बीबीसी हिंदी ब्लोग में आज हफ़ीज़ चाचड कहते हैं …
हफ़ीज़ चाचड़ | सोमवार, 31 मई 2010, 09:52
शनिवार को कराची प्रेस क्लब गया तो वहाँ मेरे कुछ पत्रकार मित्र हिंदी और उर्दू भाषा के बीच हुए विवाद पर चर्चा कर रहे थे. मैंने कहीं पढ़ा था कि अमरीका में हिंदी पढ़ाने वाले एक अध्यापक घूमते घूमते दिल्ली से सड़क के रास्ते लाहौर पहुँच गए थे.
जब वो वाघा सीमा पार कर पाकिस्तान पहुँचे तो किसी व्यक्ति ने उनसे कहा, "आप तो ज़बरदस्त उर्दू बोल रहे हैं." "अच्छा! यह तो हिंदी है." अध्यापक ने कहा. उस व्यक्ति ने कहा, "नहीं यह उर्दू है." अध्यापक जी ने सोचा कि सीमा के उस पार यह भाषा हिंदी बन जाती है जबकि सीमा के इस पार यानी पाकिस्तान में उन्नीस बीस के अंतर के साथ उर्दू.
लेकिन लरकाना (सिंध प्रांत का शहर) के एक मेरे मित्र हमेशा कहते हैं कि हिंदी और उर्दू के विवाद ने वास्तव में ही हिंदुस्तान पर बंटवारा कर दिया था. टोबा टेक सिंह के सरदार भूपेंद्र सिंह जो आजकल अमृतसर में रहते हैं, उन के अनुसार वह बंटवारा तो पहला था और अब कुछ और बंटवारे भी शेष हैं.
सच बात तो ये है कि 62 वर्ष बीत जाने के बावजूद भी बात से बात बनती नहीं बल्कि बिग़ड़ती ही चली जाती है. इतिहास भी कमाल की चीज़ है जिसकी गंगा उलटी बह निकली है. कल तक वह लोग जो युद्ध की बात करते थे वह आज अमन की आशा की माला जपना चाहते हैं. पाकिस्तान में कई लोग अमन की आशा को आशा भोसलें समझते हैं.
नवभारत टाईम्स ब्लोगस में लिखते हुए भाई आलोक पुराणिक अपने चिरपरिचित अंदाज़ में लिखते हैं कि ,
शाम ढले उपयुक्त राहजनी
आलोक पुराणिक Monday May 31, 2010अखबारों में हाल में कई खबरें पढ़ीं, जिनके शीर्षक थे- कनॉट प्लेस में दिनदहाड़े वारदात, आनंद विहार में दिनदहाड़े लूट, श्रेष्ठ विहार में दिनदहाड़े राहजनी।
खबरें और शीर्षक पढ़कर लगा कि जैसे आपत्ति दिनदहाड़े पर थी।
मतलब यह मानकर चला जा रहा है कि लूटपाट दिन या दिनदहाड़े में नहीं होनी चाहिए। ऐसे कार्यों के लिए शाम और रात का समय उपयुक्त है।
मसलन नॉर्मल खबरें ये होंगी -
शाम ढले माल रोड पर चार राहजनों ने नॉर्मल तरीके से राहजनी की। लुटने वाले बंदे ने पूरी शराफत से वारदात में सहयोग करते हुए अपना पर्स और घड़ी राहजनों के हवाले कर दी। अत्यधिक ही कम श्रम में यह नॉर्मल काम फुल नॉर्मलत्व के साथ संपन्न हो गया।
श्री एम वर्मा जी ने एक झकझोर देने वाली रचना पेश की है देखिए ….
