बत्तख पकड़ो !!
मम्मा मेरे लिए काँटा और बत्तख लाई.... मैं चला बत्तख पकडने...
WEDNESDAY, 22 SEPTEMBER 2010
गणपति आये लन्दन में .
राष्ट्र मंडल खेल खतरे में हैं क्यों? क्योंकि एक जिम्मेदारी भी ठीक से नहीं निभा सकते हम .बड़े संस्कारों की दुहाई देते हैं हम. " अतिथि देवो भव : का नारा लगाते हैं परन्तु अपने देश में कुछ मेहमानों का ठीक से स्वागत तो दूर उनके लिए सुविधाजनक व्यवस्था भी नहीं कर पाए. इतनी दुर्व्यवस्था कि मेहमान भी आने से मना कर करने लगे. और कितनी शर्मिंदगी झेलने की शक्ति है हममें ? बस एक दूसरे पर उंगली उठा देते हैं हम .हंगामा बरपा है जनता कहती है कि ये राष्ट्रमंडल खेल बचपन खा गए , जनता को असुविधा हो रही है,अचानक से सबके अधिकारों का हनन होने लगा है और सरकार कहती है कि शादी और खेलों के लिए ये समय अनुकूल नहीं ..वाह क्या लॉजिक है. क्या आसान तरीका है अपना पल्ला झाड़ने का ,अरे क्या ये हमारा देश नहीं ? क्या उसकी इज्जत की खातिर थोड़ी असुविधा नहीं झेल सकते हम ? मुझे याद है चीन जैसे देश में एक एक नागरिक ओलम्पिक की तैयारी में कमर कस के जुट गया था, हर इंसान अंग्रेजी सीख रहा था कि आने वाले मेहमानों की सहायता कर सके .पर हम तो महान देश के महान नागरिक है.
बुधवार, २२ सितम्बर २०१०
क्या आप भी चखेंगे नई किस्म की वाइन है !!
स्कूल के आखिरी दिन सभी बच्चे अपनी प्यारी मैडम के लिए कोई न कोई तोहफा लेकर आए थे...
फूल की दुकान चलाने वाले के बेटे के हाथ से पैकेट लेकर मैडम ने उसे हिलाया, और हंसकर बोलीं, "मुझे मालूम है, इसमें फूल हैं..."
बच्चा खुश होकर बोला, "बिल्कुल सही, मैडम..."
उसके बाद टॉफी बेचने वाले के बेटे के हाथ से पैकेट लेकर मैडम ने उसे भी हिलाया, और हंसकर बोलीं, "मुझे मालूम है, इसमें टॉफी हैं..."
Wednesday, September 22, 2010
भारतीय रेलवे अब बन गई है " यमदूत " |
भारतीय रेलवे अब बन गई है " यमदूत " |
* क्या भारत में रेल्वे सफ़र सुरक्षित नहीं है ?
* मध्यप्रदेश के बदरवास स्टेशन पर गुड्स रेल ..पेसेंजर रेल्वे से टकराई |
* २३ की मौत और लगभग ५० घायल |
* नसे में धुत था स्टेशन मास्टर, जिसके ऑफिस में से बरामद हुई शराब की बोतल |
* दोष किसको दे " सरकार " या " रेल्वे अधिकारी " को |
गणपति बाप्पा मोरया
आज गणेश विसर्जन का दिवस है । दस दिन के बाद गणपति का वापिस लौट जाना कितना खलता है पर वे तो जाते हैं क्यूं कि अगले साल लौट सकें । हमें अपनी आंखों से जतन करने वाले, सूंड से सहलाने वाले, हमारे अपराधों को अपने पेट में डाल कर हमारे ऊपर करुणा बरसाने वाले भगवान गणेश, हमारे बाप्पा आज वापिस चले जायेंगे । उनकी विदाई भी आगमन की तरह ही शानदार होनी चाहिये । इस अवसर पर मेरे स्वर्गीय बडे भाई साहब द्वारा रचित हिंदी में गणेश आरती ( जो मराठी आरती का अनुवाद है और तर्ज भी वही है ।) प्रस्तुत है ।
TUESDAY, SEPTEMBER 21, 2010
एक अनाम रिश्ता -- प्यार का --
' आई लव यू '
ये वाक्य बहुत बार, बहुत लोगों को दोहराते सुना था , लेकिन कभी यकीन नहीं हुआ उनके शब्दों पर। क्या प्यार जैसा कुछ होता भी है ? क्या लोग प्यार के मायने समझते भी हैं ? क्या प्यार करने के पहले सोचते भी हैं , की निभा पायेंगे या नहीं ? क्या प्यार तपस्या नहीं ? क्या प्यार बलिदान नहीं ? क्या एक आदर्श प्रेम संभव है ?
