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मंगलवार, 5 मई 2020

बागवानी के लिए जरूरी है मिटटी की पहचान





#बागवानीमंत्र

पिछली पोस्ट में जब मैंने गमलों के बारे में बताया था तो आप सबने जिज्ञासा की थी कि ,बागवानी के लिए मिट्टी ,कैसी हो ,उसे तैयार कैसे किया जाए आदि के बारे में भी कुछ बताऊँ | कुछ भी साझा करने से पहले दो बातें स्पष्ट कर दूँ , मैं कहीं से भी कैसे भी बागवानी का विशेषज्ञ नहीं हूँ , माली भी नहीं हूँ बिलकुल आपके जैसा ही एक नौकरीपेशा व्यक्ति हूँ दूसरी बात ये कि इसलिए ही मैं आपको अपने अनुभव के आधार पर ही जो समझ पाया सीख पाया हूँ वो बताता और साझा करता हूँ |

तो आज बात करते हैं मिट्टी की | मिट्टी के बारे में जानना यूँ तो आज उनके लिए भी जरूरी है जिन्हें बागवानी में की रूचि नहीं क्यूंकि खुद प्रकृति ने बता दिया है कि हे इंसान तू युगों युगों से सिर्फ और सिर्फ मिटटी का बना हुआ था और मिट्टी का ही बना रहेगा | खैर , तो मिट्टी बागवानी का सबसे जरुरी तत्व है | विशेषकर जब आप शहरी क्षेत्रों में और वो भी गमलों में बागवानी करने जा रहे हैं तो |

बागवानी के लिए सर्वथा उपयुक्त मैदानी यानि साधारण काली मिट्टी होती है | साधारण से मेरा आशय है , जो मिटटी,  बलुई या रेतीली  , कीच , ऊसर , शुष्क , पथरीली ,पीली  आदि नहीं है और जिसमें नमी बनाए रखने के लिए कोई अतिरिक्त श्रम न करना पड़े वो ही साधारण मैदानी मिट्टी है जो कि साधारणतया आपने अपने आस पास के पार्क मैदान और खेतों में देखी होगी | इस मिट्टी में पानी न तो बहुत ज्यादा ठहर कर रुक कर कीचड का रूप लेता है न ही तुरंत हवा बन कर हवा हो जाता है और न ही पानी सूखते ही मिट्टी बहुत कड़ी होकर पत्थर जैसी हो जाती है जिससे की जड़ों में श्वास लेने हेतु पर्याप्त गुंजाईश बनी रहती है |

इससे ठीक उलट कीच वाली में , रेतीली मिट्टी में और शुष्क पीली मिटटी में कुछ विशेष पौधों को छोड कर आपको अन्य कोई भी पौधा लगाने उगाने में बहुत अधिक कठिनाई होगी | बागवानी के प्रारम्भिक दिनों में मुझे खुद इस परेशानी का सामना करना पडा था और मेरे बहुत से पौधे उसी पीली मिट्टी में थोड़े थोड़े दिनों बाद अपना दम तोड़ गए | इसके बाद मुझे यमुना के पुश्ते से वो काली उपजाऊ मिट्टी मंगवानी पड़ी | 

मुझे मिलने वाली आपकी बहुत सारी जिज्ञासाओं के जवाब में मेरा सबसे पहला जवाब होता है गमले और जड़ की फोटो भेजें तो असल में मैं उनकी मिटटी ही देखना चाहता हूँ | यदि मिटटी में कोई गड़बड़ है तो पहले उसी का निदान किया जाना जरुरी है | 

चलिए अब मिट्टी यदि बहुत अच्छी नहीं है तो फिर उसे कम से कम बागवानी के लायक कैसे बनाएं वो जानते हैं | कम गुणवत्ता वाली मिट्टी में , अच्छी गुणवत्ता वाली मिट्टी , खाद , कोकोपीट को मिला कर भी उसकी गुणवत्ता को ठीक कर सकते हैं | बस ध्यान रे रखें कि मिट्टी कम से कम उस लायक जरूर बन जाए कि उसमें कम से कम तीन चार घंटे या उससे अधिक नमी जरुर बनी रहे | 

यहाँ मिट्टी की उपलब्धता के लिए जो परेशान हो रहे हों उनके लिए एक जानकारी ये है कि आज सब कुछ , पानी को छोड़कर , अंतर्जाल पर उपलब्ध है , जी हाँ मिट्टी भी | 


अब एक आखिरी बात , मिट्टी को उपजाऊ बनाने का सबसे सरल उपाय और घरेलू भी | चाय की पत्ती जो आप चाय पीने के बाद छान कर फेंक देते हैं उन्हें रख लें | तेज़ धूप में सुखा लें और फिर उन्हें मिक्सी में बारीक पीस कर मिट्टी में मिला लें | फल सब्जियों के बचे हुए छिलके ,गूदे ,बीज आदि को भी आप सुखा कर और पीस कर उनका उपयोग भी आप मिट्टी को ठीक करने में और खाद की तरह ही इस्तेमाल कर सकते हैं | 