इस शहर को फख़्र है बड़प्पन का ~~
Posted by M VERMA Labels: चित्रकथा, बचपनकूड़े के ढेर से जीवन चुनता है
दिन भर खुद का बोझ ढोता है
इस शहर को फख़्र है बड़प्पन का
उफ ! यहाँ तो बचपन ऐसे सोता है
जागरण जंक्शन ब्लोगस पर
हास्य-व्यंग्य
*************************************************
महीने का पास
कॉलेज के पहले दिन प्रिसिंपल बच्चों को स्पीच दे रहे थे और उन्हें हॉस्टल के नियम बता रहे थे.
प्रिसिंपल : अगर कोई लड़का पहली बार लड़कियों के हास्टल में पकड़ा गया तो उसे 300 रूपये, अगर दूसरी बार पकड़ा गया 500 रूपये और तीसरी बार पकड़ा गया उसे 800 रूपये जुर्माना देना पड़ेगा.
मुन्ना भाई : महीने भर के पास का क्या लेगा मामू ?
********************************************************
दिल्ली यात्रा 3... मैट्रो की सैर एवं एक सुहानी शाम ब्लागर्स के साथ.......!
खुशदीप भाई के यहां से विदा लेते समयअविनाश जी ने फ़ोन पर बताया कि आज वे दांतों की दुकान में जाएंगे इसलिए विलंब हो जाएगा। अगर दिल्ली में कहीं घुमना हो तो बताएं। मैने कहा कि आप दांतों की दुकान से हो आएं फ़िर आपसे सम्पर्क करता हुँ। अविनाश जी ने दांत में नैनो तकनीकि से युक्त एक मोबाईल फ़ोन आज से लगभग सात वर्ष पूर्व लगवाया था, अब उसकी बैटरी खत्म हो गयी थी, इसलिए लगातार वह चेतावनी दे रहा था कि बैटरी बदलिए। इससे उनके दांत में दर्द हो जाता था। दर्द की टेबलेट तो वे साथ रख रहे थे। जब भी दर्द होता तभी एक टेबलेट उदरस्थ कर लेते। मोबाईल के नैनो जरासिम शांत हो जाते कि बैटरी बदलने वाली है, आश्वासन मिल गया है। लेकिन जब बैटरी नहीं बदली तो उनका उत्पात बढ गया इसलिए तत्काल प्रभाव से बैटरी बदलवाने जाना पड़ा। डॉक्टर ने भी बता दिया कि दो-तीन बैठक में ही बैटरी बदलने का काम होगा।
Monday, May 31, 2010
ये प्रतिभाशाली बच्चे घटिया निर्णय क्यों लेते हैं?
आजकल इण्टरमीडिएट परीक्षा और इन्जीनियरिंग कालेजों की प्रवेश परीक्षा के परिणाम घोषित हो रहे हैं। इण्टर में अच्छे अंको से उत्तीर्ण या इन्जीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा में अच्छी रैंक से सफलता हासिल करने वाले प्रतिभाशाली लड़कों के फोटो और साक्षात्कार अखबारों में छापे जा रहे हैं। कोचिंग सस्थानों और माध्यमिक विद्यालयों द्वारा अपने खर्चीले विज्ञापनों में इस सफलता का श्रेय बटोरा जा रहा है। एक ही छात्र को अनेक संस्थाओं द्वारा ‘अपना’ बताया जा रहा है। व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा चरम पर है। इस माहौल में मेरा मन बार-बार एक बात को लेकर परेशान हो रहा है जो आपके समक्ष रखना चाहता हूँ।
Monday 31 May 2010
ये ओढ़निया ब्लॉगिंग का दौर है गुरू......ओढ़निया ब्लॉगिंग.....समझे कि नहीं........सतीश पंचम
आज कल ओढ़निया ब्लॉगिंग की बहार है। ओढ़निया ब्लॉगिंग नहीं समझे ? तो पहले समझ लो कि ओढ़निया ब्लॉगिंग आखिर चीज क्या है ?