क्या , आई लव यू कहने के पहले , कोई इनसे जुड़े दायित्वों के बारे में सोचता है?
प्यार की बहुत सी परिभाषाएं सुनीं और पढ़ी हैं । जाने क्यूँ कोई भी परिभाषा मन को उपयुक्त नहीं लगी। बहुत सोचा, मनन किया, की प्यार आखिर है क्या ? बस इतना ही समझी --
-प्यार एक एहसास है।
-इस रिश्ते का कोई नाम नहीं होता। अनाम है ये रिश्ता।
श्राद्ध---क्या, क्यों और कैसे ?
>> WEDNESDAY 22 SEPTEMBER 2010
भारतीय संस्कृ्ति एवं समाज में अपने पूर्वजों एवं दिवंगत माता-पिता का स्मरण श्राद्धपक्ष में करके उनके प्रति असीम श्रद्धा के साथ तर्पण, पिंडदान, यज्ञ तथा भोजन का विशेष प्रावधान किया जाता है. वर्ष में जिस भी तिथि को वे दिवंगत होते हैं,पितृ्पक्ष की उसी तिथि को उनके निमित्त विधि-विधान पूर्वक श्राद्ध कार्य सम्पन्न किया जाता है.हमारे धर्म शास्त्रों में श्राद्ध के सम्बन्ध में सब कुछ इतने विस्तारपूर्ण तरीके से विचार किया गया है कि इसके सम्मुख अन्य समस्त धार्मिक क्रियाकलाप गौण लगते हैं.श्राद्ध के छोटे से छोटे कार्य के सम्बन्ध में इतनी सूक्ष्म मीमांसा और समीक्षा की गई है कि जिसे जानने के बाद कोई भी विचारशील व्यक्ति चमत्कृ्त हो उठेगा. वास्तव में मृ्त पूर्वजों के निमित्त श्रद्धापूर्वक किए गए दान को ही श्राद्ध कहा जाता है.
'पाबला डे' पर विशेष - ब्लॉग 4 वार्ता - शिवम् मिश्रा
>> WEDNESDAY, SEPTEMBER 22, 2010
प्रिय ब्लॉगर मित्रो,
प्रणाम !
आज २१ सितम्बर है .....और आज से ह़र साल आज का दिन ब्लॉग जगत में 'पाबला डे' के रूप में मनाया जायेगा ! आज हम सब के चहेते पाबला जी का जन्मदिन है और सब को ब्लॉग जगत में मौजूद ब्लॉगर के जन्मदिन के बारे में बताने वाले पाबला जी के ब्लॉग पर इस की कोई सूचना नहीं है | जब पुछा गया ऐसा क्यों तो जवाब मिला,
उड़ान...