मिट्टी की उर्वरा शक्ति को ठीक रखने के लिए गमलों की निराई गुडाई करते रहना बहुत जरूरी है इससे मिट्टी ऊपर नीचे होने से संतुलित रहेगी और साथ ही पौधों की जड़ो तक हवा पानी भी पहुंचता रहेगा | 


मिट्टी से अगर आप इश्क कर बैठे तो फिर पौधे तो यूं ही महबूब हो जायेंगे आपके | अपनी जिज्ञासा आप यहाँ रख सकते हैं , मैं यथासंभव उनका निवारण करने का प्रयास करूंगा | 

शुक्रवार, 1 मई 2020

बागवानी के लिए जरूरी हैं गमले





आज बात करते हैं गमलों की।
बागवानी विशेषकर शहरों में जहां आपको छत पर ,बालकनी में ,सीढ़ियों में और खिड़की पर जैसी जगह ही बड़ी मुश्किल से मयस्सर होती है वहां गमलों में बागवानी ही एकमात्र विकल्प बचता है इसलिए ऐसी शहरी बागवानी में गमलों की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाती है।
गमलों का आकार प्रकार सिर्फ सिर्फ उसमें लगाए जाने वाले पौधे पर निर्भर करता है। छोटी जड़ वाले पौधे के लिए छोटे और माध्यम आकार के गमले चल सकते हैं किन्तु जिन पौधों की जड़ों को फैलाव की जरूरत होती है उनके लिए निश्चित रूप से माध्यम आकार के गमले ही चाहिए।
यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि मैंने बड़े छोटे पौधे नहीं कहा है बल्कि कहा है बड़ी जड़ वाले और छोटी जड़ वाले पौधे। मसलन गुलाब के पौधे बड़े होते हैं मगर जड़ छोटी इसलिए छोटे छोटे गमले में भी उग सकते हैं इसके उलट गेंदे फूल छोटे होते हैं मगर रेशेदार जड़ों को फैलाव अधिक चाहिए इसलिए यदि उन्हें आप छोटे गमले में लगा भी दें तो या तो फूल आएंगे ही नहीं या फिर फूल आकर में छोटे आएँगे।
फूलों के गमलों का आकर तो थोड़ा बहुत छोटा बड़ा फिर भी चल सकता है किन्तु फल सब्जी आदि के लिए मध्यम और बड़े आकर का गमला ही जरूरी है नहीं तो फल का आकार छोटा रह जाएगा हमेशा।
गमले मिट्टी के ,प्लास्टिक के ,लकड़ी के और ग्रो बैग भी हो सकते हैं। गमलों का चयन उन्हें रखने जाने वाले स्थान पर भी निर्भर करता है। बस ध्यान ये रखना होता है कि सभी गमलों में पानी की निकासी के लिए निर्धारित छिद्र बना हुआ हो ताकि उसमें पानी न जमा रहे और पौधों की जड़ें अधिक पानी से सड़ न जाएँ।
साग पात धनिया पुदीना मेथी पालक आदि जैसे सब्जियों के लिए चौड़े और कम गहरे गमले का इस्तेमाल किया जाना चाहिए जबकि मिर्च नीम्बू संतरे चीकू अमरूद केले अनार आदि के लिए बड़े और गहरे गमले का प्रयोग उचित रहता है।
गमलों में मिट्टी कभी भी ऊपर से एक दो इंच या तीन इंच तक भी से नीचे ही रहनी चाहिए ताकि पानी डालने के बाद जड़ों तक पहुँच कर सोखने के लिए पर्याप्त पानी व समय मिल सके।
शुरुआत में बागवानी करने वालों को ,बोतलों ,ज़ार ,मग आदि को गमलों में परिवर्तित करके बागवानी में रोमांच के प्रयोग से बचना चाहिए। जब बागवानी में सिद्ध हस्त हो जाएं तो फिर चाहे वे अपनी हथेली पर भी गुलाब उगा लें।
गमलों को मौसम में गरमी सर्दी के अनुसार उनका स्थान भी बदलना जरूरी होता है। इससे एक तो पौधों को अनुकून वातावरण मिल जाएगा दूसरे अधिक समय तक एक स्थान पर पड़े रहने के कारण छत बालकनी आदि में उनसे पड़ने वाले निशान से भी बचा जा सकता है। गमलों के नीचे प्लेट रखना भी इन निशानों से बचाने का एक विकल्प होता है।
किसी भी गमले की उम्र कम से कम चार वर्ष तो रहती ही है बशर्ते कि आपसे भूलवश वो गिर कर टूट न जाए।
आज के लिए इतना ही , आप चाहें तो अपने प्रश्न यहाँ पूछ सकते हैं
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