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बुधवार, 14 अक्टूबर 2015

सुनो भई ...लौटते हुए लोगों ..





वाह भई क्या समां बंधा है ...और ये देखिए कि ..क्रिकेट के मैच में हार के बाद उपजी झल्लाहट अक्सर फैशन के रूप में संन्यास लेने की नई प्रथा भी चारों खाने चित्त ....धड़ाधड़ ..बल्कि उससे भी तेज़ कहिये कि ...दुरंतो की रफ़्तार से पुरस्कार लौटाए जा रहे हैं ..यकायक उठे इसे साहित्यिक सुनामी का जोड़ गणित समझने लायक हम जैसे निहायत ही बिना किसी ब्रैंड और ब्रिगेड के पाठकों के बूते की बात नहीं , वो हमारा आउट आफ सिलेबस प्रश्न है ...लेकिन फिर भी अब जो आप जैसों को पढ़ पढ़ के बोलने समझने जानने लायक बना हो तो फिर ये भी स्वाभाविक ही है कि अपनी जिज्ञासा भी आप विद्व जनों के सम्मुख ही रखे ....

जब आप सबकी लेखनी , क्षेत्र , भाषा , तेवर सब कुछ कहीं न कहीं से कभी कभी थोडा तो भिन्न रहा ही होगा तो फिर ये सामूहिक भाव ..दमन , अभिव्यक्ति की आज़ादी , अतिवादी सोच वाली सरकार आदि के तमाम आप सब विद्व जनों के मन में ...एक ही कारण ....इतना सामूहिकवाद ...इतनी एकता ...| चलिए मन लिया कि

कुछ तो वजह होगी ऐसी जो वे मिल कर साथ बैठ गए ,
रंगे सपनों की चाह सोए रहे जिनके साथ ,जगे तो ऐंठ गए

खैर साहेब ये आपकी मर्जी ....मुझे ये बात भी समझ नहीं आ रही कि , जब आपको यही लगता है कि मौजूदा सरकार आपकी सोच के बिलकुल मनमाफिक न  होकर , हर बात पर तर्क और सवाल करने वालों की जमात सरीखी होती जा रही है ,और ये भी यकीन है पुख्ता कि देर सवेर झुका ही लेंगे , तो उस पर सिर्फ एक साल में पिछले साठ सालों से ढोए जा कन्धों पर बढ़ा देंगे , माफ़ करिएगा मगर अब लोग .....लोग से मेरा मतलब आजकल व्हाट्सअप पर दुनिया गोल गोल घूम रही है ...गांधी बाबा से लेकर सुभाष दादा तक का सच लोग जानने और समझने को आतुर हैं ...तो थोड़े दिन और सब्र करिए ..कम से कम इतना तो जरूर कि जिन सरकारों ने सम्मान और पुरस्कारों का भी गान्धीकरण नेहरूकरण कर दिया था उनके आने तक उनकी संपत्ति संभाल के रखते , अब इस वक्त वापस किया जब ..हकीकत की बात जानें तो अभी कुछ दिनों पहले इस गूगल को किसी ने खरीद कर मारा था ...लोग दर्ज़न का भाव तो ज्यादा कम लगाते हैं ऊपर से इस ओएलेक्स ने तो लोगों की आदतें बिगाड़ दी हैं |

देखिये दो बातें हैं , पहली , ये कि आपने अपनी प्रतिक्रया ज़ाहिर करते हुए देश और सरकार की तरफ से मिले सम्मान पत्र , समारिका आदि वापस करने का निर्णय किया कारण यदि सबका एक ही माना जाए जो, कि ताज्जुब है और शुक्र भी एका का हुनर याद है सबको , तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला जैसा कोइ घनघोर विस्फोटक कारण आप लोग बता रहे हैं माफ़ करिएगा वैसा अब नहीं है | आप कहते हैं देश युवा है और यदि देश युवा है तो वो युवा वर्ग ही है जो आज खुद को पूरी दुनिया से जोड़े हुए सोशल नेटवर्किंग के सहारे वो वो सब अन्जाम दे पा रहा है जो आपने शायद कल्पना भी न की हो | एक समय देश में सिर्फ खिचडी सरकारों के बनते रहने की अमिट भविष्यवाणी तक को नकार कर रख दिया | फिर भी यदि ऐसा भी है तो किसने कहा और किसने रोका है आपको , लिखिए हाँ जब भी अभिव्यक्ति पर बहुत दबाव सा महसूस हो तब उस मासूम से कार्टून पर जारी हुए फतवों और उन फतवों के मसीहाओं द्वारा क़त्ल कर दिए उन जाबाजों के किस्से पढियेगा आपको अपने से ज्यादा वजनदार दिखाई देंगे |

देखिये हम पाठक हैं , आपके लिखे से आपकी किताबों से प्रभावित होकर उस विचार से , उस शैली , उन किस्सों से , लेखकों के मुरीद बन जाते हैं और माफ़ करिए मुझे इस बात से कोइ फर्क नहीं पड़ता कि गुनाहों का देवता के लिए धर्मवीर भारती को कौन कौन से पुरस्कार मिले या नहीं मिले | मुझे पढ़ के सुकून मिला लेखन कार्य सिद्ध हुआ | मुझे लगता है ये बात भी कह ही दूं कि यदि इस पुरस्कार वापसी समारोह के परिप्रेक्ष्य में आप मुझसे कुछ कहने को कहें तो मैं कहूंगा कि आप अकेले नहीं है वापसी करने वाले , कई लोग राजनीति से अपने गृहस्थाश्रम में वापसी कर चुके हैं , कई जगह पार्टी फंड की वापसी हो रही है , युवराज का जाना और उनकी वापसी हो रही है , जनता को ही ले लीजीये लोकतंत्र की बहुमत्त्व शक्ति की वापसी हुई .सीमापर सुना है अब एकदम बराबर वापसी हो रही है गोलियों की ........तिलमिलाहट कलम से कागजों तक उतरे तो आनंद आए ..ज़रा तर्क होने दीजीये और मुँह मत फुलाइये ......आखिर किसी का लिखा पढके तो बहके होंगे लड़के


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4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शूुक्रवार (16-10-2015) को "अंधे और बटेरें" (चर्चा अंक - 2131) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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पढ़ लिए न..अब टीपीए....मुदा एगो बात का ध्यान रखियेगा..किसी के प्रति गुस्सा मत निकालिएगा..अरे हमरे लिए नहीं..हमपे हैं .....तो निकालिए न...और दूसरों के लिए.....मगर जानते हैं ..जो काम मीठे बोल और भाषा करते हैं ...कोई और भाषा नहीं कर पाती..आजमा के देखिये..

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