उसने फिर
अपने वज़ूद को
झाडा-पोंछा,
उठाया
दीवार पर टंगे
टुकडों में बंटें
आईने में
खुद को
कई टुकडों में पाया,
अपने उधनाये हुए
बालों पर कंघी चलायी,
तो ज़मीन कुछ
क्षमा उस भुजंग को शोभती जिसमें गरल भरा हो----- ललित शर्मा
ललित शर्मा, बुधवार, २२ सितम्बर २०१०
“क्षमा वीरस्य भूषणम्।“ एक सुक्ति कही जाती है। क्षमा वीरों का आभूषण है। कहा गया है कि "क्षमा उस भुजंग को शोभती जिसमें गरल भरा हो।" कहने का तात्पर्य यह है कि जो नुकसान करने में सक्षम है अगर वह क्षमा करे तो शोभायमान होता है। जिसमें नुकसान करने की क्षमता नहीं है और वह कहे कि जाओ तुम्हे क्षमा करता हूँ तो स्थिति हास्यास्पद ही होगी। अगर कोई सींकिया आदमी पहलवान से कहे कि जा तुझे माफ़ किया तो लोग हंसेगे ही।
अगर हम किसी विवाद की जड़ में जाएं तो इसका प्रमुख कारण गर्व, घमंड ही होता है। किसी को नीचा दिखाने की कोशिश करना और अपने को ऊँचा दिखाना भी लड़ाई को जन्म देता है। जब अहम टकराता है तो वह बड़ा नुकसान करवा देता है। लेकिन क्षमा एक बहुत बड़ा हथियार है शांति के लिए। इससे मन की शांति हो जाती है। मन की शांति इसलिए होती है कि क्षमा मांग लेने से गर्व का शमन हो जाता है।
लेकिन ध्यान यह भी रहे कि मूर्खों से क्षमा मांगना और उन्हे क्षमा करना भी बहुत बड़ी मूर्खता होती है। मूर्ख तो सिर्फ़ डंडे की भाषा समझता है।
ताकि बची रहे चाहत जीने की....
कुछ तो सपने
रहने दो आंखों में
जीने के लिए
केवल आंखें ही नहीं
सपनों का भी होना
आवश्यक है
जिससे अंतिम समय तक
भरी रहें उमंगें
तैरती रहे जिंदगी
मुस्कुराहटों के सागर में
बची रहे चाहत
WEDNESDAY, SEPTEMBER 22, 2010
अभिलाषाओं का टोकरा.
ख्वाहिशों के विस्तृत आकश को हर दिन टांगती हूँ बाहर , अपने खजाने से चाँद, सूरज निकालती
हूँ , तारों के धवल चादर पर मोहक सपने बिखेर देती हूँ ... कल्पनाओं के इस महासागर में मुझे
अपनी ज़िन्दगी के नन्हें-नन्हें मायने मिल जाते हैं ...
रश्मि प्रभा
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!! अभिलाषाओं का टोकरा.!!
अपनी अभिलाषाओं का
तिनका तिनका जोड़
मैने एक टोकरा बनाया था,
बरसों भरती रही थी उसे
अपने श्रम के फूलों से,
इस उम्मीद पर कि
भ्रष्टाचार! भ्रष्टाचार!!
पोस्टेड ओन: September,22 2010 जनरल डब्बा, मस्ती मालगाड़ी, हास्य - व्यंग में
आज एकबार फ़िर अपने अस्तित्व पर खतरा मंडराता दिखाई दे रहा है । बदलते फ़ैशन की आँधी थमने का नाम ही नहीं लेती । मेरी कमज़ोरियां एकबार फ़िर मुझपर हाबी होकर मुंह चिढ़ाए जाती हैं कि ले बेटा, अब सोच कि क्या लिखेगा और किसपर लिखेगा ! इस मौसम में अब कोई और धंधा ढूंढ ले, फ़िलहाल तो अपना पत्ता साफ़ ही समझ जंक्शन से’।
‘क्यों पत्ता साफ़ होगा!’ मैंने साहस बटोर कर अपनी कमज़ोरी की ओर आँख तरेरी, ‘जब तक ज्ञानी जी हैं गुरुद्वारे में, मेरा कुछ नहीं बिगड़ने वाला, तू बस निकल ले यहां से, हांऽ!’
