़ कर पढने के लिए उपलब्ध कराने वाले सारे प्रयास भी नि:संदेह बहुत ही प्रभावी भूमिका निभा रहे हैं , ऐसे में अनायास ही पुराने दिन याद हो आए ।
यहीं इस ब्लॉग पर अर्से तक हमने भी पोस्ट लिंक्स के साथ तुकबंदी करके एक पंक्ति जोड कर खूब रेल दौडाई थी जिसे पाठक मित्रों ने सराहा और स्नेह दिया था । सोचा आज अर्से के बाद आपको फ़िर से कुछ पोस्टों से मिलवाया जाए । गूगल प्लस पर पाठकों की टिप्पणी के साथ साझा होती पोस्टों पर नज़र स्वत: ही चली जाती हैं , ऐसे ही पहली पोस्ट जो मिली वो थी ,बेहद खूबसूरत कलेवर वाला ब्लॉग राजे , शीर्षक अजब सी कैद है , पढके हमें तो यही लगा कि हो न हो ये जरूर संजू बाबा के भौजी स्वास्थ्य समस्या के कारण लगाता पेरोल मिलते जाने वाली ही कैद होगी , ससुरी अजब गजब कैद तो आजकल यही चल रही है , मगर रचना बहुत संज़ीदा और गहरी निकली ,
अज़ब सी कैद है..
अज़ब सी कैद है..
अंदर हूं तो भी डर लगता है
और बाहर जाने के ख्याल से भी
कि भला होता नहीं
और सकुचा हूं
किसी बुरे के मलाल से भी
अज़ब सी कैद है..
चुकानी हैं अभी
पालने—झूलने--
कच्ची उम्र की यादों की
किश्तें
कि.. और संजो लिये
नर्म रूई.. फाहे से रिश्ते
बुलाए हैं निर्दोष फरिश्ते
अज़ब सी कैद है..
एक—एक सलाख
बड़े जतन से बनाई है
लोहे,सोने—चांदी की जंजीरे सजाई हैं
आज की तारीख में पोस्टों और टिप्पणियों में निरंतरता बनाए रखने में सफ़ल ब्लॉगर मित्रों में श्री प्रवीण पांडेय जी का नाम उल्लेखनीय है । उनकी पोस्टों में शामिल विषयों का इंद्रधनुषी फ़लक और उनकी कमाल की शैली , बहुत सारे क्लिष्ट विषयों को भी एकदम सरल बना देती है । आज कल टरेन बाबू आर्युवेद पढाने समझाने में लगे हैं , आज अपनी पोस्ट में कफ़ वात और पित्त पर घनघोर क्लास ले डाली है उन्होंने हमारे जैसे भुसकोल ब्लॉगरों की ,
"कफ, वात और पित्त, ये तीन तत्व हैं जो शरीर में होते है और कार्यरत रहते हैं। कहने को तो इनको और भी विभाजित किया जा सकता था, पर ये तत्व भौतिक दृष्टि से दिखते भी हैं और गुण की दृष्टि से परिभाषित भी किये जा सकते हैं। शरीर की क्रियाशीलता में हम इनका अनुभव कर सकते हैं। कफ का अनुभव हमें अधिक ठंड में होता है। पित्त नित ही हमारे पाचन में सहयोग करता है। वात हमारे वेगों और तन्त्रिका संकेतों को संचालित करता है। यही कारण रहा होगा कि शरीर को विश्लेषित करने के लिये इनको आयुर्वेद में आधार माना गया है।"
अगर नेट पर और फ़िर ब्लॉग्स पर आप मय श्रीमती जी के डटे हों तो फ़िर तो क्या टैंशन है जी ,कम से कम ज्यादा पोस्टें लिखने , टिप्पणियां लिखने या नेट पर ज्यादा समय देने वाले सारे इल्ज़ाम आधे आधे बांटे जा सकते हैं फ़िर जब बात मित्र अमित श्रीवास्तव और उनकी श्रीमती निवेदिता श्रीवास्तव जी की हो तो कहना ही क्या , दोनों जन ने क्या खूब जम के एक दुसरका को समर्पित पोस्ट लगाई है , अमित भाई जहां फ़ोन में कबूतर उडाते पाए गए , तो वहीं निवेदिता भाभी ने भी फ़िर अपने झरोखे में बैरी नेटवा के बहाने बैरी पिया को ही घेर लिया देखिए ,
( अमित जी अपने बक्से ,बोले तो डेस्कटॉप के साथ )
इधर जैसे जैसे मौसम चुनावी होता जा रहा है वैसे वैसे ही सियासी उठापटक भी तेज़ हो गई है । ऐसे में दिल्ली की प्रयोगवादी सियासत और उस पर कोई पोस्ट/प्रतिक्रिया न देखने पढने को मिले ऐसा तो हो ही नहीं सकता । हमारी ब्लॉग मास्टरनी शेफ़ाली पांडे जी जब अपनी लेखनी के तीखे बाण वो भी व्यंग्य के बारूद से लैस करके चलाती हैं तो वो बिल्कुल कईयों के कलेजे भेद कर आरपार उतर लेते हैं , अपनी ताज़ा पोस्ट में बखिया उधेडते हुए वे कहती हैं