कभी आपने गाँव में हो रहे नाच या नौटंकी देखा हो तो पाएंगे कि नचनीया नाचते नाचते अचानक ही किसी के पास जाएगी और भीड़ में से ही किसी एक को अपनी ओढ़नी या घूँघट ओढ़ा देगी। आसपास के लोग तब ताली बजाएंगे और लहालोट हो जाएंगे। कुछ के तो कमेंट भी मिलने लगेंगे जिया राजा, करेजा काट, एकदम विलाइती।
एक भारतीय रेस्टरान्ट और एक अँगरेज़ पंडित
मैं लन्दन के जिस इलाके में रहती हूँ, वो शहर से काफी दूर है.हमारे कॉलोनी में एक लोकल इंडियन रेस्टरान्ट खुला अभी पिछले सप्ताह.पुरे लन्दन में तो भारतीय रेस्टरान्ट तो भरे पड़े हैं.हमारे एरिया में जो रेस्टरान्ट खुला, उसके जो मालिक हैं वो भी पटना के ही रहने वाले हैं.हम लोग हमेशा अपने पटनिया भाषा में ही बातें करते हैं.
मैं जब पहुची उस रेस्टरान्ट के उदघाटन में तो देखा की पुरे पटनिया अंदाज़ में पूजा हो रहा था.एकदम हर कुछ अपने जगह पर.लगिये नहीं रहा था की हम लन्दन में रह रहे हैं.हंसी तो तब आ गयी जब देखा की जो पुजारी थें उनका एक असिस्टन्ट था. असिस्टन्ट होना या रखना कोई ज्यादा ताज्जुब की बात नहीं लेकिन एक भारतीय पंडित का असिस्टन्ट अँगरेज़ हो तो थोड़ा अजीब तो लगेगा ही न.वो हिंदी भी अच्छी खासी बोल ले रहे थे, इसलिए थोड़ा और ताज्जुब हो रहा था, वैसे लन्दन में आजकल मैं ऐसी घटनाएँ देखते रहती हूँ..उनको पूजा करवाते देख अच्छा तो लगिये रहा था लेकिन हंसी भी बीच बीच में आ जा रही थी.
गांव वाली पोस्ट की टिपण्णीयों के जबाब अन्तिम भाग
Smart Indian - स्मार्ट इंडियन said...
इत्शे डंके! धन्यवाद!
अनुराग जी Danke, दांके कहते है धन्यवाद को, जर्मन मै D को दा बोलते है.
******** *******************
दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi said...
सुंदर गांव है। अभी घूम रहे हैं। आप ने हमारी बहुत दिनों की इच्छा पूरी की है। गांव के कुछ लोगों को भी साथ के साथ मिलाते जाते तो और अच्छा लगता।
दिनेश जी यह बहुत कठिन है, क्योकि यहां लोग बहुत अलग तरह के है, मिलन सार है अच्छे है, लेकिन जब भी कभी कोई मोका मिला तो अपने साथियो की ओर गांव वासियो की फ़ोटो अपने साथ जरुर लगाऊंगा.
********************************
Sanjeet Tripathi said...
ghum raha hu aapke sath hi aapke gaon me,
shukriya, lekin ek bat bataiye har sadak karib karib sunsan hi dikh rahi hai,aisa kyn?
संजीत जी यहां लोग बहुत कम घर से निकलते है, पहले पहल हम भी हेरान होते थे, देखते थे कोई सडक पर नजर आये अब हम भी घर से बहुत कम निकलते है, महीने मै एक दो बार खरीदारी कर ली, फ़िर सारा दिन घर मै, शहरो मै बाजारो को छोड कर बाकी जगहा यही हाल है, लेकिन टुरिस्ट स्थानो पर खुब रोनक होती है
*********************************************
ब्लोगिंग से कमाई तो होने से रही ... काश ज्ञानेश्वरी एक्प्रेस में ही रहे होते ...