कमज़ोरी ने ज़ोरदार अट्टहास किया । छिछोरेपन से बोली, ‘जा, आजमा ले ।
Tuesday, September 21, 2010
विरक्ति पथ { अंतिम भाग }------------रानीविशाल
(अब तक : शालिनी और शची वर्षों के बाद दिल्ली में फिर से मिले है लेकिन इतने सालों में काफ़ी कुछ बदल चूका है ....दोनों सखियाँ शेष दिवस साथ बिता कर सुख दुःख बाटने लगती है । बातों ही बातों में पता चला शची अकेली रहती है उसका पति उसके साथ नहीं । कारण पूछने पर शची वृतांत सुना रही है कि किस तरह इम्तहान के बाद जब वो अपने पापा के साथ ससुराल मनाली पहुची तो सिद्धार्ट के व्यवहार में परिवर्तन आगया .....वह साधू सन्यासियों सी बातें कर रहा है । शची समेत संसार कि सभी स्त्रियाँ उसके लिए मातृवत है ......शची आपने सपनों के टूटने के दर्द से सारी रात तड़पती रही )
अब आगे : सिद्धार्थ के कक्ष से जाते समय शची अच्छे से समझ गई थी कि इसके बाद वो कभी इस कक्ष में उसके साथ नहीं हो पाएगी ....अब उसे यह ठीक से समझ आगया था कि शायद वह जिसे सिद्धार्थ का बड़प्पन समझ रही थी वह तो उसका अलगाव ही था . सुबह होते ही शची चाय लेकर आपने सास ससुर कि सेवा में पहुच गई शची के हाथों चाय कि प्याली लेते हुए वे एक टक खिड़की से सुनी राहों को निहार रहे थे . शची के चहरे पर उसकी व्यथा साफ़ नज़र आरही थी . भोर होने से पहले उन्होंने ही इस खिड़की से सिद्धार्थ को दूर सड़क पर जाते हुए देखा था ...मानो आज वो सच मुच ये सारे बंधन ये जिम्मेदारियां छोड़ कर सदा को जारहा है . आखिर वो उसके माता पिता थे उसमे आए इस बदलाव को वो पहले ही भांप चुके थे . शची की सास उसके सर पर हाथ रख कर हिम्मत दिलाती है ......धैर्य रख बेटा सब ठीक हो जाएगा
तीन गो बुरबक! (थ्री इडियट्स!)
हमरे गांव में भी तीन गो बुरबक है। उ का है कि जब से एगो फ़िलिम का हिट हुआ गांव के पराइमरी ईसकूल के गुरुजी अपना नाम वीर सिंह से भायरस कर लिहिन हैं और उनका चेला रामचन्नर से नाम बदल कर रैन्चो रख लिहिस आ दूसरा त रजुआ था ही।
त एक दिन किलास में भायरस गुरुजी पूछे, "जिस सभा में एगो लोग बोले और बांकी सब सुनें, उसे क्या कहते हैं, बोलो?
त टप्प से रैंचोआ बोला, "सोकसभा!"
भायरस गुरूजी परसन्न हुए और दोसरका प्रस्न दाग दिए, "आ ई बताओ कि जिस सभा में सब लोग बोले और कोई नहीं सुने, उसे का कहते हैं, बोलो-बोलो?”
राजुआ मुंह खोले इसके पहिले रैंचोआ फेर टपका बोला, "लोकसभा!
मिलिए अब कुछ नए ब्लॉग्स से
Wednesday, September 22, 2010
हरो जन की भीर
हरि तुम हरो जन की भीर।
द्रोपदी की लाज राखी चट बढ़ायो चीर॥
भगत कारण रूप नर हरि धर।ह्यो आप समीर॥
हिरण्याकुस को मारि लीन्हो धर।ह्यो नाहिन धीर॥
बूड़तो गजराज राख्यो कियौ बाहर नीर॥
दासी मीरा लाल गिरधर चरणकंवल सीर॥
कुछ मित्रो के ब्लॉग- अच्छे है पढ़े जरुर
जब तक कुछ लिखना शुरू नहीं करते तबतक इन मित्रो के ब्लॉग पर जाकर इनका आनंद ले :-
कुछ पुराने भारत के फोटो
ताऊ.इन
ओशो सिर्फ एक
कुछ जोक्स
थोडा मुस्कुराइए
अच्छा जी राम राम ……चलते हैं आज के लिए खिडकियां बहुत सी हैं ..घूमिए ब्लॉग नगरिया ………