"आपकी पार्टी की नीतियां स्पष्ट नहीं है । विदेश नीति, अंतर्राष्ट्रीय नीति, कश्मीर समस्या, पकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसी के साथ सम्बन्ध, आर्थिक नीतियां, आतंकवाद, अमेरिका, विकास दर, नक्सल समस्या, माओवाद, जैसे अनेकानेक मुद्दे थे, जिन पर आप जनता को सालों तक उलझा सकते थे । आप आम आदमी की समस्याएं लेकर बैठ गए । जबकि आम आदमी ने अपनी समस्याओं को समस्या मानना ही छोड़ दिया था । ये आपकी ही गलती थी कि आपने उसे याद दिलाया कि जिन्हें वह महबूब के प्रेमपत्रों की तरह सीने से लगाए हुए है उसे समस्या कहते हैं ।"
चलिए समस्याओं से तो निपटते ही रहेंगे ,फ़िलहाल विवेक रस्तोगी जी घर से आटे सब्जी लेने के लिए निकले हुए हैं मगर बीच में ही रुककर वे प्रेमी युगल को निहारने लगे , जिन्हें निहार रहे थे उन्हें कैसा फ़ील हुआ देखिए ,पत्रकार ब्लॉगर रविश कुमार इन दिनों छुट्टी पर थे , लौटे तो स्वाभाविक रूप से इस बीच उनकी तरफ़ उछाले गए प्रश्नों का जवाब लेकर ,अपनी इस पोस्ट में वे कहते हैं
"हम अपनी बिल्डिंग की पार्किंग में खड़े होकर सभ्यता से यह सब देख रहे थे, पर उन लड़कों को यह अच्छा नहीं लग रहा था, खैर जब हम गाड़ी से चाट वाले के सामने से निकले तो भी वे सब हमें घूर ही रहे थे, यह सब वैसे हमें पहले से ही पसंद नहीं है, जब हम उज्जैन में थे तब हमारी कालोनी में भी यही राग रट्टा चलता था, फ़िर हमने अपना प्रशासन का डंडा दिखाया तो बस इन लोगों के लिये कर्फ़्यू ही लग गया था।"
"छुट्टी पर होने के कारण इस्तीफ़े से जुड़ी ख़बरों पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया लेकिन आप को लेकर लोगों की इस तरह की प्रतिक्रिया बढ़ती जा रही है । आप में से कई कह रहे थे कि मेरा नज़रिया क्या है। इसीलिए नहीं लिखा क्योंकि टीवी देखा न पेपर पढ़ा । जिस दिन अरविंद इस्तीफ़ा दे रहे थे उसी वक्त मुंबई से दिल्ली उतरा था । हवाई अड्डे पर लगे टीवी सेट पर सुरक्षाकर्मी और एयरपोर्ट स्टाफ़ और कर्मचारी जुटे हुए थे । इस तबके में अरविंद की गहरी पैठ हैं । ज़्यादातर ने कहा कि सही किया है । एक सिपाही ने कहा कि इनको ज़रा बाँदा ले आइये । वहाँ भी ज़रूरत है । अगले दिन ब्रेड लेने निकला तो दुकान पर सब पेपर पढ़ रहे थे । इस तबके की यही राय थी कि कांग्रेस बीजेपी की मिल़ीभगत से बंदा लड़ रहा है । रिलायंस की राजनीतिक छवि के कारण अंबानी पर हमला करने से इस तबके में पार्टी की छवि मज़बूत हुई है लेकिन मध्यमवर्गीय तबके के एक हिस्से को यही अच्छा नहीं लगा । अगर नीचला तबक़ा अरविंद के साथ खड़ा रह गया तभी वे अपने आधार का बचाव या विस्तार कर पायेंगे लेकिन अरविंद उस तबके के प्रति उदासीन नहीं हो सकते जिसका उन पर से विश्वास हिला है ।"
हो
सकता है कि अरविंद ने अपनी बात लोगों तक न पहुँचाई हो कि क्यों इस्तीफ़ा
दिया । लेकिन इन लोगों की दिलचस्पी कारण में ही नहीं है। दूसरा इनमें से कई
मोदी समर्थक भी हैं । जिन्हें अरविंद को एक बार के लिए मौक़ा देना था ।
लोकसभा में वे मोदी को देंगे । साफ़ साफ़ नहीं कहते मगर यह ज़रूर गिनाते
हैं कि आप से क्यों निराशा हुई । इसलिए दूसरा चांस नहीं देंगे । "
चलिए अब कुछ वन लाइनर लिंक्स भी देखना/बांचना चाहें तो
क्या अरविंद केजरीवाल राजनीतिक हो चले हैं : रैली तो कर ही रहे हैं
मंत्रीजी के नाम खत : वाया पब्लिक एंड ब्लॉग
सूरज और मैं : अक्सर ये बातें करते हैं
हंसे जा रहा है , हंसे जा रहा है : लिखे जा रहा है , लिखे जा रहा है
जीवन संगीत : निरंतर बहता रहे
मिलते हैं एक छोटे से ब्रेक के बाद : नई हुंकार के साथ
एक चीज़ मिलेगी वंडरफ़ुल :और अगर दो चाहिए हों तो
गांव: शहर से बहुत दूर हैं जी अब भी
अगर वह बच्चा होता : तो इस तरह ब्लॉग लिख पाता क्या
क्या कर सकता हूं :पोस्ट तो लिख ही डाली है
संविधान की प्रस्तावना : और हमारे राजनीतिज्ञों की भावना (अनुलोम विलोम)
और अब चलते चलते काजल भाई का कार्टून