AUTHOR: जी.के. अवधिया | POSTED AT: 10:37 AM | FILED UNDER: कमाई, ब्लोगिंग, हिन्दी ब्लोगिंग
एक आदमी वो होता है कि काल का ग्रास बन जाने जैसे हादसे का शिकार होकर भी रुपया कमा लेता है और एक हम हैं कि ब्लोगिंग कर के कुछ भी नहीं कमा सकते। दो-दो लाख रुपये मिल गये ज्ञानेश्वरी एक्प्रेस में मरने वालों के परिवार को किन्तु यदि ब्लोगिंग करते हुए यदि हम इहलोक त्याग दें तो हमारे परिवार को दो रुपये भी नसीब नहीं होगे।
हम पहले भी कई बार बता चुके हैं कि नेट की दुनियाँ में हम कमाई करने के उद्देश्य से ही आये थे और आज भी हमारा उद्देश्य नहीं बदला है। पर क्या करें? फँस गये हिन्दी ब्लोगिंग के चक्कर में। याने कि "आये थे हरि भजन को और ओटन लगे कपास"। इस हिन्दी ब्लोगिंग से एक रुपये की भी कमाई तो होने से रही उल्टे कभी-कभी हमारा लिखा किसी को पसन्द ना आये तो चार बातें भी सुनने को मिल जाती हैं। अब कड़ुवी बातें सुनने से किसी को खुशी तो होने से रही, कड़ुवाहट ही होती है।
सोमवार, ३१ मई २०१०
ब्लॉग जगत की लीला है अनुपम अपरम्पार
ब्लॉग जगत की लीला है अनुपम अपरम्पार
क्यों हम दांव पेंच में पड़ रहे,
बस, अब नहीं पड़ेंगे,
लिखते रहेंगे, उमड़ते घुमड़ते विचार
क्योंकि.......
शब्द सँवारे बोलिए शब्द के हाथ न पाँव
एक शब्द औषधि करे एक शब्द करे घाव
सुप्रभात व जय जोहार.........
प्रस्तुतकर्ता सूर्यकान्त गुप्ता
MONDAY, MAY 31, 2010
मनमोहन ने गिलानी को आमों कि टोकरी भेजी,देखिये ,गिलानी ने क्या कहा?
Posted by IRFAN
MONDAY, MAY 31, 2010
रूसवाई
रूसवाई
बड़े बेरहम होते हैं रूसवाई के रास्ते,
वो खोज रहा है अपनी रिहाई के रास्ते
एक जोश था अजीब जुनूँ था उसे परवाज़ का,
न जुर्रत कर सका देखे तमाशाई के रास्ते
एक मज़बूत क़फ़स में सिमट गया है जिस्म उसका,
जौफ में ढून्ढता है वो तवानाई के रास्ते
Monday, May 31, 2010
क्या करूँ कंट्रोल नही होता ---विश्व तम्बाकू रहित दिवस पर एक रचना ----
लोकोपयोगी व्याखानमाला के उद्घाटन पर बाएं से --डॉ एन के अग्रवाल -अतिरिक्त चिकित्सा अधीक्षिक , डॉ ओ पी कालरा -प्रधानाचार्य यू सी एम्एस , श्री जयदेव सारंगी --स्पेशल सेक्रेटरी , डॉ भट्टाचार्जी --निदेशकस्वास्थ्य सेवाएँ , और डॉ एस द्विवेदी --विभाग अध्यक्ष काय चिकित्सा ।
क्या करूँ कंट्रोल नही होता ---
आज विश्व भर में विश्व तम्बाकू रहित दिवस मनाया जा रहा है। क्यों न जो लोग धूम्रपान करते हैं , आज के दिन प्रण करें कि आज के बाद वो कभी धूम्रपान नही करेंगे। दिल्ली जैसे शहर में जहाँ प्रदूषण पर तो नियंत्रण किया जा रहा है, वहीं धूम्रपान पर अभी तक विशेष प्रभाव नही पड़ा है।
आज के लिए इतना ही ……….